नयी दिल्ली : पति से अलग होने के 15 साल बाद उससे गुजारा भत्ते की मांग करने वाली महिला को दिल्ली की एक अदालत ने कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया. अदालत ने कहा कि इस महिला को यह बताना होगा कि इन 15 सालों में उसने अपना और अपने बच्चों का गुजारा कैसे किया. इस महिला का तर्क था कि वह हमेशा से ही गृहणी रही है और उसे अपने तथा 22 वर्षीय अविवाहित पुत्री के गुजारे के लिये गुजारा भत्ते की आवश्यकता है.
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट वंदना जैन ने उसका अनुरोध अस्वीकार करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि 1987 में अपने पति से अलग होने के बाद से गुजारा भत्ते के लिये याचिका दायर करते वक्त यानी 2003 तक उसने अपना और अपने तीन बच्चों का गुजारा कैसे चलाया. यह महिला 1987 में अपने पति से अलग हो गयी थी.
अदालत ने कहा कि इस तथ्य को स्पष्ट करना जरुरी है ,लेकिन पूरी याचिका में इसके किसी कारण का कोई जिक्र नहीं है. ऐसी स्थिति में यह माना जा सकता है कि याचिकाकर्ता संपन्न थी और गुजारा करने में सक्षम थी, इसीलिये उसने करीब 15 साल तक अपने और तीन बच्चों के लिये गुजारा भत्ते का दावा नहीं किया.
मजिस्ट्रेट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सकी कि 15 साल उसने कैसे गुजारे और अब मामला क्यों दायर किया, इसलिए यह सिद्ध नहीं होता है कि वह खुद अपनी गुजर बसर करने में सक्षम नहीं है.
अदालत ने कहा कि इस महिला का 1976 में विवाह हुआ था और इस वैवाहिक रिश्ते से दो पुत्रियों और एक पुत्र का जन्म हुआ. महिला का आरोप था कि 11 साल एक साथ रहने के बाद उसके पति के रवैये में बदलाव आ गया और वह दूसरी महिला के साथ रहने लगा.
इसके विपरीत, इस व्यक्ति ने इन आरोपों से इंकार करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता खुद ही अपने तीन बच्चों के साथ चली गयी थी और राजेन्द्र नाम के व्यक्ति के साथ रहने लगी थी. उसने स्वीकार किया कि इस दौरान 1989 में उसकी दूसरी शादी हो गयी जिससे उसके दो बच्चे हैं.
अदालत ने महिला के पुत्र की शादी के निमंत्रण पत्र जैसे अनेक साक्ष्यों और उसके रिश्तेदारों की गवाही के आलोक में कहा कि इससे उसके बारे में संदेह पैदा होता है लेकिन निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उसने राजेन्द्र से विवाह कर लिया था और उसके साथ रह रही है. बेटे की शादी के कार्ड पर महिला के पति के रुप में राजेन्द्र का नाम लिखा था.