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बैंक में डकैती डालने की कोशिश हो और मुकामी लोग डकैतों की गोलियों की परवाह किये बिना उन्हें मार भगाने की कोशिश करें, तो निश्चित ही उनके साहस की दाद देनी पड़ेगी. ऐसी घटना को अमूमन राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाता. लेकिन यह अगर कश्मीर घाटी में घटी हो और लूटेरे अगर आतंकी हों, […]

बैंक में डकैती डालने की कोशिश हो और मुकामी लोग डकैतों की गोलियों की परवाह किये बिना उन्हें मार भगाने की कोशिश करें, तो निश्चित ही उनके साहस की दाद देनी पड़ेगी. ऐसी घटना को अमूमन राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाता.
लेकिन यह अगर कश्मीर घाटी में घटी हो और लूटेरे अगर आतंकी हों, तो ऐसी घटना के राजनीतिक निहितार्थ को नजरअंदाज करना मुश्किल है. अक्सर कहा जाता है कि भारतीय राजसत्ता को भरोसा बहाली के उपाय करने होंगे, क्योंकि कश्मीरी जनता कई कारणों से सियासी-समाजी जिंदगी की मुख्यधारा से अपने को अलग समझती है और अलगाव की भावना के कारण ही वह भारतीय सुरक्षाबलों से असहयोग करती है तथा आतंकियों-अलगाववादियों से लगाव रखती है.
लेकिन घाटी के नूरपोरा इलाके में स्थानीय लोगों ने जिस साहस का परिचय दिया है और आतंकियों की कोशिश को नाकाम किया है, उसे देखते हुए कश्मीरी अलगाववाद का दशकों पुराना कथानक अलग तरीके से सोचने की मांग करता है. अकारण नहीं है कि कश्मीर रेंज के पुलिस महानिदेशक ने इस घटना की सियासी अहमियत को समझते हुए लोगों के साहस की प्रशंसा भी की है.
बैंक लूट की घटना में आतंकियों के विरुद्ध लोगों का उठ खड़ा होना इस बात का संकेत है कि कश्मीर में अमन-चैन की बहाली की कोशिशें रंग लाने लगी हैं. हाल-फिलहाल की कई घटनाएं संकेत करती हैं कि सरकार के प्रयासों का सकारात्मक असर हुआ है. सितंबर के महीने में सेना के जवानों से भरा एक वाहन बड़गाम जिले में एक पहाड़ी सड़क से नीचे फिसलकर उलट गया और सैनिक घायल हुए. घायल सैनिकों को निकालने और मरहमपट्टी करने का काम कश्मीरी नौजवानों ने भरपूर उदारता से किया था.
पत्थरबाज कश्मीरी नौजवान की छवि पर जोर देते समय बड़गाम जिले की इस घटना को भी याद रखा जाना चाहिए. इस सिलसिले में पिछले दिसंबर की घटना भी याद की जा सकती है. तब फर्ज अंजाम देते हुए राज्य के पुलिसकर्मी अब्दुल करीम शेख आतंकियों की गोली का शिकार हुए थे. उस समय हमदर्दी का एक सैलाब उमड़ा था और अब्दुल करीम के जनाजे में बहुत बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए.
उस बात की चर्चा आज भी कश्मीर घाटी में होती है. अभी कश्मीर घाटी से एक अच्छी खबर और आयी है. राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, कश्मीर में 2015 और 2016 में विदेशी सैलानियों के खिलाफ अपराध की एक भी घटना नहीं हुई है.
कुछ समय पहले कश्मीर मसले पर केंद्र सरकार ने वार्ताकार नियुक्त किया है, जो विभिन्न तबकों से बातचीत कर रहे हैं. इससे सभी पक्षों के लिए अपने गिले-शिकवे दूर करने और अमन की राह तलाशने का एक अवसर पैदा हुआ है. ऐसे में कश्मीर और देश के अन्य हिस्से के हर राजनीतिक दल और राजनेता के लिए जरूरी है कि वह निजी या दलगत स्वार्थों से उपर उठते हुए कश्मीर में अमन बहाली के लिए संवेदनशील रवैया अपनाये.

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