-वेबसाइट पर टिप्पणी का मामला-
नयी दिल्ली : विभिन्न सोशल साइट पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने के कारण पुलिस द्वारा लोगों को परेशान करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने आज निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या पुलिस महानिरीक्षक की मंजूरी के बगैर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा.
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की खंडपीठ ने वेबसाइट पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वाले व्यक्तियों की गिरफ्तारी पर पूरी तरह रोक लगाने का अंतरिम आदेश देने से इंकार करते हुये कहा कि राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के परामर्श पर सख्ती से अमल करना चाहिए. केंद्र सरकार के इस परामर्श में कहा गया था कि पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस उपायुक्त या पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की अनुमति के बगैर ऐसे मामले में व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. न्यायालय के आज के आदेश के साथ ही नौ जनवरी को जारी केंद्र सरकार के परामर्श पर अमल करना राज्य सरकारों के लिये अब अनिवार्य हो गया है.
न्यायाधीशों ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले इन दिशानिर्देशों :केंद्र के: पर अमल सुनिश्चित किया जाये.’’ न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से राज्य सरकारों को रोक नहीं सकता है क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए पर शीर्ष अदालत ने कोई रोक नहीं लगायी है और यह प्रावधान अभी भी सांविधानिक दृष्टि से वैध है. फेसबुक पर टिप्पणियां लिखने वाले लोगों की गिरफ्तारी को लेकर उपजे जनाक्रोश के मद्देनजर नौ जनवरी को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये परामर्श जारी किया था. इसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पूर्वानुमति के बगैर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाये.
केंद्र सरकार के इस परामर्श में कहा गया था, ‘‘सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए के तहत दर्ज किसी शिकायत के सिलसिले में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बारे में राज्य सरकारों को सलाह दी जाती है कि संबंधित थाने के पुलस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को महानगरों में पुलिस महानिरीक्षक या पुलिस उपायुक्त या जिला स्तर पर पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी से पूर्वानुमति लिये बगैर गिरफ्तार नहीं कर सकेंगे.’’ शीर्ष अदालत सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका का निबटारा होने तक सोशल साइट पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिये दायर अर्जी पर सुनवाई कर रही थी.
फेसबुक पर तमिलनाडु के राज्यपाल के रोसैया और कांग्रेस विधायक अमांची कृष्ण मोहन के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने के आरोप में हैदराबाद स्थित एक महिला कार्यकर्ता जया विंद्याल की 11 मई को गिरफ्तारी के आलोक में यह अर्जी दायर की गयी थी. यह अर्जी दायर होने के बाद ही इस महिला कार्यकर्ता को हैदराबाद की जिला अदालत ने रिहा कर दिया था. कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने यह अर्जी दायर की थी. सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए में संशोधन के लिये श्रेया की याचिका पर ही न्यायालय ने 30 नवंबर, 2012 को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किये थे.
इस अर्जी में श्रेया ने कहा था कि शीर्ष अदालत में धारा 66-ए की वैधानिकता का मामला लंबित होने के बावजूद पुलिस इस प्रावधान के तहत कार्रवाई कर रही है. शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के दिन मुंबई में बंद को लेकर शाहीन ढोडा और रिनु श्रीनिवासन को फेसबुक पर टिप्पणियां करने के कारण पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद ही श्रेया ने यह जनहित याचिका दायर की थी.