भाजपा के दो वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह की आंखों में लोकसभा टिकटों के लिए आंसू देख कर दु:ख और दया के मिश्रित भाव आते हैं. लेकिन कुरसी चीज ही ऐसी होती है और कहा भी गया है कि बच्चे और बूढ़े का मन एक जैसा होता है. दूसरी ओर ऐसे वृद्धों का अनुभव ज्ञान से कहीं आगे है जो पार्टी और देश के लिए अनमोल है.
वैसे भी दिलो-दिमाग से ही तो कोई छोटा-बड़ा होता है. सिर्फ ये दोनों नेता ही नहीं, बल्कि दूसरी पार्टियों के भी कई ऐसे नेता दिलो-दिमाग से खुद को युवा ही मानते हैं. असल में हकीकत भी यही है जिसे इनकार भी नहीं किया जा सकता. कई बातों में तो आज के युवाओं से तो वृद्ध कहीं आगे हैं और हमें हर हाल में बड़ों का आदर करना चाहिए. लेकिन इस जालिम कलियुग को देखते हुए वृद्धों को भी समय व हालात देख कर चलने की जरूरत है.
वेद प्रकाश, नयी दिल्ली