नक्सली हमारे जवानों की हत्या कर रहे हैं. चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं. गांव-देहातों में अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं. इस मसले को सुलझाने को लेकर इस बार के चुनाव में भाग ले रहे किसी भी राजनीतिक दल का कोई एजेंडा सामने नहीं आया. आखिर जनता कैसे जाने कि इस विषय पर उनके विचार क्या हैं? इस चुप्पी का मतलब यह होता है कि सरकार ने भी मान लिया है कि नक्सलवाद के मर्ज की अब कोई दवा नहीं है. यह नासूर बन कर बढ़ता ही जा रहा है़.
कुछ दिनों पहले अखबारों में खबर आयी थी कि वे सरकार से शांति वार्ता के लिए तैयार हैं, तो सरकारी मशीनरी उनसे बात क्यों नहीं करती? उनकी क्या समस्याएं हैं? वे इतना खून क्यों बहाते हैं? झारखंड आज नक्सलियों की चपेट में है. ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का काम रुका हुआ है़ आखिर कब थमेगा यह सिलसिला?
प्रदीप कुमार, जमशेदपुर