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रिश्ते का इतिहास बन जाना
II मुकुल श्रीवास्तव II टिप्पणीकार मेरे एक खुशमिजाज मित्र थे. ‘थे’ इसलिए कह रहा हूं कि अब उनसे बात नहीं होती है, पर एक वक्त ऐसा भी गुजरा है कि जब हम बेमतलब की बातें किया करते थे. फिर हम दोनों के रिश्तों में समस्या आयी, क्योंकि हमारी प्राथमिकता बदलने लगी थी. उस दौर में […]
II मुकुल श्रीवास्तव II
टिप्पणीकार
मेरे एक खुशमिजाज मित्र थे. ‘थे’ इसलिए कह रहा हूं कि अब उनसे बात नहीं होती है, पर एक वक्त ऐसा भी गुजरा है कि जब हम बेमतलब की बातें किया करते थे. फिर हम दोनों के रिश्तों में समस्या आयी, क्योंकि हमारी प्राथमिकता बदलने लगी थी. उस दौर में बात करने के सिलसिले काफी कम हो गये थे.
जब कभी उनसे बात होती थी, तो वे मुझसे कहते थे कि काश सब पहले जैसा हो जाये और मैं अक्सर यह सोचता था कि क्या सब पहले जैसा हो सकता है? इसका जवाब कभी मिला नहीं, क्योंकि जिंदगी की कहानी बदल चुकी थी और हमारी दोस्ती इतिहास हो गयी.
आपने भी जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर कोई कहानी जरूर पढ़ी या सुनी होगी. जिंदगी के साथ-साथ हमारे साथ चलनेवाली कहानियों के नायक-नायिका बदलते जाते हैं, पर हर कहानी में एक चीज समान रहती है.
वह यह कि हर कहानी में ‘था’ या ‘थी’ शब्द की भरमार होती है, यानी कहानी में जो कुछ भी होता है, वह बीत चुका होता है, पर उन कहानियों के माध्यम से हम इंसानी रिश्तों, संघर्षों, तकलीफों को समझकर आनेवाले कल को बेहतर करने की कोशिश कर सकते हैं.
जब सवाल कहानियों का हो, तो इतिहास का जिक्र आना स्वाभाविक है. बात कहानी से शुरू हुई, तो बगैर रिश्ते के कोई कहानी नहीं बनती और हर इतिहास की अपनी एक कहानी होती है. मतलब कहानी, रिश्ते और इतिहास तीनों एक दूसरे से जुड़े हैं. इतिहास आम लोगों की नजर में से दुनिया का सबसे बोरिंग विषय हो सकता है, पर असल में ऐसा है नहीं.
इतिहास को समझे बगैर हम जिंदगी और रिश्तों की कहानी नहीं समझ सकते. समय अच्छा हो या बुरा, वह बीतने को तो बीत ही जाता है, पर अपने बीतने के निशान जरूर छोड़ जाता है. हम कभी सोचते ही नहीं कि जो कुछ ‘था’ या ‘थे’ हो जाता है, वह सब इतिहास की कहानी बन जाता है. बगैर इतिहास की नींव के हम भविष्य की इमारत तो नहीं खड़ी कर सकते न!
बात इतिहास की हो रही है. तो देखिए न, हर रिश्ते का एक इतिहास होता है, पर जब तक रिश्ते सामान्य रहते हैं, हम इस इतिहास पर ध्यान ही नहीं देते कि यह रिश्ता कैसे बना. कैसे कोई पति, दोस्त रिश्तेदार बन जाता है. पर, जब रिश्ते बिगड़ते हैं, तब हम सोचते हैं कि ऐसा क्यों हुआ. जो अपनी गलती से सबक सीख लेते हैं, वे इतिहास बना देते हैं और जो नहीं सीखते हैं, वे दूसरों के इतिहास को रटते रहते हैं.
बचपन में पढ़ा था कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, पर उसका दोहराव हर बार अलग तरीके से होता है. कहानियां हम सब पढ़ते-सुनते हैं, कुछ सच्ची होती हैं, कुछ काल्पनिक, पर उनसे हम सीख क्या लेते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है. रिश्ते बनाना इंसानी फितरत है, पर रिश्ते निभाना सबको नहीं आता है. इसको सीखना पड़ता है. रिश्ते प्यार की नींव, अपनेपन के एहसास और समर्पण की ऊर्जा से चलते हैं. अगर इनमें कमी आती है, तो रिश्तों का इतिहास बनते देर नहीं लगती.
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