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बिना एक पैसा खर्च के राज्यसभा!

-हरिवंश- न कोई पूर्व सूचना थी, न आभास या एहसास कि बिहार जद (यू) से राज्यसभा जाना होगा. अब तक पत्रकारिता में, बाहर से राजनीति का दरस-परस होता था, घेरे के (राजनीति) बाहर की दुनिया की. दर्शक की भूमिका में.पत्रकारिता में रहते देखा, सुना और पढ़ा कि मौजूदा राजनीति में राज्यसभा वगैरह जाना कितना कठिन […]

-हरिवंश-

न कोई पूर्व सूचना थी, न आभास या एहसास कि बिहार जद (यू) से राज्यसभा जाना होगा. अब तक पत्रकारिता में, बाहर से राजनीति का दरस-परस होता था, घेरे के (राजनीति) बाहर की दुनिया की. दर्शक की भूमिका में.पत्रकारिता में रहते देखा, सुना और पढ़ा कि मौजूदा राजनीति में राज्यसभा वगैरह जाना कितना कठिन हो गया है? हाल में कांग्रेस के राव वीरेंद्र सिंह (हरियाणा) ने बयान दिया कि सौ करोड़, राज्यसभा पहुंचने का खर्च है.

बगल के झारखंड में 2010 और 2012 में हुए राज्यसभा चुनावों में 26 विधायकों के खिलाफ सीबीआइ जांच चल रही है. लगभग सभी बड़े दल (माले जैसे दलों को छोड़ कर) के विधायक जांच घेरे में हैं. एक विधायक, दो प्रत्याशियों पर सीबीआइ ने चार्जशीट दायर किया है. 2012 के राज्यसभा चुनाव में ही आयकर ने 2.15 करोड़ नगद राशि पकड़ी थी.

इसके पहले याद करें, कर्नाटक से विजय माल्या (जिनकी किंगफिशर एयरलाइंस डूब गयी), निर्दलीय हो कर भाजपा के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे थे. ऐसे अनेक प्रकरण हैं, कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के सहयोग से निर्दल या कॉरपोरेट घरानों के प्रत्याशी राज्यसभा पहुंचते रहे हैं. महाराष्ट्र से जिस पृष्ठभूमि के कुछ लोग गये हैं, वह जानने योग्य है. उत्तर प्रदेश से भी अतीत में, निर्दल प्रत्याशी के रूप में सबसे अधिक मत पानेवाले प्रत्याशी रहे हैं. बिना मुकाबला, सर्वसम्मत से चुनाव होना (बिहार में यह पहले भी हुआ है). राज्यसभा के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया मानी गयी थी, जिसकी जो संख्या, विधानसभा में, उस अनुपात में सीटें तय हो जायें. फिर अनावश्यक जोड़-तोड़ का मुकाबला क्यों? पर यह परिपक्व और ईमानदार राजनीतिक माहौल में ही संभव है.

यह सब अनुभव था, पत्रकारिता संसार का. सूचना मिली, तो राज्यसभा के कागजात भरने एक दिन पहले पटना आना हुआ. राजनीतिक पाठशाला के प्राइमरी स्कूल के छात्र के रूप में.

राज्यसभा प्रत्याशी के फार्म भरने में इतनी सूचनाएं चाहिए, यह एहसास नहीं था. पुराने व अनुभवी इसे जानते हैं, तो उन्हें सुविधा रहती हैं. पर, हर कदम पर मदद के लिए पार्टी के अनुभवी लोग थे. राजनीतिक दल कैसे समर्पित व परदे के पीछे रह कर लोग चलाते हैं? बिना यश की कामना के, ऐसे राजनीतिक कार्यकर्ता मिले. शायद अन्य दलों में भी ऐसे लोग हों. समय-अनुशासन के पाबंद. उन्हें धन्यवाद दिया कि राजनीतिक दलों में यह निष्ठा, कांपीटेंस (क्षमता) और स्वअनुशासन का बाहर रहते एहसास नहीं था.

फार्म भरना हुआ. दस हजार सुरक्षा राशि देकर फार्म मिला. निर्विरोध चुनाव के बाद यह राशि भी वापस हो गयी. इस तरह बिना एक पैसा खर्च के राज्यसभा पहुंचने का प्रमाणपत्र मिला. एक पत्रकार के रूप में यह अनुभव छाप छोड़ गया है. यह सही है कि देश के अनेक संपन्न, बड़े व धनी राज्यों से राज्यसभा चुनाव में व्यवसाय की भी खबरें आयी हैं, पर बिहार, जो पैसे या विकास में उन धनी राज्यों से पीछे हैं, राजनीतिक मूल्यों, संस्कार या व्यवहार में, देश का पथ-प्रदर्शक है. यह राजनीति शुचिता अनुकरणीय है.

कोशिश रहेगी कि लोकसेवक के रूप में यह शुचिता, व्यवहार में रहे. इसलिए नामांकन भरने गया, तब भी दो-एक मित्र साथ थे. न समर्थक, न फूल-माला. चयन का प्रमाणपत्र मिला, तब भी लगभग अकेले. अन्य सफल उम्मीदवारों की भरी भीड़ के किनारे-किनारे प्रमाणपत्र लेकर निकलना हुआ. दो-एक मित्रों के साथ फूल-माला से बचते हुए. एक मित्र ने असहज होने का उल्लेख किया. कहा, नहीं भीड़ का हिस्सा रहना ही धरती से जुड़े रहना है. राज्यसभा फार्म में जो निजी सूचनाएं देनी थीं, उनके अतिरिक्त भी खुद से जुड़ी सूचनाएं, सबको भेज कर सार्वजनिक की. कई प्रोफेशनल लोगों ने बरजा कि इतनी जरूरत ही नहीं है. पर लगा कि सार्वजनिक जीवन में पांव रख रहे हैं, तो नैतिक तकाजा है कि सार्वजनिक जीवन से जुड़ी निजी सूचनाएं भी सार्वजनिक हों.

रांची के कई मित्रों ने फोन किया, कब आ रहे हैं? कैसे आ रहे हैं? नहीं बताया. पत्रकार के रूप में भी कभी सार्वजनिक या अनजान लोगों को पत्रकार बता कर विशेष बनने की कोशिश नहीं की. कभी गाड़ी पर प्रेस का स्टिकर नहीं लगा. भीड़ का हिस्सा रहते हुए पत्रकारिता की. कई लोक अभियान चलाये. स्कूलों-कॉलेजों में विभिन्न इलाकों में, विभिन्न मुद्दों पर. एक सामान्य आदमी रहते हुए, इस नयी भूमिका में भी रहने की ख्वाहिश है.

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