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मैथिली एवं हिंदी के वरिष्ठ कवि एवं आलोचक हरेकृष्ण झा नहीं रहे

रांची : मैथिली एवं हिन्दी के वरिष्ठ कवि, अनुवादक और आलोचक हरेकृष्ण झा नहीं रहे. 24 अप्रैल को उन्होंने पटना में अंतिम सांस ली. मैथिली के उत्कृष्ट कवियों में गिने जाने वाले हरेकृष्ण झा को देर रात तक जगने एवं देर तक सोने की आदत थी. 24 अप्रैल को अपने समय से वह नहीं उठे. […]

रांची : मैथिली एवं हिन्दी के वरिष्ठ कवि, अनुवादक और आलोचक हरेकृष्ण झा नहीं रहे. 24 अप्रैल को उन्होंने पटना में अंतिम सांस ली. मैथिली के उत्कृष्ट कवियों में गिने जाने वाले हरेकृष्ण झा को देर रात तक जगने एवं देर तक सोने की आदत थी. 24 अप्रैल को अपने समय से वह नहीं उठे. काफी देर के बाद भी नहीं उठे, तो उनकी बहन उन्हें जगाने के लिए गयीं. लेकिन, उन्होंने देखा कि उनके भाई अब इस दुनिया में नहीं हैं. भाई का शव देखते ही बहन मूर्छित होकर गिर गयीं.

श्री झा के निधन की खबर परिजनों और संबंधियों को दी गयी. देर रात एक बजे पटना के गुलाब घाट पर उनका दाह-संस्कार संपन्न हुआ. मैथिली के विरल कवियों में गिने जाने वाले श्री झा वामपंथी विचारधारा में विश्वास करते थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस रचनाकार के अध्ययन का क्षेत्र विशाल था. क्रांतिकारी विचार के हरेकृष्ण झा ने छात्र जीवन में ही अव्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दी थी. एक बार अव्यवस्था के खिलाफ इन्होंने परीक्षा में शामिल होने से इन्कार कर दिया था.

इंजिनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाले श्री झा की मैथिली में कविता संकलन ‘एना त नहि जे’ एवं वाल्ट विटमन की कविताओं का अनुवाद ‘ई थिक जीवन’ प्रकाशित हुई. पहली पुस्तक के लिए इन्हें ‘वैदेही’ सम्मान एवं दूसरी के लिए 24 फरवरी को प्रबोध सम्मान दिया गया था.

पाब्लो नेरुदा की कविताओं के अनुवाद के अतिरिक्त इन्होंने अनेक मौलिक कविताएं भी लिखीं. इनके कई आलोचनात्मक लेखों के संकलन का प्रकाशन अभी बाकी है. उन्होंने ‘राजस्थानी साहित्य का इतिहास’ का अंग्रेजी से मैथिली में अनुवाद किया. इसके अलावा भी उन्होंने कई अंग्रेजी पुस्तकों का मैथिली में अनुवाद किया.

हिंदी में भी उन्होंने कविताएं लिखीं. उनकी एक पुस्तिका ‘धूप की एक विराट नाव’ प्रकाशित हो चुकी है. इन्होंने घोषणा कर रखी थी कि उनके निधन की सूचना ज्यादा लोगों को न दी जाए. निकट संबंधी विद्युत शव दाह गृह में उनका अंतिम संस्कार कर दें. ताम झाम न करें. एक कप चाय पीकर लौट आएं. इसके अतिरिक्त कुछ भी न करें. अपने संकल्प के अनुसार, अविवाहित जीवन व्यतीत करते हुए इस संसार से वह विदा हो गये.

योगदा कॉलेज के हिंदी के प्राचार्य नरेंद्र झा ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने हरेकृष्ण झा की स्मृति को शत-शत नम करते हुए कहा कि उनके साथ श्री झा का लंबा संबंध रहा. दिवंगत झा को भूल पाना मुश्किल है. श्री झा ने कहा कि हरेकृष्ण झा जैसे विलक्षण व्यक्तित्व का इस तरह से जाना यह दर्शाता है कि हमारे समाज में किसी जीनियस के प्रति कितनी उदासीनता होती है. कठिन परीक्षा से गुजरने के बावजूद उसे वह पहचान नहीं मिल पाती, जिसका वह हकदार होता है.

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