18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कांग्रेस की गलतियों का लाभ भाजपा को

।। पुष्पेश पंत।। (राजनीतिक विश्लेषक) इस समय देश में उन लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनका मानना है कि मोदी सरकार बनने का मतलब होगा जनतंत्र की तबाही और सांप्रदायिक दंगों का सैलाब. जाहिर है, इसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़े बिना नहीं रह सकता. मोदी तथा भाजपा के आलोचक यहीं नहीं रुकते, वह […]

।। पुष्पेश पंत।।

(राजनीतिक विश्लेषक)

इस समय देश में उन लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनका मानना है कि मोदी सरकार बनने का मतलब होगा जनतंत्र की तबाही और सांप्रदायिक दंगों का सैलाब. जाहिर है, इसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़े बिना नहीं रह सकता. मोदी तथा भाजपा के आलोचक यहीं नहीं रुकते, वह यह चेतावनी देते नहीं थकते कि भाजपा का संस्कार तानाशाही-फासीवादी है और एक बार सत्ता पर कब्जा करने के बाद वह नाम-मात्र को भी असहमति बर्दाश्त नहीं करेंगे, भारत जिस गंगा-जमुनी तहजीब का वारिस है, उसका नामोनिशान बाकी नहीं रहने देंगे ये लोग! भाजपा के राक्षसीकरण में कोई कसर नहीं छूटी है. ऐतिहासिक चुनाव अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है और आपके हमारे भविष्य से जुड़े इस सवाल पर ठंडे दिमाग से और खुले दिल से सोचने की चुनौती को टालना आत्मघाती ही साबित हो सकता है.

अत: सबसे बड़ी जरूरत यह याद रखने की है कि भाजपा कोई गैरकानूनी या प्रतिबंधित संगठन नहीं है. चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल है. इस समय देश का प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ही है. उसे अछूत मान कर निरंतर कठघरे में खड़े करने की नादानियों ने ही कांग्रेस को अकेला और हास्यास्पद बना दिया है. हकीकत यह है कि भाजपा को कांग्रेस की कमजोरी, लाचारी और कुनबापरस्त भ्रष्टाचार का ही फायदा होता नजर आता है. कुशासन एवं अहंकारी मानसिकता के खिलाफ आम आदमी के मन में जो आक्रोश है, उसको अपने पक्ष में भुनाने का मौका भाजपा और मोदी को खुद कांग्रेस ने दिया है.

फासीवादी बनाम जनतंत्र के संदर्भ में यह याद दिलाना जरूरी है कि देश के इतिहास में जनतंत्र का गला घोंटने की सबसे खतरनाक साजिश आपातकाल को लागू कर कांग्रेस ने ही की थी. हाल के महीनों में यूपीए की सरकार ने जिस तरह शिकंजे में फंसी अपनी गर्दन छुड़ाने के लिए लगभग सभी संवैधानिक अधिकारियों और संस्थाओं को बंधुआ बनाने की निर्लज्ज कोशिश की है, वह किसी से छुपी नहीं है. असहमति का स्वर मुखर करनेवाले साथियों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जैसा सलूक कांग्रेस में होता है, उसे किसी भी तरह से जनतांत्रिक करार नहीं दिया जा सकता. आला कमान के फरमानों के अनुशासन में रहने की परंपरा कांग्रेस का अनुसरण करते दूसरे दलों ने भी ग्रहण कर ली है. खुद दशकों से व्यक्तिपूजा में लिप्त कांग्रेस जब भाजपा पर तानाशाही का आरोप लगाती है, तो उसकी बची-खुची विश्वसनीयता भी नष्ट हो जाती है.

सांप्रदायिक हिंसा का ज्वालामुखी फटने का डर दिखानेवाले अगर जनता की नजरों में वाकई धर्मनिरपेक्ष समङो जा रहे होते, तो शायद मतदाता भी सहमत होते. लेकिन कांग्रेस हो या सपा वोट बैंक के रूप में अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल करनेवाले नेताओं की कलई पूरी तरह से खुल चुकी है. ‘सेक्यूलरिज्म’ एक ऐसा अंगरेजी शब्द है, जिसका अनुवाद निरक्षर वंचित तुष्टीकरण ही कर सकता है. आरक्षण की गाजर को चुनाव अभियान के दौरान बेरहमी से झुलाने का लोभ सवर्ण धर्मनिरपेक्ष बिरादरी कभी नहीं कर सकी. यह कोई कैसे नजरअंदाज कर सकता है कि कांग्रेस एवं अन्य गैरभाजपा शासित प्रदेशों में सांप्रदायिक हिंसा तथा घातक उपद्रव कहीं अधिक दुखदायी साबित हुए हैं.

