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– हरिवंश – भारत के गृह मंत्री शिवराज पाटील के बेटे से जुड़ी रपटें इंडियन एक्सप्रेस में छपी हैं. हाल में. इन खोजपरक रपटों के अनुसार शैलेश पाटील (पुत्र शिवराज पाटील) और उनकी पत्नी अर्चना पाटील एक उद्योग घराने से जुड़े. अंबाला स्थित एन वी डिस्टीलरीज लिमिटेड के निदेशक बने. 9 मई, 2005 को. इन […]

– हरिवंश –

भारत के गृह मंत्री शिवराज पाटील के बेटे से जुड़ी रपटें इंडियन एक्सप्रेस में छपी हैं. हाल में. इन खोजपरक रपटों के अनुसार शैलेश पाटील (पुत्र शिवराज पाटील) और उनकी पत्नी अर्चना पाटील एक उद्योग घराने से जुड़े. अंबाला स्थित एन वी डिस्टीलरीज लिमिटेड के निदेशक बने. 9 मई, 2005 को. इन दोनों ने निदेशक के बतौर अपना पता दिया, भारत के गृह मंत्री के सरकारी निवास का.
फिर गृह मंत्री शिवराज पाटील के पूर्व संसदीय क्षेत्र के एक सुगर को-ऑपरेटिव मिल (नालेगांव) का मामला आया. उस मिल को शुरू कराने में शिवराज पाटील की भूमिका थी. अब वह घाटे में है. कर्ज में डूबी भी. अस्तित्व बचाने में लगी है, मिल.
पर विस्तार की योजनाओं में भी लगी है. इस मिल की ‘वार्षिक रपट’ में गृह मंत्री के पुत्र को ‘मार्गदर्शक’ कहा गया है. ‘यंग लीडर’ (युवा नेता) भी. इस मिल के चेयरमैन ने कहा कि शैलेश पाटील के सहयोग से यह कारोबार चल रहा है.
गृह मंत्री के पुत्र को उद्यमी होने या उद्योगपति होने या युवा नेता (संजय गांधी भी हृदय सम्राट बने थे) होने का हक है. अन्य युवकों की तरह पेशे के चयन के लिए वह स्वतंत्र भी हैं. एक सामान्य भारतीय की तरह सपने देखने के हकदार भी. मंत्री या प्रभावशाली लोगों का स्वजन होना गुनाह तो नहीं है. लेकिन अपने व्यावसायिक संबंधों में भारत के गृह मंत्री के घर का पता देना सही है?
दरअसल नैतिकता, आदर्श या मूल्य आज पाखंड मान लिये गये हैं. लेकिन न पहले ऐसा था, न आगे ऐसा रहेगा. क्योंकि कोई समाज, राजनीति या देश अनैतिक और मूल्यविहीन होकर जी नहीं सकता.
जिन सभ्यताओं या मुल्कों ने नैतिकता या मूल्यों से छत्तीस का रिश्ता बनाया, वे जहां से मिट गये. इसी कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने जो पुण्य अतीत में किये, उसकी आभा में ही कांग्रेस अब तक टिकी है. पर मरणासन्न होकर. ऐसे ही प्रसंग में इसी पार्टी के दो गौरवशाली नेताओं की भूमिका याद करना प्रासंगिक होगा.
सरदार पटेल गृह मंत्री बने. उनके व्यक्तित्व ने इस पद को बौना बना दिया. उनके बेटे डायाभाई पटेल ने पिता के पद के महत्व से खुद को आलोकित करना चाहा. अपना अखबार शुरू किया. उसमें विज्ञापन अधिक छपने लगे. सरदार ने अपने बेटे से पूछा कि और समाचार पत्रों को कम विज्ञापन मिलते हैं, तुम्हें अधिक कैसे? डायाभाई ने जवाब दिया, यह मेरा बिजनेस है. सरदार ने कहा, ऐसा नहीं है.
