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क्या दाऊद भारत लौटेगा!

अनुराग चतुर्वेदी वरिष्ठ पत्रकार दाऊद इब्राहिम 1993 में हुए मुंबई बम धमाके का मुख्य आरोपी है, जो टाइगर मेमन के साथ अदालत द्वारा भगोड़ा साबित हो चुका है. दाऊद और दुबई कभी एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे, पर अब धीरे-धीरे दाऊद और पाकिस्तान एक-दूसरे से जुड़ गये हैं. इस समय पाकिस्तान की सेना और […]

अनुराग चतुर्वेदी
वरिष्ठ पत्रकार
दाऊद इब्राहिम 1993 में हुए मुंबई बम धमाके का मुख्य आरोपी है, जो टाइगर मेमन के साथ अदालत द्वारा भगोड़ा साबित हो चुका है. दाऊद और दुबई कभी एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे, पर अब धीरे-धीरे दाऊद और पाकिस्तान एक-दूसरे से जुड़ गये हैं. इस समय पाकिस्तान की सेना और वहां की आइएसआइ दाऊद की सबसे बड़ी रक्षक है.
दाउद भारत आना चाहता है. वह गंभीर रूप से बीमार है, अपने अंतिम दिन वह भारत में गुजार इस धरती से विदा होना चाहता है. भारत की सुरक्षा और राष्ट्रवाद को लेकर हमेशा आगे रहने वाली भाजपा इस समय केंद्र और महाराष्ट्र में शासन कर रही है.
दाऊद केंद्र की पुरानी सरकारों के कारण ही विदेश में बचा रहा, हमारे ‘कुछ’ राजनेताओं के सरकारी संरक्षण के कारण एक छोटा-सा स्मगलर एक बड़ा आतंकवादी बन गया, यह सोच रखनेवाली वर्तमान सरकार दाऊद को भारत लाकर उसे भारतीय कानून के तहत सजा दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध है. सरकार और कई ‘लोग’ दाऊद को वापस लाने पर कार्य कर रहे हैं. अगले दो साल इसका परिणाम बतायेंगे.
ऐसा नहीं है कि पहली बार दाऊद को भारत लाने की कोशिश हो रही है. मुंबई बम धमाकों के बाद दाऊद को भारत लाने की कोशिश महाराष्ट्र के एक बड़े राजनेता की मदद से हुई. जब गुप्तचर संस्थाओं को इस मंशा की जानकारी मिली, तो उन्होंने इसकी विश्वसनीयता की जांच की. मुंबई पुलिस के मुखबिर से मिली इस खबर को मुंबई पुलिस के आयुक्त के अलावा जानी-मानी अमेरिकी गुप्तचर संस्था ने भी पुन: पुष्टि की और समर्पण के सवाल पर लगे सवालिया निशानों को गलत बताया. दो-ढाई माह इस समर्पण की प्रक्रिया तय करने में लग गये.
इस प्रक्रिया में खाड़ी देशों की सरकारों को दूर रखा गया था, पर इस प्रक्रिया में जो ‘राजनेता’ संवाद सूत्र बना हुआ था, वह ‘समझौता वार्ता’ से दूर हो गया, क्योंकि दोनों ही पक्षों (दाऊद और भारत) को एक-दूसरे पर भरोसा नहीं था. अब फिर से दाऊद को भारत लाने की कोशिश हो रही है. भारत सरकार की गुप्तचर सेवा में रहे कई अधिकारी पिछले दो-तीन वर्षों से इस मिशन में लगे हुए हैं.देशभर में निर्माण क्षेत्र में मंदी आयी है. दाऊद वसूली और आतंक के जरिये मुंबई में राज करता था.
बहुत कुछ बदल कर भी यह बात नहीं बदली है, वह यह कि दाऊद की कहानी में जिज्ञासा, संदेह, बदला, अपराध और हत्याएं हैं. अखबार, टीवी और फिल्मों के लिए वह आज भी पहला पन्ना, अच्छी टीआरपी और अच्छा बिजनेस है.
एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने हाल ही में मराठी में अपनी वेबसाइट शुरू की, जिसकी पहली स्टोरी थी मुंबई में सेवानिवृत पुलिस अधिकारी वाइसी पवार का साक्षात्कार, जिसमें वे कहते हैं कि वे विस्फोट के बाद मुंबई पुलिस की तरफ से पाकिस्तान जाकर दाऊद को मारने की योजना का हिस्सा थे. जबकि वे सिर्फ मध्य मुंबई के संयुक्त पुलिस अधिकारी थे. बापट सिंह और मारिया उनके वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे. एक अंतरराष्ट्रीय संस्था को भी अपनी पैठ जमाने के लिए दाऊद के ‘सहारे’ की जरूरत है.
दाऊद मुंबई में ‘डी कंपनी’ के रूप में जाना जाता है और उसका पूरा कारोबार करीब 6.2 बिलियन डॉलर का है. एमएम बोरा समिति ने अपराधियों और राजनेताओं के रिश्तों की जांच करते हुए जो रपट दी थी, उसमें कई राजनेताओं और दाऊद के संबंधों पर प्रकाश डाला था और तब की सरकार ने यह मानते हुए कि यह रपट बहुत नुकसानदायक है, ठंडे बस्ते में डाल दिया.
राज्यसभा में भी एक बहस के दौरान यह आरोप लगाये गये थे कि विमानन क्षेत्र में दाऊद ने वैधानिक निवेश किये हैं. उसनेमुंबई और आसपास निर्माण क्षेत्र में निवेश किया है. ऐसे में एक पैसेवाले अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी को वापस लाना आसान कार्य नहीं होगा.
दाऊद ने मुंबई में पठान गैंग का खात्मा करके अपना सम्राज्य फैलाया. करीम लाला और हाजी मस्तान गैंग को खत्म कर वह अंडरवर्ल्ड का बादशाह बन गया. बाबू रेशम को भायखला जेल और रमा नाईक को उसने पुलिस स्टेशन में ही मारा. छोटा राजन भी शुरू से दाऊद के साथ था, पर बाद में वह अलग हो गया. 1993 के विस्फोट के पहले दाऊद मुंबई में मान्य था. वह शारजहां में क्रिकेट देखते हुए तिरंगा लहराता था.
वह तस्कर था, अपराधी-आतंकी नहीं था, लेकिन मुंबई विस्फोट के बाद वह खूंखार आतंकवादी बन गया.
याकूब मेमन ने आत्मसमर्पण किया और बाद में उसे फांसी की सजा हुई. तो क्या टाईगर मेमन और दाऊद इब्राहिम भारत आयेंगे? सोने के पिंजरे में बंद इस अपराधी को आइएसआइ भारत वापस भेजने देगा? इन सवालों के जवाब के बगैर दाऊद की कहानी अधूरी रह जायेगी. दाऊद अखबार, टीवी राजनीतिक दलों के लिए चहेता है और आज भी सुर्खियां बटोरने के लिए उसे जाना जाता है.
जिस प्रकार से यह सजा सार्वजनिक हुई है, उससे तो लगता है अभी दाऊद का भारत आना कठिन है. अगर वह भारत आता है, तो कानून उसका इंतजार कर रहा है. वह अपराधी भी है और आतंकी भी.

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