संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
हमारे कार्यालय के छोटे लेकिन असली बॉस, बारिश की आकस्मिक बौछारों से, बड़ी मुश्किल से बचते-बचाते देर से आॅफिस पहुंचे. हमने डरते-डरते पूछ ही लिया, जनाब क्या हुआ परेशान दिख रहे हैं.
बोले यार! यह बारिश हर बार गलत टाइम पर होती है. हमने गुजारिश की, सर अब तो बारिश ही बड़ी मुश्किल से होती है. वे बोले, आठ बजे घर से निकलना होता है, ठीक उसी समय पर ऊपर वाले ने आज पानी-पानी कर दिया.
मुझे लगा बारिश वाले से गलती हो गयी, पूछा कब होनी चाहिए बारिश. मैंने कहा, ऊपर वाले ने करनी ही है, तो दिन में साढ़े दस बजे के बाद कर दे या रात को दस बजे के बाद बरस ले, तो सबसे बेहतर. मैंने दिमाग से सोचा कि जनाब ने ठीक फरमाया है, जब बारिश हमारे लिए है, तो हमारी मर्जी से ही होनी चाहिए. वैसे भी किसानों को छोड़कर अब किसे बारिश की जरूरत है.
बारिश का पानी जरा भी साफ नहीं होता कि भीगकर अठखेलियां करने का मजा लिया जाये. पिछले कई सालों से हम अस्त-व्यस्त जीवन से कुछ घंटे निकाल कर पड़ोसी शहर में दोस्त परिवार से मिलने का सामाजिक कार्यक्रम बना रहे थे, मगर ठीक उसी दिन और हमारे जाने के समय से कुछ घंटा पहले कुछ देर पानी बरसने से उनका और हमारी गलियां वेनिस हो ली और हम धरे रह गये.
हमारे मित्र को तो पानी से बचने के लिए अपना सामान पहली मंजिल पर ले जाना पड़ा और उनकी गाड़ी गली में बहती नदी के पानी में बहने से बची उनका फोन आया कि सर्दियों में मिलेंगे. मैं सोचने लगा कि अब सर्दियां कब आती हैं.
यह बात सही है कि बारिश का गलत समय पर आना तो गलत है ही, कहीं भी बरस जाना और भी गलत है. जहां जरूरत हो, वहां बिलकुल न बरसना, सरकार की तरह किसानों को वायदाते, भरमाते, डराते व तरसाते रहना और फिर तैयार या खेत में फसल पर अंधड़ के साथ पानी फेरना तो ऊपर वाले का मनमाना जुर्म है.
हमने एक नेताजी से कहा कि बारिश के बारे में कुछ कहें. नेताजी तैयार थे. बोले, दिल से कहूं, तो बारिश बहुत ही रोमांटिक वस्तु है. दिमाग से बोलूं, तो ऊपर वाले की घटिया विपक्षीय राजनीति है.
व्यावहारिक स्तर पर देखा जाये, तो बारिश अब परेशानी का सबब बन चुकी है. नालियां, सड़कें और खड्डे गंदे पानी से भर जाते हैं. हमारी शानदार गाड़ी गंदी हो जाती है. महंगे ब्रांडेड कपड़े खराब हो जाते हैं. बेचारी आम जनता परेशान होकर हमें परेशान करना शुरू कर देती है.
हमें हाई बीपी हो जाता है और हमारी पत्नी को लो बीपी हो जाता है. गलत बात है न, ऊपर वाले को ऐसा नहीं करना चाहिए. एक बात और, व्यवस्था को कोसते रहना असंवैधानिक है.
नेताजी की बात में प्यास बुझानेवाला पानी दिखा. उनकी आंखों में प्राकृतिक संसाधनों को और हथिया कर विकास के पिता विज्ञान की मदद से जब चाहे, जहां चाहे, बारिश करा लेनी चाहिए का दृढ़ निश्चय तैर रहा था.