नयी दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में शीर्ष नौकरशाहों को दिया गया पूरा संरक्षण भ्रष्टाचार निरोधक कानून के विपरीत लगता है. कोर्ट ने कहा, ‘अगर शीर्ष नौकरशाहों में से नीति निर्माता को जांच से संरक्षण मिलता है, तो फिर कानून की कठोरता का सामना किसे करना चाहिए? निचले स्तर की नौकरशाही नीतिगत फैसलों को लागू करती है? नौकरशाहों का यह वर्ग दूसरों से कैसे अलग है?’ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘सभी नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार निरोधक कानून से संरक्षण मिलता है, जिसके तहत जांच एजेंसी अभियोजन से पहले संबंधित प्राधिकार से मंजूरी लेती है.’
भ्रष्टाचार के मामले में शीर्ष नौकरशाहों की जांच के लिए उचित प्राधिकार से सीबीआइ के मंजूरी लेने को अनिवार्य बनानेवाले कानून का बचाव करते हुए केंद्र सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत में बेहद मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने वस्तुत: उन लोगों के पक्ष को समर्थन किया, जिन्होंने कानून के उस प्रावधान को चुनौती दी है, जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों का एक ‘विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग’ पैदा करता है. पीठ ने अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल एल नागेश्वर राव से बार-बार सवाल किया. राव दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून की धारा 6ए के पक्ष में दलील दे रहे थे.