नयी दिल्ली: दिल्ली की एक सत्र अदालत ने घरेलू हिंसा मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय करने को लेकर एक मजिस्ट्रेट अदालत की यह कहते हुए खिंचाई की है कि यह आदेश त्रुटिपूर्ण है और टिक नहीं सकता क्योंकि इन्हीं आरोपों पर उसकी मां बरी कर दी गयी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विरेंद्र भट्ट ने कहा, ‘‘मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता (पुरुष) के खिलाफ आरोप निर्धारण का आदेश कैसे दे दिया जबकि शिकायत में उसके विरुद्ध जो आरोप हैं वे बिल्कुल उसकी मां के खिलाफ लगे आरोपों के समान ही हैं. ’’ सत्र अदालत ने कहा, ‘‘मजिस्ट्रेट को इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए विस्तार में न सही, कम से कम संक्षेप में भी कारण बताना चाहिए था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप बनता है. ’’
सत्र न्यायाधीश ने कहा कि उसके विरुद्ध आरोप निर्धारण का निर्देश देकर निचली अदालत ने भूल की है और ‘‘शिकायत एवं अन्य सामग्री के गहन अध्ययन से उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है. संबंधित आदेश त्रुटिपूर्ण है और नहीं टिक सकता है. ’’ सत्र अदालत ने निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध इस व्यक्ति की समीक्षा याचिका मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की. मजिस्ट्रेट अदालत ने 16 अप्रैल को इस व्यक्ति को भादसं की धारा 498 (पत्नी के साथ क्रूरता) और 406 (विश्वासभंग) के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था.
इस व्यक्ति की पत्नी ने 2012 में महिला के विरुद्ध अपराध शाखा में शिकायत की थी कि दहेज की मांग को लेकर उसके पति और सास उसका उत्पीडन करते हैं. उसके बाद जनवरी, 2014 में इस व्यक्ति और उसकी मां के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.
सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को दरकिनार कर दिया और कहा कि महिला की शिकायत अस्पष्ट और सामान्य है, क्रूरता और उत्पीडन का कोई ब्यौरा नहीं है.