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11 अक्तूबर जयप्रकाश नारायण जयंती पर विशेष : जमशेदपुर में गिरफ्तार किया गया था जेपी को

अनुज कुमार सिन्हा आजादी के पहले आैर आजादी के बाद भी जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बड़ी भूमिका अदा की. चाहे वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हाे या आजाद भारत में किया गया 1974 का छात्र आंदाेलन. पहले ने देश की आजादी में याेगदान दिया आैर दूसरे आंदाेलन ने ताे लोकतांत्रिक परंपराओं के पुनर्स्थापन के िलए सत्ता […]

अनुज कुमार सिन्हा
आजादी के पहले आैर आजादी के बाद भी जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बड़ी भूमिका अदा की. चाहे वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हाे या आजाद भारत में किया गया 1974 का छात्र आंदाेलन. पहले ने देश की आजादी में याेगदान दिया आैर दूसरे आंदाेलन ने ताे लोकतांत्रिक परंपराओं के पुनर्स्थापन के िलए सत्ता ही पलट दी. यहां बात करेंगे आजादी के पहले के आंदाेलन की. यह सही है कि जेपी नहीं चाहते थे कि भारत दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल हाे. महात्मा गांधी का इस संबंध में विचार अलग था. 1939 में दूसरा महायुद्ध शुरू हाे चुका था.
भारत के लाेगाें से बगैर बात किये तत्कालीन सरकार ने भारत काे युद्ध में झाेंक दिया था. जेपी इस युद्ध के खिलाफ थे. पटना में जेपी ने कहा था-अंगरेजाें का साथ मत दाे. यह उपनिवेशवाद का युद्ध है. हम इसका विराेध करते हैं. हम इसका लाभ उठायेंगे आैर देश काे आजाद करायेंगे. इसी क्रम में जेपी अभियान चला रहे थे. 18 फरवरी 1940 काे जेपी ने जमशेदपुर में ब्रिटिश सरकार पर सीधा हमला बाेला था.
तब टिस्काे में युद्ध में काम आनेवाले हथियार बनाने की तैयारी चल रही थी. टिस्काे लेबर यूनियन की सभा में जेपी ने आह्वान किया था कि वे काम राेक दें, उत्पादन ठप कर दें ताकि युद्ध सामग्री की आपूर्ति नहीं हाे सके. जेपी ने जमशेदपुर में ही लाेगाें से ब्रिटिश सरकार काे उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा था कि वे ब्रिटिश काेर्ट आैर पुलिस का बहिष्कार करें, ब्रिटिश कानून काे नहीं मानें. यह सीधी चुनाैती थी. इस आह्वान के बाद ब्रिटिश सरकार ने जेपी काे गिरफ्तार कर लिया था. सुनवाई चाईबासा में हुई.
जेपी ने काेर्ट में भी अपनी बाताें काे बहुत ही बहादुरी से रखा था. मजिस्ट्रेट के सामने बयान में जेपी ने कहा था-अपने ऊपर लगाये गये इस इलजाम काे खुशी-खुशी कबूल करता हूं कि मैैंने युद्ध काे सफल बनाने के लिए जाे अस्त्र-शस्त्र बनने चाहिए, उनके बनने में राेड़े अटकाये हैं आैर भारत की रक्षा के लिए जिस रूख की जरूरत है, उसके खिलाफ असर डालने की काेशिश की है.
तलवार की ताकत पर कायम रहनेवाली विदेश हुकूमत के कानून भले ही इसे जुर्म मानते रहे, मुझे इसकी परवाह नहीं. मेरा देश इस महायुद्ध में किसी तरह शामिल हाेने काे तैयार नहीं, क्याेंकि वह जर्मन नाजीवाद आैर अंगरेजी साम्राज्यवाद दाेनाें काे अपना दुश्मन मानता है. इसके बाद जेपी काे नाै माह की सजा सुनायी गयी आैर उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया.
जब जेपी जेल से रिहा हुए, उन्हाेंने पूरे देश में घुम-घुम कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रणनीति बनायी. उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया आैर राजस्थान के देवली कैंप में रखा गया. वहां जेपी ने जेल में आंदाेलन किया, जिसके बाद हजारीबाग जेल भेज दिया गया. 1942 में जेपी इसी हजारीबाग जेल से अपने साथियाें के साथ फरार हाे गये थे.
युद्ध के मुद्दे पर जेपी आैर गांधी में कुछ वैचारिक मतभेद थे लेकिनजब जेपी काे जमशेदपुर के भाषण के बाद गिरफ्तार किया गया था, गांधी चुप नहीं बैठे. हरिजन के 16 मार्च, 1940 के अंक में उन्हाेंने लिखा कि जेपी की गिरफ्तारी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. वे काेई साधारण कार्यकर्ता नहीं हैं.
वे समाजवाद के पंडित हैं. कहा जा सकता है कि पाश्चात्य समाजवाद के विषय में जाे कुछ उनकाे मालूम नहीं है, वह किसी भी भारतीय काे मालूम नहीं है. गांधी ने लिखा-इस गिरफ्तारी के बाद लाेग यह मानने लगे हैं कि ब्रिटिश सरकार लड़ने पर आमादा है. अदालत में जेपी ने जाे बयान दिया था, उस बयान काे भी गांधी ने साहसी बयान बताया. एक राेचक प्रसंग भी है.
जब जेपी काे सजा सुना दी गयी ताे सेवाग्राम से गांधी ने 31 मार्च 1940 काे प्रभावती देवी (जेपी की पत्नी) काे पत्र लिखा, जिसमें कहा था कि मैंने अधिक सजा की बात साेची थी. एक दृष्टि से मुझे यह सजा अच्छी लगती है. उसे आराम ताे मिलेगा. देखना कि वह (जेपी) खाने-पीने में सावधानी बरते.
दरअसल जेपी अपने कामाें में इतने रम जाते थे कि आराम नहीं कर पाते थे, खाने-पीने का ध्यान नहीं रहता था आैर कई बार गंभीर रूप से बीमार भी पड़े थे. इसलिए जेपी की चिंता सभी काे रहती थी. उसी दिन गांधी ने जेपी काे भी पत्र लिखा था जिसमें शरीर पर ध्यान देने काे कहा था. ऐसे हाेते थे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े नेताआें के आपसी पारिवारिक संबंध.
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