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उपदेश नहीं,सख्त सजा चाहिए!

– हरिवंश – यहां के नौकरशाह कई स्तरों पर भ्रष्टाचार में डूबे हैं. जो ईमानदार माने जाते हैं, उनके बाल-बच्चे विदेश में पढ़ते हैं. किन घरानों की बदौलत? जो केंद्र सरकार की नीतियां बनाते हैं, वे रिटायर्ड होने से पहले ही मुक्ति पाकर बड़े घराने ज्वाइन करते हैं. अनेक आइएएस/आइपीएस अफसरों के खिलाफ देश में […]

– हरिवंश –
यहां के नौकरशाह कई स्तरों पर भ्रष्टाचार में डूबे हैं. जो ईमानदार माने जाते हैं, उनके बाल-बच्चे विदेश में पढ़ते हैं. किन घरानों की बदौलत? जो केंद्र सरकार की नीतियां बनाते हैं, वे रिटायर्ड होने से पहले ही मुक्ति पाकर बड़े घराने ज्वाइन करते हैं.
अनेक आइएएस/आइपीएस अफसरों के खिलाफ देश में संगीन मामले हैं, पर एक के खिलाफ भी आपने कभी कोई कठोर कार्रवाई सुनी या देखी? एक बार ये नौकरी पा गये, चाहे काहिल हों, बेईमान, कामचोर या अकर्मण्य, इनका कुछ भी नहीं होता.
यह दुनिया के लिए बड़ी खबर है. खासकर भारत के साम्यवादियों और नक्सलियों के लिए. कारण साम्यवाद में नैतिकता या आचारसंहिता बुर्जुवा अवधारणा है. चीन ने अपने नौकरशाहों के लिए सख्त कानून बनाये हैं. ताकि वे नैतिक रहें और लोक स्वीकृत आचारसंहिता में बंधे रहें.
नये नियमों के अनुसार, नौकरशाहों द्वारा ब्लू फिल्म देखना, विवाह से बाहर यौन संबंध बनाना, अक्षम्य माना जायेगा. सामान्य सार्वजनिक जीवन में जो स्थापित नैतिक मानदंड हैं,तय लक्ष्मण रेखा है, उसी रास्ते उन्हें चलना होगा. सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग या निजी इस्तेमाल अक्षम्य अपराध माना जायेगा. इतना ही नहीं, इस कानूनी प्रावधान में 40 अनैतिक काम गिनाये गये हैं, जिनसे चीनी नौकरशाहों को दूर रहना है. इनमें कुछ पहलू हैं- नागरिकों से अहंकारपूर्ण या आक्रामक व्यवहार, कंप्यूटर पर गेम खेलना या शेयरों की दलाली करना या कार्यालय में सरकारी कामकाज के दौरान चैटिंग करना.
ये काम बरजे गये हैं. सरकारी पैसे से भोजन, इंटरटेनमेंट और आनंद उठाने वाले चीनी नौकरशाह भी अब बख्शे नहीं जायेंगे. चीनी नौकरशाही विभाग के निदेशक चेन जू एक्सिन का कहना है कि सामान्यत: नौकरशाह ठीक काम करते हैं. पर कुछ ऐसे भी हैं, जो सरकारी सीमाओं का ध्यान नहीं रखते. चेन का कहना है कि नौकरशाह ही सरकार के कामकाज के असल कर्त्ताधर्त्ता हैं.
सरकारी नीतियों को लागू करने वाले हैं. इस तरह से वे शासक दल और सरकार की छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए उनसे अपेक्षा है कि वे आम लोगों से ऊपर दिखाई दें. आचरण में, काम में, मर्यादा में और व्यवहार में.
यह एक साम्यवादी देश का फरमान है. पर भारत की नौकरशाही की क्या छवि है? कुछ ताजा उदाहरण देखें. 29 अप्रैल की खबर है. मध्यप्रदेश में एक आइएएस दंपती हैं. अरविंद और टीनू जोशी.
आयकर विभाग ने तीन महीने पहले, इन पर 7000 पेजों की रिपोर्ट मध्यप्रदेश सरकार और लोकायुक्त को सौंपी है. इनके पास 380 करोड़ की कुल संपत्ति है. फरवरी 2010 में आयकर विभाग ने इनके घर पर छापे डाले थे. ये मध्यप्रदेश के सबसे पॉश इलाके में रहते हैं, जहां सांसद-मंत्री रहते हैं. दिसंबर 2010 में लोकायुक्त ने भी जोशी के घर पर छापे डाले. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत इन पर एफआइआर भी किया. पर आज तक इन पर कार्रवाई की अनुमति नहीं मिली. इस तरह के मामले या प्रकरण दिल्ली से लेकर हर राज्य में पसरे हुए हैं. अकेले बिहार ने इसे रोकने के लिए कानून बनाया है.
