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नये अमेरिकी टैक्स लॉ का असर
डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के पद संभालने के बाद अमेरिका की आर्थिक, सामाजिक एवं विदेश नीति में भारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हालांकि आर्थिक जानकार डोनाल्ड ट्रंप के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं, लेकिन आमतौर पर उनकी नीतियों के बारे में उनके समर्थकों के अतिरिक्त […]
डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के पद संभालने के बाद अमेरिका की आर्थिक, सामाजिक एवं विदेश नीति में भारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हालांकि आर्थिक जानकार डोनाल्ड ट्रंप के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं, लेकिन आमतौर पर उनकी नीतियों के बारे में उनके समर्थकों के अतिरिक्त शेष सभी बहुत अच्छी राय नहीं रखते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के फलस्वरूप अमेरिकी अर्थव्यवस्था और समाज पर क्या प्रभाव होंगे, अभी यह कहना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि ट्रंप द्वारा अमेरिका के टैक्स कानूनों में बदलाव, जिसे वे कर सुधारों का नाम दे रहे हैं, के बारे में लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया आ रही है.
पहले सिनेट में पारित होने और फिर ट्रंप द्वारा 22 दिसंबर, 2017 को उस पर हस्ताक्षर करने के बाद नया कानून लागू हो चुका है.ट्रंप का यह कहना है कि नये कानून द्वारा करों में राहत देकर उन्होंने व्यापार और उत्पादन को प्रोत्साहित किया है. गौरतलब है कि नये टैक्स कानून के हिसाब से व्यवसाय और व्यक्तियों पर करों की दर कम की गयी है, निजी कर को आसान बनाने के लिए कई कटौतियों को हतोत्साहित करते हुए मानक कटौती बढ़ायी गयी है.
एक्साइज ड्यूटी भी कम की गयी है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग दस साल बाद सरकार को करों में फायदा मिलना शुरू होगा. दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि इससे लगभग 1.5 खरब डाॅलर का कर्ज अमेरिकी सरकार पर बढ़ जायेगा.
काॅरपोरेट टैक्स की दरों को 35 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत करने के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि इसके द्वारा निवेश बढ़ेगा और भविष्य में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट 3 से 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है.
इसके पीछे दो तर्क हैं. एक, निवेश के लिए ज्यादा धन उपलब्ध होगा और दूसरे, टैक्स में कटौती से अधिक आय अर्जित करने को प्रोत्साहन मिलेगा. ट्रंप का यह कहना है कि नये टैक्स कानून से अमीरों को, खासतौर पर सबसे ज्यादा अमीरों पर टैक्स कम नहीं होगा. वहीं ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इससे सरकारी घाटा भी नहीं बढ़ेगा. लेकिन, आलोचकों का मानना है कि सरकार का घाटा जरूर बढ़ेगा.
अमेरिका द्वारा नया टैक्स कानून लाने के बाद यूरोप और अन्य देशों में चिंता व्याप्त हो गयी है. देखा जाये तो यूरोपीय देशों में आयकर की दर सामान्य तौर पर अमेरिका में टैक्स की दर से कहीं ज्यादा है.
इसका स्वाभाविक कारण यह है कि वहां की सरकारें सामाजिक सुरक्षा हेतु खासा खर्च करती हैं, इसलिए यूरोप में ज्यादा कर लगाने का रिवाज है. यूरोप और अन्य देशों में यह चिंता व्याप्त है कि इसके कारण अमेरिका के पक्ष में निवेश एवं वित्तीय प्रवाह बढ़ जायेंगे, क्योंकि पूंजीगत आमदनियों पर अमेरिका में टैक्स कम लगेगा.
उधर अमेरिका द्वारा एक्साइज ड्यूटी घटाने के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित होगा. उनका यह भी कहना है कि चूंकि यह एकतरफा कदम है और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के विरुद्ध है.
अमेरिका का नया टैक्स कानून व्यापार और निवेश को बुरी तरह से प्रभावित करेगा और करों में कटौती वास्तव में सब्सिडी ही कहलायेगी, जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के विरुद्ध है.
यूरोपियन कमीशन ने अमेरिकी राजस्व सचिव से कहा है कि अमेरिका के इस कदम से टैक्स कानूनों को स्थानीय फर्मों को लाभ पहुंचाने हेतु इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि वे अपने निर्यात बढ़ा सके और आउटसोर्स को हतोत्साहित कर सके. इससे अमेरिका में काम करनेवाली बाहरी कंपनियों को नुकसान पहुंचेगा. यही नहीं, ओइसीडी में भी किये गये अनुबंधों का यह कानून उल्लंघन करता है. यूरोपीय संघ ने यह भी धमकी दी है कि इसकी वजह से दोहरे कर पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध टूट सकते हैं.
भारत के आर्थिक जगत में भी अमेरिका के नये टैक्स कानून के कारण खलबली मच रही है. यह तो सही है कि अमेरिका के स्वयं नये कानून से राजस्व में भारी घाटा होगा, लेकिन यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि कम टैक्स के चलते भारत से पूंजी का पलायन हो सकता है.
इसलिए अमेरिका के नये टैक्स कानून की छाया आगामी बजट पर भी पड़ सकती है. वित्त मंत्री अरुण जेटली पर यह दबाव रहेगा कि वो काॅरपोरेट टैक्स की दर को कम करें. चूंकि इस वर्ष सरकार पर अधिक संसाधन जुटाने का भी दबाव रहेगा, इसलिए यह संभव नहीं दिखता. लेकिन, यदि ऐसा होता है, तो देश में असमानता और बढ़ेगी, और सरकार को संसाधनों की कमी से जूझना पड़ेगा.
नये टैक्स कानून से चीन भी परेशान है. उसको विशेष खतरा इसलिए है कि भारी मात्रा में डाॅलर चीन से निकलकर अमेरिका पहंुच जायेंगे, क्योंकि अब उन्हें वहां ज्यादा लाभ मिलेगा. यूरोप में जहां मंदी है, वहां से अब पैसा अमेरिका में स्थानांतरित हो सकता है और उनकी मंदी की परिस्थिति को और ज्यादा प्रभावित कर सकता है.
लेकिन, अमेरिकी प्रशासन इन बातों से बिल्कुल भी प्रभावित न होते हुए नयी कर व्यवस्था को लागू करने हेतु आगे बढ़ रहा है और उसका कहना है कि ओबामा के शासनकाल में जिस तरह अत्यधिक विनियमन के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था दो प्रतिशत विकास दर पर अटक गयी थी, नयी कर प्रणाली में जीडीपी ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा, अमेरिकी कंपनियों और लोगों को ज्यादा कमाने हेतु प्रोत्साहन मिलेगा और ट्रंप की ‘अमेरिका पहले’ की नीति को सफल करने में कामयाबी मिलेगी.
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