आज देश के कई शहरों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं सरेआम देखी जा रही हैं, जिसमें एक असहाय व्यक्ति केवल शक के आधार पर उन्मादी भीड़ का शिकार हो जाता है. ये घटनाएं केवल अल्पसंख्यक या किसी विशेष समुदाय को चिह्नित नहीं करतीं, बल्कि समाज के विभिन्न समुदाय के लोग मॉब लिंचिंग के शिकार हुए हैं.
इस प्रकार की सामाजिक घटनाओं का संबंध आम नागरिकों के जीवन से होता है, इसलिए यह आवश्यक है कि देश के सभी बुद्धिजीवियों की इस पर एक साझी राय हो, पर बीते दिनों हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहासकार समेत देश के लगभग 49 बुद्धिजीवियों का मॉब लिंचिंग पर पीएम नरेंद्र मोदी को लिखा गया पत्र यह साफ संकेत करता है कि मॉब लिंचिंग पर इनके विचार वास्तविकता से कुछ विपरीत ही हैं, फिर भी इस पर लगाम लगना चाहिए.
बिन्नी कुमारी, इ-मेल से