पर अन्य राज्यों या केंद्र में खुली छूट है. झारखंड में भ्रष्ट अफसरों की चर्चा करें, जनता नाम गिना देगी. पर सब न सिर्फ ताकतवर पदों पर हैं, बल्कि खुली लूट में शरीक भी हैं. कहां है, देश का कानून? कहां है सीवीसी? कहां है विजिलेंस? कहां है फेमा, फेरा, आयकर विभाग या भ्रष्टाचार रोकने के लिए बने कानून? सरकार कहती है, भ्रष्टाचार रोकने के लिए कानून हैं. पर ये सारे कानून जोशी दंपती जैसे लोगों के सामने असहाय, लाचार, अनावश्यक और फिजूल हैं.
क्या भ्रष्टाचार के लिए कोई भारतीय नौकरशाह सख्ती से दंडित हुआ है? भूल जाइए नीरा यादव को, जिन्होंने अपार संपत्ति जमा की. कुछेक दिन के लिए जेल भी गयीं. अंदर भी रोब-दाब और सम्मान से रहीं. विशेष दर्जा में. फिर बाहर आकर बेशुमार दौलत की मालकिन हैं. क्या फर्क पड़ता है, ऐसे अफसरों को? यहां के नौकरशाह कई स्तरों पर भ्रष्टाचार में डूबे हैं.
जो ईमानदार माने जाते हैं, उनके बाल-बच्चे विदेश में पढ़ते हैं. किन घरानों की बदौलत? जो केंद्र सरकार की नीतियां बनाते हैं, वे रिटायर्ड होने से पहले ही मुक्ति पाकर बड़े घराने ज्वाइन करते हैं. अनेक आइएएस/आइपीएस अफसरों के खिलाफ देश में संगीन मामले हैं, पर एक के खिलाफ भी आपने कभी कोई कठोर कार्रवाई सुनी या देखी? एक बार ये नौकरी पा गये, चाहे काहिल हों, बेईमान, कामचोर या अकर्मण्य, इनका कुछ भी नहीं होता. फिर रिटायर ही होते हैं. ये फिर सुविधा भोगने में और आजीवन विशिष्ट बने रहने में देश के दामाद बन जाते हैं.
क्यों समाज या देश के लिए बोझ बने लोगों के लिए नौकरी की गांरटी होनी चाहिए? कुछेक ऐसे ईमानदार अफसर भी सरकार में मिलते हैं, जो रिश्वत नहीं लेते. पर एक फाइल बढ़ने नहीं देंगे, कोई नया काम नहीं होने देंगे. देश और राज्य को लगातार पीछे ले जाने का काम करते रहेंगे. पर उनका भी बाल बांका नहीं होता.
इस गरीब मुल्क में नौकरशाह सबसे संपन्न जीवन जीते हैं. राजनीतिज्ञ आते-जाते हैं, पर सत्ता तो यही चलाते हैं या भोगते हैं. इसलिए डॉ लोहिया ने इन्हें असली राजा कहा, स्थायी राजा कहा. सार्वजनिक धन की बदौलत देश की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं भोगते हैं, सर्वाधिक तनख्वाह, बेहतरीन बंगले, कई-कई लक्जरी गाड़ियां, नौकर, कारिंदे, खानसामा आदि. देश-विदेश में बच्चों को पढ़ाते हैं. यह सब वे जनता के कर से पाते, जीते और भोगते हैं. उस जनता के प्रति इनकी जिम्मेदारी क्या है?
हाल में (21 अप्रैल) प्रधानमंत्री ने देश के वरिष्ठ नौकरशाहों को दिल्ली में संबोधित किया. कहा, जनता अब भ्रष्टाचार नहीं सहने वाली. प्रधानमंत्री की बातें तर्कसंगत हैं. पर ऐसी ही बातें या अपेक्षा तो हर प्रधानमंत्री करता रहा है.
पर भ्रष्टाचार अनियंत्रित होता गया. क्यों? क्योंकि सरकारें या संसद उपदेश देने के लिए नहीं होतीं. उन्हें कठोर कानून बना कर ऐसी चीजों को रोकना है, इसलिए जनता उन्हें चुनती है. 2010 के अंत तक केंद्र सरकार के पास भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई संबंधित अनुमति लेने के लिए 236 मामले लंबित पड़े हैं. राज्य सरकारों के पास 86 मामलें लंबित हैं.
सीबीआइ के पास 2010 तक 9,927 संगीन मामले लंबित हैं. अफसरों के भ्रष्टाचार से जुड़े. 10 वर्षों से अधिक 2,245 मामले लंबित पड़े हैं. सीवीसी के पास 2005-2009 के बीच 1731 शिकायतें आयी हैं. अफसरों से जुड़ी. क्या इस कार्यशैली या सिस्टम में चल कर प्रधानमंत्री अपेक्षा करते हैं कि भ्रष्टाचार कम होगा?
दिनांक : 08.05.2011

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