निगरानी विभाग ने जब रांची में उत्पाद विभाग के एक दारोगा विश्वनाथ राम के घर छापा मारा, तो उसे चार करोड़ से अधिक की संपत्ति मिली. उसे एक दिन पहले ही रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के बाद दारोगा ने बयान दिया था कि सहायक उत्पाद आयुक्त को पैसा देने के लिए उसने रिश्वत ली थी. यह हाल है झारखंड का.
एक दारोगा के घर चार करोड़ की संपत्ति मिलना, यह बताने के लिए काफी है कि राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर है. उत्पाद विभाग तो पहले से बदनाम रहा है. इस विभाग में पोस्टिंग ऐसे नहीं होती है. बड़ी पैरवी हो और बड़ी घूस दी जाये तभी कोई एक्साइज दारोगा बनता है. विभाग में ऐसे अफसर अपवाद होंगे, जो अवैध कमाई में न लगे हों. जो दारोगा पकड़ा गया है, अगर इस मामले की तह तक जांच हो तो मालूम होगा कि उसके तार कहां तक जुड़े हैं. घूस का पैसा ऊपर तक कैसे पहुंचता है. अगर उस दारोगा के बयान को सही मान लें तो ऊपर के अफसर शक के घेरे में हैं. जब अधिकारियों का यह हाल है तो राजनीतिज्ञों का क्या हाल होगा? कुछ विभाग ऐसे हैं जो भ्रष्टाचार के खास ठिकाने हैं.
इनके पैसों का जोर इतना ज्यादा होता है कि कोई इन पर कार्रवाई नहीं करता. अगर निगरानी ने हाथ लगाया है तो उसकी प्रशंसा होनी चाहिए, लेकिन यह भी सत्य है कि सिर्फ गिरफ्तारी से भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगेगी. इसे अंजाम तक पहुंचाना होगा. साक्ष्य के अभाव में भ्रष्ट अफसर छूट जाते हैं. निगरानी पर भी दबाव होता है कि ऐसे अफसरों के साथ नरमी बरती जाये. निगरानी को इस दबाव से निकलना होगा. दारोगा हों या आयुक्त, अगर प्रमाणित हो जाये कि घूसखोर हैं, बेईमान हैं, तो उनका सिर्फ निलंबन नहीं होना चाहिए. आपराधिक मामला चलाते हुए उन्हें नौकरी से बरखास्त करना चाहिए.
अगर ऐसे कड़े निर्णय सरकार ले, तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और बेईमान डरेंगे. भ्रष्ट अफसरों में डर नहीं होता, क्योंकि वे छूट जाते हैं. कार्रवाई नहीं होती. अगर जिंदगी जेल में बीतने लगे, नौकरी जाने लगे, तभी सुधार दिखेगा. इसके साथ ही वैसे राजनीतिज्ञों को भी पकड़ना होगा, बड़ी मछली को भी सामने लाना होगा, जिनके समर्थन से भ्रष्ट अफसर राज कर रहे हैं. काम कठिन भले ही हो, लेकिन असंभव नहीं है.