तुम भारत के गृह मंत्री के बेटे हो. सरदार पटेल ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाया. कहा, मणिबेन मेरी एकमात्र बेटी हैं. डायाभाई पटेल जो कुछ कर रहे हैं, वे खुद इसके जिम्मेवार हैं. भारत के गृह मंत्री से फेवर अर्जित करने के नाम पर उन्हें कोई सहयोग करता है, तो वह खुद इसका जिम्मेवार होगा. फिर सरदार ने अपने बेटे से रिश्ता तोड़ लिया.
15 दिसंबर, 1950 के पास की घटना है. सरदार मृत्युशय्या पर थे. डायाभाई पटेल मिलने गये. मणिबेन (सरदार पटेल की पुत्री) ने कहा, रुको, पूछ कर आती हूं. बीमार और बिस्तर पर पड़े सरदार उठ बैठे. कहा, जा कर कहो कि संसार के लिए सरदार अब मरेगा. पर डायाभाई के लिए 1948 में ही सरदार मर गया. यह घटना भी भारत के तत्कालीन गृह मंत्री के सरकारी निवास, एक औरंगजेब रोड पर घटी.
आज ‘अनैतिक, पापी, अपराधी पर अरबपति, खरबपति’ बनने के इस दौर में सरदार पटेल का यह रूप क्रूर लग सकता है. राजनीति के चालू मुहावरे (मॉडर्न जारगन) में कहें, तो ‘इमप्रैक्टिकल’ (अव्यावहारिक). पर याद रखिए, 2000 वर्षों से बिखरे इस मुल्क को एक साबूत नक्शा देने का काम जिन लोगों ने किया, उनकी आहुतियां कैसी थीं? कैसा बलिदान था? त्याग था? सरदार के सचिव रहे वी शंकर (आइसीएस) ने पुस्तक लिखी है, ‘ट्रांसफर ऑफ पावर’. एक जगह लिखा है.
सरदार से बड़े राजा-महाराजा मिलने के लिए लाइन लगाये रहते थे. सोने, हीरे-जवाहरात से लकदक, सरदार सुबह में घूमने के वक्त उन्हें समय देते थे. एक बार एक रियासत के अति संपन्न निजाम अपनी ऐसी ही वेशभूषा में पहुंचे. सरदार पटेल खादी की फटी गंजी पहने घूम रहे थे.
भारत के सबसे संपन्न नवाब हीरे-जवाहरात से लकदक उनसे गिड़गिड़ा रहे थे. याद करिए, यह दृश्य और आज के कर्णधार बने नेताओं का चरित्र. यह भारत के रियासतों का भारत संघ में विलय का दौर था. ऐसे बलिदान, चरित्र और कुरबानी की नींव पर कांग्रेस खड़ी हुई.
भारत देश का जन्म हुआ. ब्रिटेन से कानून की उच्चतम पढ़ाई करके भारत लौटे सरदार पटेल पहले अति शौकीन वकील थे. अत्यंत सफल, सूटबूटधारी अंगरेज थे, वह. पर आजादी की लड़ाई से उनका पुनर्जन्म हुआ.
इसी तरह कांग्रेस के ही एक अन्य दिग्गज कैलाशनाथ काटजू का प्रसंग है. अपने समय के मशहूर वकील. आजादी की लड़ाई से जुड़े. बाद में संसद गये. सरकार में रहे, फिर राज्यपाल बने. जब वह बंगाल के गवर्नर थे, तो उनके बेटे शिवनाथ काटजू को ‘लाल इमली मिल’ (कानपुर) के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में शामिल होने का प्रस्ताव आया.
शिवनाथ जी इलाहाबाद में रह कर हाइकोर्ट में प्रैक्टिस करते थे. बेटे ने पिता को पत्र लिख कर इसमें शरीक होने की सहमति मांगी. उनके गवर्नर पिता ने अपने पुत्र को जवाब दिया. याद रखो कि वे गवर्नर के बेटे को यह पद दे रहे हैं, अन्यथा पहले भी दिया होता. अगर तुम इसे स्वीकार करते हो, तो मुझे पत्र लिख देना.
