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क्या सौर उर्जा है भारत के उर्जा संकट का वास्तविक हल?

नयी दिल्ली: पेरिस में आयोजित जलवायु सम्मेलन से इतर भारत ने एक बहुचर्चित ‘सौर गठबंधन’ की घोषणा कर दी। उर्जा की जरुरतों को पूरा करने के लिए सौर उर्जा उप्लब्ध करवाने की दिशा में काम करने का यह बडा न्यौता उन 121 देशों के लिए है, जहां सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता […]

नयी दिल्ली: पेरिस में आयोजित जलवायु सम्मेलन से इतर भारत ने एक बहुचर्चित ‘सौर गठबंधन’ की घोषणा कर दी। उर्जा की जरुरतों को पूरा करने के लिए सौर उर्जा उप्लब्ध करवाने की दिशा में काम करने का यह बडा न्यौता उन 121 देशों के लिए है, जहां सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है. इस परियोजना में सरकार की योजना शुरुआती पूंजी के रुप में 400 करोड रुपए डालने की है.

अब ऐसी एक धारणा बना दी गई है कि जलवायु परिवर्तन और भारत की उर्जा निर्भरता से जुडे सभी मुद्दों को सुलझाने का रामबाण इलाज सौर उर्जा हो सकती है. यह बात सच्चाई से कोसों दूर है. भारी भरकम अंतरराष्ट्रीय विपणन के बावजूद अगले चार से पांच दशक तक भारत में उर्जा स्रोत के रुप में ‘कोयले की ही बादशाहत रहेगी’. आज भारत की लगभग 60 प्रतिशत बिजली का उत्पादन हाइड्रोकार्बन के इस्तेमाल से होता है.
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत को सूर्य देवता से प्रेम है और पूरे देश में सूर्य के प्रकाश वाले 300 से ज्यादा दिन होना बिजली उत्पादन के लिहाज से एक बेहद आकर्षक विकल्प है. इसमें भी एक पेंच है: सूर्य सिर्फ आधे दिन ही उपलब्ध रहता है और इसलिए सौर बिजली पर हमारी जरुरत से ज्यादा निर्भरता अंधेरे के समय जोखिम से भरी हो सकती है.
आज देश की योजना अपनी सौर उर्जा उत्पादन की क्षमता को मौजूदा स्थापित क्षमता 4000 मेगावाट से लगभग 25 गुना बढाकर एक लाख मेगावाट कर देने की है. इसका मतलब यह हुआ कि 100 गीगावाट के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को अगले सात साल तक हर साल लगभग 14 हजार मेगावाट सौर बिजली स्थापित करनी होगी. पिछले पांच साल में, भारत ने स्थापित सौर उर्जा में सिर्फ 2000 मेगावाट का इजाफा किया है.
सौर उर्जा से बिजली उत्पादन बढाने के लिए कई मुश्किलों से उबरना अभी बाकी है. आज व्यावसायिक लिहाज से जो सर्वोत्तम सोलर फोटो वोल्टिक सेल भी उपलब्ध हैं, उनकी क्षमता 20 प्रतिशत से कम है. यह तुलनात्मक रुप से से कमजोर रुपांतरण अनुपात है और यही वजह है कि सौर सेलों के लिए बडा फलक जरुरी होता है. इसका अर्थ यह है कि जब एक लाख मेगावाट के उत्पादन के लिए सौर पैनल लगाने के लिए एक बडे भूभाग की जरुरत होगी.एक अन्य बडी बाधा उत्पादित बिजली के संग्रहण की है. रात के समय या मानसून के दौरान आसमान में बादल होने पर जब सूर्य की रोशनी नहीं होती है, तब सौर पैनल किसी काम के नहीं रहते. ऐसे समय पर उत्पादित बिजली को बैटरियों में संग्रहित करके रखे जाने की जरुरत होती है, जो कि बाद में बिजली की आपूर्ति कर सकती हैं
-पीटीआई

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