प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूटनीति और वाणिज्य में पड़ोसी देशों के महत्व को हमेशा प्राथमिकता दी है. वर्ष 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करना, आसियान के सदस्य देशों के प्रमुखों को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाना तथा अपने दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक समूह के सात देशों, सार्क के पांच देशों और म्यांमार व थाईलैंड के नेताओं को मेहमान बनाना उनकी प्राथमिकता के विशिष्ट उदाहरण हैं.
वर्तमान कार्यकाल में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए मालदीव और श्रीलंका का चयन कर उन्होंने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि बंगाल की खाड़ी में भारत अपने सामुद्रिक पड़ोसियों से घनिष्ठ संपर्क और सहयोग के लिए संकल्पबद्ध है.
हालांकि पाकिस्तान की हेठी के कारण सार्क शिथिल है तथा दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है, परंतु भारत की ओर से हमेशा ही कहा गया है कि पाकिस्तान अगर आतंकवाद व अलगाववाद को प्रश्रय देने की नीति से परहेज करे, तो संबंध सामान्य हो सकते हैं. हालिया सालों में मालदीव में चीन के वर्चस्व को जो राजनीतिक चुनौती मिली है तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया से पिछले साल सितंबर में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति चुने गये और इस साल अप्रैल में मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी को बड़ा बहुमत हासिल हुआ, उससे वहां भारत के लिए व्यापक समर्थन पैदा हुआ है.
भारत ने आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करते हुए राष्ट्रपति सोलिह और पूर्व राष्ट्रपति व संसद के वर्तमान स्पीकर नशीद को नैतिक समर्थन दिया था. इसी सकारात्मकता के कारण मालदीव संसद ने प्रधानमंत्री मोदी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया था. इस यात्रा से भारत ने चीन और मालदीव को इंगित कर दिया है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों और उसके प्रतिनिधियों के पक्ष में खड़ा है. भारत के सहयोग से वहां पहले से ही चल रही विकास परियोजनाओं के साथ अब प्रधानमंत्री ने एक क्रिकेट स्टेडियम समेत अनेक योजनाओं पर भी सहमति दी है.
कर्ज देकर वर्चस्व बनाने की चीन की नीति के बरक्स भारत इस द्वीपीय देश के विकास में सहभागिता निभा रहा है, लेकिन अब भी वहां राजनीतिक अस्थिरता की आशंका है और इसके निवारण में भारत की निरंतर सकारात्मक भूमिका की आवश्यकता बनी रहेगी. भारतीय हितों के लिहाज से चीन का आयाम श्रीलंका के लिए भी महत्वपूर्ण है, पर विभिन्न समुदायों की आपसी तनातनी से उसके फिर से गृहयुद्ध के दौर में लौट जाने का भय भी मंडरा रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री के संदेश पर सभी पक्षों की दृष्टि जमी हुई है.
इसमें राजनीति के अलग-अलग पक्ष भी हैं, जिनमें कुछ चीन समर्थक हैं. इस दौरे में आतंकवाद पर भारत की स्पष्टता को व्यक्त कर उन्होंने एक बड़ा संदेश दिया है. सामुद्रिक हितों के साथ क्षेत्रीय स्थिरता को महत्व देकर प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी जता दिया है कि उनकी सोच चीन के आर्थिक स्वार्थों की तरह संकीर्ण नहीं है. द्वीपीय देशों की यह यात्रा इस क्षेत्र में नये युग का प्रारंभ है.