बिहार सरकार ने तेजाब के हमले में मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजा देने के लिए बिहार तेजाब प्रतिकार योजना की शुरुआत की है. इसके तहत तीन लाख रुपये तक मुआवजा तय किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लिये गये इस फैसले को उन पीड़ितों के जख्मों पर मरहम के रूप में देखा जा सकता है, जिन्हें जिंदगी भर नहीं भरनेवाला भयावह जख्म मिला है.
तेजाब फेंकने की घटना केवल जघन्य अपराध नहीं है, बल्कि मानसिक विकृति का नतीजा भी है. ऐसे ज्यादातर मामलों में यह देखने को मिला है कि बदले की भावना से प्रेरित होकर किसी इनसान को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से तेजाब फेंका गया है. इससे हंसता-खेलता जीवन एक ही झटके में असह्य पीड़ा में डूब जाता है. पीड़ित पर दुखों व कष्ट का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है. चाहे वह परिवार हो या समाज, सभी उसे एक अलग नजर से देखने लगते हैं. महंगे इलाज व दर्जनों ऑपरेशन के बाद भी वह पहले जैसी स्थिति में नहीं आ पाता है.
एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर साल तेजाब फेंकने की लगभग एक हजार घटनाएं होती हैं. इनमें पचहत्तर से अस्सी फीसदी मामले ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ित महिलाएं होती हैं. इनमें नाबालिग बच्चियों की संख्या भी अच्छी-खासी होती है, जिन्हें किशोरावस्था में ही जिंदगी भर के लिए भयावह जख्म मिल जाते हैं. एसिड सर्वाइवर ट्रस्ट इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं की ओर से तेजाब पीड़ितों के लिए जिस तरह के काम किये जा रहे हैं, उससे एक उम्मीद जरूर जगी है. हाल के वर्षो में तेजाब पीड़ितों के मामले विभिन्न मंचों पर उठे प्रमुखता से हैं. 2003 में झारखंड में तेजाब कांड की शिकार हुई सोनाली मुखर्जी ऐसे मामलों के राष्ट्रीय पैरोकार के रूप में उभरी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दिशा में पहल की है और राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश भेजा है.
इससे उम्मीद बंधती है. तेजाब पीड़ितों के लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के साथ-साथ कानूनी स्तर पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की मुहिम चलाने की जरूरत है. इस तरह की बुराई को जड़ से खत्म करने की दिशा में पहल होनी चाहिए. इसके लिए तेजाब पीड़ितों के लिए जो आंदोलन चल रहे हैं, उन्हें बड़ा और व्यापक बनाना होगा. तभी ऐसी घटनाओं पर लगाम लगेगी.