एक छोटी-सी सकारात्मक सोच और अच्छा विचार ही काफी होता है किसी भी व्यक्ति और परिस्थिति में सकारात्मक परिणाम के लिए. जब एक नहीं, बल्कि अनेक सकारात्मक सोच और अच्छे विचार एक साथ, एक ही समय में, एक ही उद्देश्य से आपस में जुड़ते हैं तो आश्चर्यजनक और चमत्कारी परिणाम आना स्वाभाविक है.
गत सप्ताह चेन्नई की व्यस्त सड़कों से गुजरते धड़कते हुए दिल ने एक साथ देश के कई दिलों की धड़कनों को कुछ समय के लिए तो मानो रोक दिया और फिर उस दिल ने न केवल किसी को जीवन दिया, बल्कि पूरे समाज को वह संदेश दिया जिसने निर्जीव से पड़े हुए तथाकथित मनुष्यों के दिलोदिमाग की अनेक शिराओं और धमनियों को खोल, उसमें यूं ही बहने वाले रक्त प्रवाह को नयी ऊर्जा और ताजगी प्रदान की. आये दिन जब मानवता को शर्मसार करने वाले अनेक समाचार पढ़ने-सुनने-देखने को मिलते हों, बाजारवादी, स्वार्थ, संकीर्णता, ईष्र्या और द्वेष से विषाक्त हो चुके वर्तमान वातावरण में दुखी, पीड़ित, कराहती, मृतप्राय मानवता को पुनर्जीवित करने का प्रयास इस समाचार ने निश्चित रूप से किया है.
यह सफलता एक-दो लोगों की नहीं, बल्कि उस सामूहिक प्रयास की है, जिसने कई चुनौतियों से भरे इस अभियान को योजनाबद्ध तरीके से सार्थक बनाया. यातायात पुलिस और चिकित्सा संगठनों ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए जनकल्याण के संबंध में त्वरित निर्णय लेते हुए दृढ़ता, पारस्परिक सामंजस्य और समय प्रबंधन में जिस कुशलता का परिचय दिया, वह वाकई प्रशंसनीय है. आशा की जानी चाहिए कि जली हुई शमाएं आगे भी यूं ही जलती रहें, बुझने से पहले जमाने को रौशन कर जाने के लिए. मानवता को जीवित बनाये रखने को ऐसे प्रयास हम सब करते रहें.
पूनम पाठक, कोलकाता