भारत जैसे गौरवशाली देश में कन्या-भ्रूण हत्या संबंधी खबरों का दिनोंदिन अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनना निंदनीय और चिंतनीय है. महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण और लिंग निर्धारण की वैज्ञानिक विधियों की उपलब्धता इस निरीह कर्म का पालन-पोषण कर रही हैं.
परिणामस्वरूप कन्या-भ्रूण हत्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है, जो हमारे देश व समाज के लिए आगे चलकर खतरनाक साबित हो सकती है. आखिर क्यों इस कन्याभ्रूण हत्या पर कठोर से कठोर कानून बनने के बाद भी परिणाम ढाक के तीन पात हो जाता है.
ऐसे कुकृत्य करने वाले लोग मृत्यदंड के भागी हैं. अस्पतालों में यह पतित कार्य चोरी-छिपे आज भी किये जाते हैं. देवी समान पूजनीय और सर्वत्र अपनी ममतामयी छाया प्रदान करने वाली नारी पर अब तो रहम करो समाज के सज्जनों!
।। परिमल मुर्मू ।।
दुमका