।। सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
मंगलवार को उत्तर प्रदेश के डुमरियागंज में नरेंद्र मोदी की रैलीनुमा चुनावी सभा चल रही थी. टेलीविजन के सीधे प्रसारण के जरिये मोदी जी मेरे बैठकखाने में घुसपैठ कर रहे थे. आप मोदी जी के लिए घुसपैठ शब्द के इस्तेमाल पर ऐतराज करें, इससे पहले मैं सफाई दे दूं कि यह इरादन नहीं किया गया है. पिछले कुछ दिनों से उनके मुंह से घुसपैठ और घुसपैठिया शब्द इतनी बार सुना है कि खामखाह ही दिमाग में आ जा रहा है. मोदी जी हस्बे मामूल सोनिया-राहुल-प्रियंका पर दनादन तीर पर तीर छोड़े जा रहे थे.
गांधी परिवार इससे कितना जख्मी हुआ, यह तो मालूम नहीं, पर मैं लगातार डरा हुआ था. मुङो गांधी परिवार का हमदर्द समझने की भूल मत कीजिएगा, मैं तो मोदी जी के अंदेशे में दुबला हुआ जा रहा था. दरअसल, नरेंद्र मोदी जी जगदंबिका पाल के लिए वोट मांगने पहुंचे थे. जगदंबिका जी मेरे ही जिले के हैं. बचपन से उन्हें हर चुनाव में कांग्रेसी झंडा उठाये देखता रहा हूं. इंदिरा जी के जमाने में भी और सोनिया गांधी के जमाने में भी. कुछ महीने पहले तक वह टीवी चैनलों पर राहुल गांधी के लिए भी पूरे दम-खम से बहस करते नजर आते थे.
वह गांधी परिवार के हमेशा करीबी रहे. इतने करीबी कि 1998 में कांग्रेस के नजदीकी माने जानेवाले राज्यपाल ने उन्हें उत्तर प्रदेश का एक दिन का मुख्यमंत्री तक बना दिया था. क्या मजाल थी कि कोई जगदंबिका जी के सामने गांधी परिवार की आलोचना करे और वह खामोश रहे जायें. तो मोदी जी चुनावी सभा में जिस तरह गांधी परिवार पर हमले बोल रहे थे, मुङो लगातार यह खटका होता रहा कि कहीं जगदंबिका जी उठ कर 56 इंच की छाती वाले से भिड़ न जायें. क्योंकि पुरानी आदतें मुश्किल से जाती हैं. लेकिन मेरी आशंकाएं निमरूल साबित हुईं. जगदंबिका जी खांटी सियासतदान निकले जिसे दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाते जरा भी वक्त नहीं लगता. इसी रैली में मोदी जी ने बात को खींचने, तानने और दूसरा रंग देने की कला का अद्भुत परिचय दिया. उनकी महारत देख बनारस के बुनकर और रंगरेज भी लजा रहे होंगे और दाद दे रहे होंगे कि यह बंदा तो हम लोगों से भी बढ़ कर है. ऐसे ही नहीं आया है बनारस! क्या महीन कातता-बुनता है! प्रियंका ने मोदी जी पर ‘नीच राजनीति’ करने का आरोप लगाया था.
मोदी जी ने बढ़ायी सफाई से उनके बयान में ‘नीच’ और ‘राजनीति’ के बीच ‘की’ शब्द फिट कर दिया. इस ‘की’ ने पूरा अर्थ बदल दिया और मोदी जी शेर की तरह गरज उठे कि मुङो नीच बताया गया है, मुङो नीची जाति का बताया गया है. एक गलती प्रियंका गांधी की भी है. अगर वह आरएसएस की शाखाओं में गयी होतीं, तो ‘नीच’ की जगह ‘तुच्छ’ शब्द का इस्तेमाल करतीं. अरे भाई, संस्कृत देववाणी है, इसमें तो गालियां भी संस्कारी लगती हैं. फिर मोदीजी भी यह आरोप नहीं लगा पाते कि वह भारतीय संस्कृति नहीं जानतीं.