मॉनसून किसानों की उम्मीदों के अनुरूप नहीं चल रहा. झारखंड में कम बारिश हो रही है. जून माह में औसतन 485 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए. पर 110 मिलीमीटर ही वर्षा हुई. अभी 12 जुलाई तक की वर्षा भी औसत से 11 फीसदी कम है. सिमडेगा, लोहरदगा व गढ़वा जिले में तो करीब 50 फीसदी कम बारिश हुई है. ऐसे में राज्य भर में धान व मक्के की फसल बहुत कम लगायी जा सकी है.
पलामू प्रमंडल व अन्य इलाकों में तेलहन व दलहन की भी कम बुआई की सूचना है. आगे भी यदि बारिश ने धोखा दिया, तो किसानों का संकट बढ़ेगा. महंगाई की मार से त्रस्त आम आदमी के लिए भी परेशानी बढ़ेगी. विशेषज्ञों की माने, तो मामला अभी हाथ से निकला नहीं है. पर सावन की फुहार में दम न रहा, तो अच्छी खेती की उम्मीद भी दम तोड़ देगी. दरअसल झारखंड में सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था ही नहीं है. दुर्भाग्य यह रहा कि 70 के दशक व बाद में शुरू हुई आठ बड़ी व 19 मध्यम सिंचाई परियोजनाएं 45 वर्षो बाद भी अधूरी हैं. राज्य में कृषि योग्य भूमि का कुल रकबा करीब 30 लाख हेक्टेयर है. इनमें से सिर्फ 18 फीसदी के लिए ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, जबकि बिहार में कुल कृषि योग्य भूमि के 58 फीसदी पर सिंचाई होती है.
राष्ट्रीय औसत 36 फीसदी का है. झारखंड की सिंचाई परियोजनाएं यदि पूरी हो जायें, तो करीब साढ़े पांच लाख हेक्टेयर खेतों को पानी मिलेगा. जल संसाधन विभाग के अनुसार राज्य की बृहत् व मध्यम सिंचाई योजनाओं में 7.31 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचाई कर सकने की क्षमता है. वहीं शेष भूमि पर चेक डैम जैसे लघु सिंचाई के साधनों से सिंचाई हो सकती है. पर इस दिशा में कभी ठोस पहल नहीं हुई.
राज्य सरकार को इसके लिए प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. अभी जल संसाधन विभाग के अलावा कृषि और अब कल्याण विभाग भी किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं. पर इन विभागों में समन्वय नहीं है. कई बार चेक डैम व अन्य जलस्रोत स्थानीय लोगों के आग्रह व सलाह को दरकिनार कर बनाये जाते हैं. बाद में ये बेकार हो जाते हैं. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. साथ ही सरकार लंबित सिंचाई परियोजनाएं समय से पूरी करे. यह किसानों के हित में भी होगा और राज्यहित में भी.