मैं इस्तीफा देकर इलाहाबाद (घर) लौट आऊंगा. प्रैक्टिस करूंगा. यह निर्णय तुम्हारे विवेक पर छोड़ता हूं. आजादी की लड़ाई और उसके बाद के नेताओं के ऐसे प्रसंग अनंत हैं. भारत के प्रधानमंत्री के रूप में, अपने कपड़े में रफ्फू करा कर लालबहादुर शास्त्री मास्को गये थे.
जैसे भारत को उदास और अंधकारमय भविष्य में डालनेवाले ऐसे अनगिनत प्रसंग मौजूद हैं, जो आज के राजनीतिज्ञों की देन हैं, उसी तरह अतीत के नेताओं के ऐसे असंख्य प्रसंग हैं, जो अंधेरे में राह दिखाते हैं.
ये प्रतिभावान, चरित्रवान और त्यागी लोग हाड़-मांस के इनसान नहीं थे? क्या इन्हें भोग, भौतिक सुखों और कामिनी-कंचन से वैराग्य था? नहीं. इन्होंने अपनी भूमिका समझी. उसी अनुसार अपना चरित्र गढ़ा, बनाया, विकसित किया. वह पी़ढ़ी महाभारत के उस प्रसंग को साकार करने आयी थी, जिसमें कहा गया है,
महाजनो येन गत: स पंथा
जिस रास्ते पर महापुरुष जाते हैं, वही रास्ता है. वही पाथेय है.
पर आज भारत को राह दिखानेवाले कैसे हैं?
पिछले दिनों खबर आयी कि राष्ट्रपति विदेश यात्रा पर गयीं. शायद पहली बार. उनके बेटे भी साथ गये. उनके बेटे को अपने बिजनेस से संबंधित कोई काम था. सवाल उठा कि क्या भारत की सत्ता के सर्वोच्च प्रतीक ‘राष्ट्रपति पद’ की आधिकारिक यात्रा में ऐसा होना चाहिए था? पिछले सप्ताह खबर आयी.
बताया गया, भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार यह घटना हुई है. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाइके सब्बरवाल के ‘मिसकंडक्ट’ के बारे में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन ने भारत सरकार को लिखा है. उन पर भ्रष्टाचार और मिसकंडक्ट के आरोप हैं. न्यायपालिका से जुड़े भ्रष्टाचार के प्रसंग समय-समय पर उठते रहे हैं, पर यह प्रकरण बताता है कि हम कहां पहुंच गये हैं.
राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश व गृह मंत्री जैसे पदों पर आसीन लोग भारत का भविष्य गढ़ने का कार्य करते हैं. ये ‘वो महाजन’ (श्रेष्ठ पद-पुरुष) हैं, जिनका अनुकरण देश करता है.
ऐसे पदों के क्या पैमाने हों? राजनीति में नीति या नैतिकता की जगह है या नहीं? ऐसे सवालों पर आज सारे दल मौन क्यों हैं? क्यों ऐसे सवाल भारत की राजनीति में बहस के विषय नहीं रह गये? क्या अनैतिकता, पाप, गरिमा-मर्यादा के विपरीत आचरण, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार-बेईमानी के प्रसंगों पर सभी राजनीतिक दलों में अलिखित समझौता हो गया है?
क्या यह कहावत सही है कि ‘पावर करप्ट्स एंड एबसलूट पावर करप्ट्स एबसल्यूटली’ (सत्ता भ्रष्ट करती है पर सर्वांग सत्ता संपूर्ण रूप से भ्रष्ट बनाती है.) क्या हमारे राजनीतिज्ञ सत्ता सुख में आकंठ डूब गये हैं? मान, मर्यादा, अपनी ऐतिहासिक भूमिका भूल चुके हैं? पर ऐसा हमेशा नहीं रहेगा.
दिनांक : 15-06-08

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