जम्मू-कश्मीर में व्याप्त अलगाववादी हिंसा और क्षेत्रीय पिछड़ापन भारतीय राज्य की राजनीतिक विफलता का एक दूर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है. कभी धरती का स्वर्ग माना जानेवाला इलाका आज संगीनों के साये और बुनियादी सुविधाओं की कमी में जीने के लिए अभिशप्त है.
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि राज्य के लोगों के दिलों को जीतना उनकी प्राथमिकता है, नयी उम्मीद जगाता है. माता वैष्णो देवी तीर्थ की तलहटी कटरा कस्बे में मोदी द्वारा रेलमार्ग का उद्घाटन और उनकी श्रीनगर यात्र से क्षेत्र में विश्वास व विकास की आकांक्षाओं को ऊर्जा मिली है. उन्होंने यह कहा है कि सरकार इलाके की बेहतरी के लिए पूरा प्रयास करेगी. रेलमार्ग की यह परियोजना रेल-निर्माण के क्षेत्र में एक उपलब्धि है. 1,090 करोड़ की लागत से 12 वर्षो में पूरा हुए 25 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग में 10.9 किलोमीटर लंबी सुरंग है तथा कुल 36 छोटे-बड़े पुल हैं. इनमें से एक पुल देश का सबसे अधिक ऊंचा पुल है. अगर सरकारें देश के दूर-दराज के इलाकों में इस तरह की परियोजनाओं पर निरंतर काम करती रहीं, तो वह दिन दूर नहीं है, जब देश के किसी भी कोने से आवागमन आसान हो जायेगा.
हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण को ध्यान में रख कर विकास परियोजनाओं को आगे ले जाने का नरेंद्र मोदी का बयान भी स्वागतयोग्य है. इस दिशा में उन्होंने सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर भी जोर दिया है. राज्य के जम्मू व लद्दाख में तो विकास योजनाओं के जरिये दिलों को जोड़ा जा सकता है, लेकिन कश्मीर घाटी में इससे अधिक बहुत कुछ करने की आवश्यकता है, जिसका रास्ता विकास की कोशिशों के साथ राजनीतिक प्रयासों के माध्यम से ही तय किया जा सकता है. सरकार को लेकर कश्मीर के एक तबके में अविश्वास की भावना व्याप्त है. मोदी के श्रीनगर यात्र के दौरान अलगाववादियों द्वारा बंद के आह्वान का व्यापक असर इस बात को रेखांकित करता है कि दशकों की हिंसा और दमन के घावों को भरने के लिए लगातार प्रयासों की जरूरत है. यह अच्छा होता कि मोदी बतौर प्रधानमंत्री राज्य की अपनी पहली यात्रा में कुछ ठोस राजनीतिक घोषणाएं भी करते, जैसे- घाटी में तैनात सेना के अधिकार-क्षेत्र को कम करना और कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास शुरू करना.