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उच्च शिक्षा पर ध्यान
सेवा की गुणवत्ता के प्रश्न को उसकी उपलब्धता से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. सेवा का विस्तार इसलिए आवश्यक है कि वह सुलभ हो सके, लेकिन वांछित लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसका गुणवत्तापूर्ण होना भी अहम है. जहां तक गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का मसला है, भारत के लिए संतोष की बात यह […]
सेवा की गुणवत्ता के प्रश्न को उसकी उपलब्धता से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. सेवा का विस्तार इसलिए आवश्यक है कि वह सुलभ हो सके, लेकिन वांछित लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसका गुणवत्तापूर्ण होना भी अहम है. जहां तक गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का मसला है, भारत के लिए संतोष की बात यह है कि एशिया के श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में हमारी संस्थाओं की संख्या बढ़ी है.
टाइम्स हायर एजुकेशन की सूची में भारत की 42 संस्थाओं को एशिया के 350 श्रेष्ठ संस्थानों में शामिल किया गया है. पिछले साल इस सूची में हमारी 33 संस्थाएं ही स्थान प्राप्त कर सकी थीं. वैश्वीकरण के दौर में उच्च शिक्षा निवेश का एक आकर्षक क्षेत्र बनकर उभरा है और 50 प्रतिशत से अधिक युवा जनसंख्या के देश के लिए बहुत आवश्यक है कि उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थान गुणवत्ता के मामले में एशिया ही नहीं, वरन् विश्व की श्रेष्ठ संस्थाओं में शुमार हों.
इससे एक तो उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों का पश्चिमी देशों में जाना कम हो सकता है, दूसरे भारत एशिया में उच्च शिक्षा के एक आकर्षक केंद्र के रूप में उभर सकता है. लिहाजा, भारत को शिक्षा की बेहतरी की दिशा में पुरजोर कोशिश करने की जरूरत है, क्योंकि टाइम्स की सूची में एशिया के श्रेष्ठ 25 संस्थानों में एक भी भारतीय शैक्षणिक संस्थान नहीं है. बंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को 29वां स्थान मिला है. पिछले साल यह संस्थान 27वें पायदान पर था. एशिया या विश्व के शीर्षस्थ संस्थानों में भारतीय केंद्रों के न हो पाने के कई कारण हैं.
एक कारण संस्था की श्रेष्ठता निर्धारित करने की कसौटियों से संबद्ध है. उत्कृष्टता के निर्णय में अनेक बिंदुओं पर विचार किया जाता है. उदाहरण के लिए, एक समयावधि में कितने शोध में हुए, शोध कार्य का स्तर क्या है, संस्थान में शोध का परिवेश कैसा है, शिक्षकों और छात्रों का अनुपात कैसा इत्यादि.
ऐसी कसौटियां पश्चिमी देशों में भाषा, विषय तथा आधुनिक ज्ञान के केंद्रों के ऐतिहासिक विकास के बरक्स उपनिवेश होने की नियति झेल चुके भारत के लिए अपेक्षाकृत बाधक साबित होती हैं. इस दृष्टि से एक बड़ी आवश्यकता तो यही है कि एशियाई देश शिक्षण-संस्थाओं की गुणवत्ता के आकलन का एक प्रतिमान स्वयं तैयार करें. दूसरी बड़ी आवश्यकता उच्च शिक्षा को समुचित निवेश के माध्यम से पर्याप्त विस्तार देने की है. देश में कॉलेज जाने की उम्र (18-23 वर्ष) के लगभग 14 करोड़ व्यक्ति हैं.
कॉलेजों की संख्या के हिसाब से देखें, तो ऐसे एक लाख लोगों पर देश में औसतन 25 कॉलेज ही हैं. उच्च शिक्षा में सकल नामांकन प्रतिशत के मामले में भारत (21.1 प्रतिशत) कुछ विशेष देशों, जैसे- चीन (30 प्रतिशत), जापान (55 प्रतिशत), ब्रिटेन (59 प्रतिशत) और अमेरिका (34 प्रतिशत) की तुलना में बहुत पीछे है. ढांचागत अभाव की इस स्थिति को त्वरित प्रयासों से ठीक किया जाना चाहिए, अन्यथा उपलब्धियों पर भविष्य में ग्रहण लग सकता है.
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