इस सब से पाठकों को लग सकता है कि लेखक भाजपा का समर्थक, प्रशंसक या व्यक्ति-विशेष का अंधभक्त है. इसलिए यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वह भाजपा का समर्थक नहीं, परंतु निश्चय ही मौजूदा कांग्रेस का आलोचक जरूर है. जो ‘लहर’ मोदी के नाम के साथ जुड़ कर मशहूर हुई है, उसके जन्म का श्रेय भी कांग्रेस को दिया जाना चाहिए. असलियत यह है कि आम आदमी की कमर महंगाई ने तोड़ रखी है और भ्रष्टाचार के मारे वंचितों को न तो बीमारी में इलाज की सुविधा है और न उनकी संतानों के लिए ऐसी पढ़ाई का इंतजाम, जिससे वे आगे बढ़ने, रोजी-रोटी कमाने लायक हो सकें. देश के पिछड़ेपन और गरीबी के लिए कुल जमा पांच-छह साल केंद्र में सत्ता में रहे भाजपानीत एनडीए या अन्य किसी गैरकांग्रेसी गंठबंधन को जवाबदेह जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता. भाजपा शासित राज्यों को बदनाम करने की यूपीए की रणनीति बुरी तरह असफल रही है. अपनी राजनीतिक हस्ती को बरकरार रखने के लिए कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को पुश्तैनी जागीरों की तरह पाला पोसा जाता रहा है. इससे भी कांग्रेस के प्रथम परिवार का प्रभामंडल धूमिल हुआ है. नेहरू-गांधी परिवार से संबंधित किसी भी व्यक्ति की आलोचना को देशद्रोही करार देने की उतावली के कारण लेखक सरीखे अनेक समर्थक मोहभंग के बाद अलग राह चुनने को मजबूर हुए हैं. हर इंसान हमारे प्रधानमंत्री के बराबर सहनशील, उदार एवं स्वाभिमान के बोझ से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता है.

अंत में, यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि आर्थिक सुधारों के सूत्रपात के बाद भूमंडलीकरण के युग में आज विकास की प्राथमिकता के आधार पर कांग्रेस या भाजपा में भेद नहीं किया जा सकता. हर कोई रोटी, कपड़ा, मकान, सड़क, पानी, बिजली आदि को ही अपने घोषणापत्र में जगह देगा. सवाल पूछा जाना चाहिए कि इस विकास का सबसे ज्यादा लाभ किसे होगा और कौन अपने खून-पसीने से इसकी कीमत चुकायेगा? अगर एक तरफ एक परिवार है, जो अतीत में अपने पुरखों के बलिदान को भुनाते रह कर शासक बने रहने के जन्मसिद्ध अधिकार की दावेदारी करता है और प्रतिपक्ष की हर चुनौती को ध्वस्त करने के लिए धर्मनिरपेक्षता या सामाजिक न्याय के नारों को कवच और तलवार की तरह बरतना चाहता है. वहीं दूसरी तरफ, तमाम ऐसे विकल्प हैं, जिसमें सार्थक बदलाव की संभावना दिखायी देती है. ऐसे में यदि मतदाता जनतंत्र बनाम फासीवाद तथा धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता वाली नूराकुश्ती में फंस कर गर्त में जाने की बजाय भाजपा या आम आदमी पार्टी की तरफ आशा से देख रहा है तो दोष किसका है!

जो कोई भी मुकाबले में आमने-सामने खड़े ‘पहलवानों’ को तौलता है, उसे राहुल नौसिखिया, बड़बोले और अपने खानदान की महिमा से अभिभूत दिखायी देते हैं. इरादे चाहे नेक भले हों, काबिलियत का कोई पुख्ता सबूत आज तक किसी के हाथ नहीं लग सका है. दूसरी तरफ अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद भाजपा का स्वरूप एक राजनीतिक दल का ही है. वहां भी नेता और कार्यकर्ता की हैसियत में फर्क है. मूल्यों और आदर्शो में गिरावट बुजुर्गो को व्यथित करती है, पर दूसरे कई दलों की तुलना में हालत बहुत बेहतर है. अब चुनौती यह है कि क्या भाजपा इस कसौटी पर खरा उतर सकती है?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें