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कैश की किल्लत
बीते कुछ हफ्ते से दक्षिण भारत के राज्यों- खासकर, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना- के लोग बैंकों और एटीएम में नकदी की किल्लत से जूझ रहे थे. लेकिन, इस कमी ने कई अन्य राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में एटीएम खाली हैं और […]
बीते कुछ हफ्ते से दक्षिण भारत के राज्यों- खासकर, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना- के लोग बैंकों और एटीएम में नकदी की किल्लत से जूझ रहे थे. लेकिन, इस कमी ने कई अन्य राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में एटीएम खाली हैं और बैंकों में भी लोगों को पैसे नहीं मिल पा रहे हैं.
बैंकों का तर्क है कि उन्हें समुचित मात्रा में नकदी की आपूर्ति नहीं हो रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि कुछ इलाकों में सामान्य से अधिक निकासी के कारण यह स्थिति पैदा हुई है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, बाजार में नकदी का प्रवाह लगभग उसी स्तर पर है, जहां वह नोटबंदी के समय से पहले था. वित्त राज्यमंत्री एसपी शुक्ला ने बताया है कि 1.25 लाख करोड़ की मुद्रा उपलब्ध है और परेशानी की एक बड़ी वजह यह है कि कुछ राज्यों में उपलब्धता कमतर है.
कुछ बैंकरों का कहना है कि अनेक इलाकों में किसानों को हो रहे भुगतान के कारण भी दिक्कत आयी है. वजहें चाहे जो हों, इस समस्या के तुरंत समाधान की जरूरत है. ध्यान रहे, सर्वाधिक समस्या कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहां डिजिटल लेन-देन का स्तर बहुत ही कम है और लोग सामान्यतः नगदी पर निर्भर हैं.
यह स्वागतयोग्य है कि सरकार और रिजर्व बैंक के साथ विभिन्न बैंकों ने भी संकट को स्वीकार किया है तथा तीन दिनों में सामान्य स्थिति बहाल होने का भरोसा जताया है, परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की नींद कुछ देर से खुली है. अगर लोगों की शिकायतों का संज्ञान पहले ही ले लिया जाता, तो हालात इस कदर नहीं बिगड़ते. इस रवैये को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकार और बैंकों ने नोटबंदी के दौर की अफरा-तफरी से कोई सबक नहीं लिया है.
यह भी पता किया जाना चाहिए कि कहीं समस्या करेंसी चेस्ट के स्तर पर तो पैदा नहीं हुई, जहां से बैंकों को रिजर्व बैंक के आदेश से नगदी की आपूर्ति होती है. देश में फिलहाल 4075 करेंसी चेस्ट हैं. इनमें से सर्वाधिक (95 फीसदी) सरकारी बैंकों के पास हैं. कुछ जानकारों ने यह आशंका भी जतायी है कि आगामी चुनावों के मद्देनजर निहित स्वार्थों ने बड़ी मात्रा में नगदी छुपाना शुरू कर दिया है.
यह तथ्य बैंकों में जमाराशि की वृद्धि से भी झलकती है. इस साल मार्च के अंत में बैंकों में जमाराशि की बढ़ोत्तरी 6.7 फीसदी रही थी, जबकि 2017 में इसी महीने का आंकड़ा 15.3 फीसदी था. लोगों को नोटबंदी के समय रोजाना नियमों के बदलने के सिलसिले और तकलीफें याद हैं.
बैंकों के हालिया घोटालों और घाटों से वित्तीय प्रबंधन की साख को बट्टा भी लगा है. ऐसे में अगर नगदी की कमी बनी रहती है, तो यह सरकार और रिजर्व बैंक पर बड़ा सवाल होगा. जांच-पड़ताल और निगरानी के साथ नगदी की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी आखिरकार उनकी ही है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस सप्ताह समस्या का समुचित समाधान हो जायेगा.
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