देहात और दूर-दराज के इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और समुचित संसाधनों की कमी स्वास्थ्य सेवा की बड़ी चुनौती रही है. इस कारण गांवों में बसर करनेवाले लोग ठीक से उपचार या सलाह हासिल नहीं कर पाते हैं. इस स्थिति में सुधार करना केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में एक है. बीते वर्षों में इस दिशा में हो रहे प्रयासों के सकारात्मक परिणाम अब दिखने लगे हैं.
भारत के महारजिस्ट्रार द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं. जन्म और मृत्यु के आंकड़े इंगित करते हैं कि अब अधिक संख्या में लोग निजी और सरकारी अस्पतालों में जा रहे हैं.
बच्चे के जन्म के दौरान माताओं को मिली डॉक्टरी निगरानी का आंकड़ा देशभर में 2017 में 81.9 फीसदी पहुंच गया, जो कि 2012 में 73.1 फीसदी था. इस वजह से ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर 2017 में 37 (प्रति एक हजार शिशुओं पर) हो गयी, जो 2008 में 58 थी. मृत्यु से पहले उपचार हासिल करनेवाले लोगों की संख्या 2012 के 34.6 फीसदी तुलना में 2017 में 47 फीसदी हो गयी. साल 2008 से 2017 के बीच गांवों में मृत्यु दर में शहरी इलाकों की तुलना में ज्यादा गिरावट देखी गयी है.
इस रिपोर्ट के लिए सर्वे किये गये सभी 22 राज्यों में ऐसे सकारात्मक रुझान दर्ज किये गये हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारतीय राज्यों की स्थिति में सुधार दक्षिण भारत की अपेक्षा कमतर है. इन राज्यों में आबादी के अनुपात में अस्पतालों और डॉक्टरों की उपलब्धता भी कम है. उल्लेखनीय है कि सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के तथ्य 2017 तक के हैं.
उसी साल केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की भी घोषणा की थी, जिसके तहत अनेक कार्यक्रम शुरू किये गये हैं. पिछले साल से चल रही प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना यानी आयुष्मान भारत पहल से करोड़ों गरीब और कम आमदनीवाले परिवारों को इलाज की सुविधा मिल रही है.
टीकाकरण अभियान और स्वच्छ भारत योजना से भी लाभ हो रहा है. स्वास्थ्य नीति में विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को परस्पर समायोजित भी किया गया है. जल संकट से निपटने के लिए संरक्षण और संवर्द्धन पर जोर तथा आगामी सालों में हर घर तक पेयजल पहुंचाने के लक्ष्य से भी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार में बड़ी मदद मिलेगी.
चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्रीय बजट में 65 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो पिछले साल के आवंटन से 16 फीसदी अधिक है. इस राशि में से 33.6 हजार करोड़ रुपये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटित हैं. भारत उन देशों में शामिल है, जो अपने सकल घरेलू उत्पादन का बहुत कम हिस्सा स्वास्थ्य के मद में खर्च करते हैं.
सरकार ने 2025 तक 1.4 फीसदी के मौजूदा स्तर को 2.5 फीसदी करने का लक्ष्य रहा है. इसके साथ राज्यों के खर्च को उनके बजट का आठ फीसदी से ज्यादा करने की कोशिश है. आशा है कि इन पहलों से भारत संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप शीघ्र ही एक स्वस्थ देश बन सकेगा.