रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
क्या भारतीय मीडिया और न्यायपालिका को अमेरिकी मीडिया और न्यायपालिका से कुछ सीखने की जरूरत है या नहीं? वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की 180 देशों की सूची में भारत का पहले 133वां स्थान था, अब 136वां हो गया है. गोदी मीडिया के दौर में कल यह 140वां भी हो सकता है. इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार वरिष्ठतम जजों ने 12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश पर बेंच के गठन आदि को लेकर कई सवाल खड़े किये. मुख्य न्यायाधीश से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक लाभ से स्वतंत्र और निष्पक्ष होगा.
राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग लाया गया, जिसे राज्यसभा के सभापति ने खारिज कर दिया था. फरवरी 2018 में अपनी सेवा-निवृत्ति के अंतिम कार्य दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के जज अमिताभ राय ने न्यायपालिका में ‘फ्रैक्चर्ड फेस’ की बात कही थी, जिससे न्यायपालिका में विश्वास घटता है. उन्होंने इस संस्था को बचाने की भी बात कही थी.
आज अमेरिकी मीडिया मालिक टेड टर्नर (रोबर्ट एडवर्ड टर्नर III) की जन्मतिथि (19 नवंबर, 1938) है. टेड टर्नर ने 1 जून, 1980 को 24 घंटे के केबल न्यूज चैनल के रूप में सीएनएन की स्थापना की थी. चौबीस घंटे समाचार कवरेज प्रदान करनेवाला यह पहला चैनल था- अमेरिका का पहला ‘अखिल समाचार टेलीविजन चैनल.’
इस समय इसके पास 11 घरेलू और 31 अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो (कुल 42) हैं और संबद्ध स्थानीय स्टेशनों की संख्या 900 से कुछ अधिक है. रुपर्ट मर्डोक ने इसके विकल्प में 1996 में फॉक्स न्यूज चैनल (एफएनसी) का निर्माण किया : यह माना जाता है कि यह टेलीविजन चैनल दक्षिणपंथी है, जिसके कई एंकर ट्रंप के खुले समर्थक हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मीडिया के प्रति रवैया ठीक नहीं रहा है. राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने मीडिया को ‘अमेरिकी जनता का शत्रु’ कहा था. स्टीवेन लेवीटस्की और डैनिएल जिबलैट्ट की पुस्तक ‘हाउ डेमोक्रेसीज डाइ’ (वाइकिंग, 2018) का आठवां अध्याय ट्रंप के राष्ट्रपति पद के पहले वर्ष पर है- ‘ट्रंप्स फर्स्ट ईयर : ऐन आॅथोरिटेरियन रिपोर्ट कार्ड’ इसमें इसका उल्लेख है कि शोरेन्स्टीन सेंटर (मीडिया, राजनीति और लोकनीति पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय का शोध केंद्र (जिसकी स्थापना 1986 में हुई थी) ने अपने समाचार रिपोर्ट्स में यह पाया कि ट्रंप के आरंभिक सौ दिनों की न्यूज रिपोर्ट अस्सी प्रतिशत नकारात्मक थी, जबकि क्लिंटन की 60 प्रतिशत, जॉर्ज डब्ल्यू बुश की 57 प्रतिशत और बराक ओबामा की 45 प्रतिशत नकारात्मक थी. प्रत्येक सप्ताह ट्रंप के प्रेस कवरेज की रिपोर्ट 70 प्रतिशत नकारात्मक थी.
बीते सात नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सीएनएन के व्हाॅइट हाउस के मुख्य संवाददाता जिम एकोस्टा के बीच कुछ सवालों को लेकर बहस हुई थी. सोशल मीडिया पर इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का वीडियो वायरल हो चुका है.
जिम एकोस्टा (एबिलिओ जेम्स एकोस्टा) 47 वर्षीय (17 अप्रैल, 1971) अमेरिकी पत्रकार हैं. सीएनएन ने फरवरी 2012 में उन्हें राष्ट्रीय राजनीतिक संवाददाता के पद पर प्रोन्नत किया और 9 जनवरी, 2018 को वे व्हाइट हाउस के प्रमुख संवाददाता बने. वे ट्रंप से मेक्सिको के शरणार्थियों और अमेरिका की ओर आनेवाले प्रवासियों के संबद्ध में प्रश्न करना चाहते थे, पर उन्हें सवाल पूछने से रोका गया. किसी भी लोकतंत्र में पत्रकारों को सवाल पूछने से रोकना पत्रकार और संस्था का ही नहीं, लोकतंत्र का भी अपमान है.
एकोस्टा के हाथ से माइक लेने की कोशिश की गयी. ट्रंप ने माइक लेनेवाली महिला को न रोककर जिम एकोस्टा को रोका- ‘बहुत हुआ, बस करिये’ कहा. एकोस्टा को माइक नीचे रखने को कहा. ट्रंप ने सीएनएन को स्वयं पर शर्मिंदा होने को कहा. एकोस्टा की उंगलियों की भाषा और ट्रंप की उंगलियों की भाषा में जमीन-आसमान का फर्क था. ट्रंप ने सारा सैंडर्स की टीम की मेंबर के साथ एकोस्टा के व्यवहार को निंदनीय कहा.
अगले दिन 8 नवंबर को एकोस्टा का व्हाइट हाउस का पास रद्द कर दिया गया. पास रद्द किये जाने के खिलाफ सीएनएन ने मुकदमा दायर किया. इस मुकदमे को अमेरिका के प्रमुख समाचार संस्थानों ने समर्थन किया. उसके बाद 13 नवंबर को राष्ट्रपति ट्रंप के विरुद्ध दायर किये गये मुकदमे का दक्षिणपंथी टेलीविजन नेटवर्क फॉक्स न्यूज ने भी समर्थन किया.
इस मुकदमे में पहले और पांचवें एमेंडमेंड अधिकार के उल्लंघन की बात कही गयी थी. फेडरल जज टीमोथी जे केली ने अगले ही दिन 14 नवंबर को सुनवायी की. टीमोथी जेम्स केली 49 वर्षीय (21 मार्च, 1969) कोलंबिया जिला के लिए संयुक्त राज्य जिला न्यायालय के न्यायाधीश हैं.
बीते 16 नवंबर को, जो भारत का राष्ट्रीय प्रेस दिवस है, इस मुकदमे का फैसला आया और एकोस्टा के हार्ड पास को अस्थायी रूप से बहाल किया गया. यहां यह उल्लेखनीय है कि व्हाइट हाउस के संवाददाता एसोसिएशन ने भी सरकार की मुद्रा को ‘गलत’ अौर ‘खतरनाक’ कहा था.
भारतीय मीडिया का सिर कितना ऊंचा और गिरा हुआ है, यह कहने की आवश्यकता नहीं हैं. गांधी की 150वीं वर्षगांठ पर उनका कथन याद रखना चाहिए- ‘स्वार्थी सिरों के लिए पत्रकारिता को कभी भी वेश्यावृत्ति नहीं दी जानी चाहिए या केवल धन-कमाई के लिए आजीविका कमाने या बदतर के लिए कभी भी बुरा नहीं होना चाहिए.’