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जहरीले होते शहर

भारत आर्थिक वृद्धि दर के लिहाज से आज दुनिया की अगली पांत के देशों में शुमार है, पर एक डरावना सच यह भी है कि वायु प्रदूषण से सर्वाधिक ग्रसित अधिकतर शहर भारत ही में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हवा में घुले सल्फेट, नाइट्रेट, ब्लैक कार्बन के सूक्ष्म कणों की सालाना मात्रा के औसत […]

भारत आर्थिक वृद्धि दर के लिहाज से आज दुनिया की अगली पांत के देशों में शुमार है, पर एक डरावना सच यह भी है कि वायु प्रदूषण से सर्वाधिक ग्रसित अधिकतर शहर भारत ही में है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हवा में घुले सल्फेट, नाइट्रेट, ब्लैक कार्बन के सूक्ष्म कणों की सालाना मात्रा के औसत के आधार पर तैयार की गयी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से प्रभावित 15 शहरों में 14 भारत में हैं. इन चौदह शहरों में कानपुर और फरीदाबाद जैसे कल-कारखाने वाले शहर शामिल हैं, तो शहरी विकास के पैमाने पर तुलनात्मक रूप से इनसे बहुत पीछे वाराणसी और गया जैसे धार्मिक शहर भी हैं. महज सात साल पहले हालात आज से कहीं ज्यादा बेहतर थे.
साल 2010 में सबसे अधिक जहरीली हवा में सांस ले रहे शहरों में सिर्फ दिल्ली और आगरा का नाम ही था. वर्ष 2013 से 2015 के बीच शीर्ष के 20 प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के शहरों की संख्या चार से बढ़कर सात हो गयी. अब ताजा फेहरिस्त में एक दर्जन से अधिक शहर हैं. परिवहन, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्पादन, ईंधन के परंपरागत साधनों के उपयोग जैसी तमाम गतिविधियों में वायु प्रदूषण की रोकथाम के उपायों की अनदेखी बहुत भारी पड़ रही है.
रिपोर्ट का आकलन है कि फिलहाल दुनिया में 10 में से नौ लोग प्रदूषित वायु में सांस लेने को मजबूर हैं और सालाना 70 लाख लोग सिर्फ प्रदूषणजनित रोगों से मौत का शिकार हो जाते हैं. काल-कवलित होनेवालों में भारतीयों की तादाद (सालाना 11 लाख) भी दुनिया में सबसे ज्यादा है. प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्ज्वला योजना एक सार्थक पहल है.
दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में साठ फीसदी लोगों को अब भी स्वच्छ ईंधन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. उज्ज्वला योजना के अंतर्गत दो साल में लगभग पौने चार करोड़ गरीब परिवारों को स्वच्छ ईंधन मुहैया कराया गया है. परंतु सिर्फ इतने भर से संतोष करना ठीक नहीं है.
जनवरी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के लिए विशेष योजना बनायी, तो सर्वोच्च न्यायालय ने ध्यान दिलाया था कि ऐसी योजना राष्ट्रीय स्तर पर बनायी जानी चाहिए, क्योंकि यह अब सिर्फ महानगरों की समस्या नहीं है.
आर्थिक वृद्धि के कारण शहरों का तेज विस्तार हो रहा है, पर प्रबंधन पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. रोजगार और समृद्धि के लिए परियोजनाओं को पूरा करने का दबाव में पर्यावरण और स्वास्थ्य की चिंताओं की अवहेलना जानलेवा होती जा रही है.
ऐसी स्थिति में विकास की आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ हवा-पानी को साफ रखने की चुनौती से निपटना सरकारों, उद्योग जगत और नागरिक समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए. इस दिशा में हम चीन जैसे विकासशील देश से बहुत-कुछ सीख सकते हैं जहां प्रदूषण की रोकथाम के लिए ठोस नीतिगत प्रयास किये जा रहे हैं.

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