नयी कहावत है कि चुनावी जंग में हर पैंतरे की आजमाइश जायज है. आज हर राजनीतिक दल में ऐसे लोग हैं, जो पार्टी सिद्धांत व संविधान को ताक पर रख कर काम करते हैं. चुनाव घोषित होते ही दल-बदल या टिकट लेने की होड़ किसी से छिपी नहीं है. उम्मीदवार व समर्थक हर हाल में जीतने के लिए जोर लगाते हैं. पसंद-नापसंद को लेकर दलों के अंदर भितरघात आज प्रत्याशियों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.
आजसू के एक विधायक ने जो किया है, वह पार्टी विरोधी गतिविधि है या नहीं, यह तो पार्टी अध्यक्ष देखेंगे. लेकिन, एक बात तय है कि ऐसे छिछोरे क्रियाकलापों को जनता देख रही है. विधायक जी लोहरदगा से पार्टी उम्मीदवार शिशिर टोप्पो को नामांकन से रोकने के लिए पार्टी का सिंबल लेकर ही भाग गये. सवाल उठता है कि विरोध का यह तरीका कितना जायज है? पार्टी ने शिशिर को उम्मीदवार घोषित किया था. कार्यकर्ता नामांकन में जाने के लिए तैयार थे. लेकिन, ऐन वक्त पर ऐसी खबर मिलने से कार्यकर्ताओं की भावनाओं के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, इसका दोषी कौन है? यह अनुशासन भंग करती उद्दंडता नहीं तो और क्या है? क्या ऐसे लोगों को दलीय हित या जनमत की परवाह नहीं है? ऐसा दृश्य इस आम चुनाव में खूब देखने को मिल रहा है.
वर्षो से पार्टी के झंडाबरदार रहे नेताओं के टिकट कट रहे हैं, तो दूसरी तरफ रसूखदार आयातित लोगों को उम्मीदवारी दी जा रही है. इसे राजनीतिक दलों के अंदर नैतिक क्षरण का परिणाम माना जाये या येन-केन-प्रकारेण जीत हासिल करने का हथकंडा. आज सोशल मीडिया के सहारे वोटर मुखर हो गये हैं. पार्टी प्रत्याशियों की प्रत्येक गतिविधि चंद मिनटों में सुर्खी बन जा रही है. बावजूद इसके आचार संहिता के उल्लंघन व दूसरी अनैतिक हरकतों से उम्मीदवार बाज नहीं आ रहे हैं. ऐसी हिमाकत को लोकतंत्र की परंपरा पर प्रहार कहा जाये तो अनुचित नहीं होगा. एक सुंदर व विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों को ईमानदार पहल करते हुए चुनावी जंग में हिस्सा लेना चाहिए. यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता भ्रष्ट व अनैतिक हथकंडे अपनाने वालों को कभी पनपने नहीं देगी. स्वच्छ छवि के लोगों को प्रत्याशी बना कर ही पार्टियां जनता का दिल जीत सकती हैं.