नयीदिल्ली : पड़ोसी देश से आए शरणार्थियों को राहत प्रदान करने के वायदे को आगे बढाने एवं नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पर संसद की संयुक्त समिति विचार करेगी. लोकसभा में नागरिकता अधिनियम में और संशोधन करने वाले इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति या संयुक्त समिति को भेजने के बीजद, कांग्रेस, वामदलों के आग्रह पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर सदन का विचार इसे संयुक्त समिति को भेजने का है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. वह इसके लिए तैयार हैं. राजनाथ ने कहा, ‘‘अगर सदन सहमत हो तो वह आज ही इसके लिए प्रस्ताव पेश करेंगे. ‘ सदस्यों ने इस पर सहमति व्यक्त की.
इससे पहले बीजद के भतृर्हरि महताब ने कहा कि आज की कार्यसूची में नागरिकता संबंधी विधेयक सूचीबद्ध है. जब नागरिकता की बात आती है तो इससे हर नागरिक की संवेदनाएं जुड़ जाती है. भारत ने हमेशा से ही हर वर्ग और स्थान से आने वाले लोगों का अंगीकार किया है. इस विधेयक में उसी दिशा में पहल कीगयी है. उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण विषय है और वह चाहेंगे कि इसे संसद की स्थायी समिति या संयुक्त समिति को भेजा जाए. कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि भारत ने सदैव दूसरों को अपनाया है. इस विधेयक में नागरिकता पात्रता और समय से जुड़े विषयों का उल्लेख किया गया है. इसमें कुछ विसंगतियां हैं. इसे संसद की स्थायी समिति या संयुक्त समिति के समक्ष विचार के लिए भेजा जाए. माकपा के मोहम्मद सलीम ने कहा कि बांग्लादेश से घुसपैठ एवं असम की समस्या को देखते हुए इस विधेयक पर विचार किये जाने की जरूरत है. इसलिए इसे संयुक्त समिति को भेजा जाए.
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है और इसे संयुक्त समिति को भेजा जाए. नागरिकता अधिनियम 1955 का और संशोधन करने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में पडोसी देश से आए हिन्दू, सिख एवं अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने की बात कहीगयी है चाहे उनके पास जरूरी दस्तावेज हो या नहीं. विधेयक के कारण और उद्देश्यों में कहा गया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कई भारतीय मूल के लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया है लेकिन उनके पास भारतीय मूल के होने के सबूत उपलब्ध नहीं है. पहले उनका नागरिकता कानून के तहत नैसर्गिक नागरिकता के लिए 12 वर्ष तक देश में रहना जरूरी होता था. प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया ताकि वे 12 वर्ष की बजाय 7 वर्ष पूरा करने पर नागरिकता के पात्र हो सकें.