नई दिल्ली : भारत रत्न शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की याद में लखनउ में शहनाई अकादमी और बनारस में स्मारक बनाने के वादे अभी तक पूरे नहीं किये गए और उनकी सातवीं बरसी बीत जाने के बाद भी उनका मकबरा नहीं बन सका है.
21 अगस्त 2006 को बिस्मिल्लाह खान के इंतकाल के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने उनके नाम पर शहनाई अकादमी, स्मारक और भव्य मकबरा बनाने का ऐलान किया था. सात साल बाद भी कोई स्मारक नहीं बन सका है और उनके परिवार को डर है कि आने वाले समय में लोग भूल ही जायेंगे कि यह अजीमोशान फनकार कहां रहता था.
बिस्मिल्लाह खान के बेटे तबला वादक नाजिम हुसैन ने भाषा से कहा, ‘‘पिछले सात साल से सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है. अगर उनका मकबरा और संग्रहालय नहीं बना तो 50 साल बाद की पीढ़ी कैसे याद रखेगी कि भारत में उनके जैसा एक महान कलाकार हुआ था.’’
उन्होंने बताया ,‘‘ हमने और पंडित देवव्रत मिश्र (सितार वादक) ने 18 अगस्त को इस संदर्भ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फैक्स किया था और दो दिन पहले बनारस के डीएम स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के साथ खान साहब की कब्र पर गए और उम्मीद है कि अब काम शुरु होगा.’’ इस बारे में संपर्क करने पर डीएम प्रांजल यादव ने कहा ,‘‘ मकबरे का काम शुरु हो रहा है. इस बारे में फिलहाल कोई ब्यौरा नहीं दिया जा सकता.’’
बिस्मिल्लाह खान की कब्र शहर के नल्लापुरा दरगाह फातमान इलाके में है जहां वह मुहर्रम के दौरान मातमी धुनें बजाया करते थे. बिस्मिल्लाह खान के बड़े बेटे और शहनाई वादक जामिन हुसैन के पुत्र आफाक हैदर ने कहा कि बनारस में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की भी बात की गई थी, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया.
उन्होंने कहा, ‘‘घोषणायें तो काफी हुई थी लेकिन धीरे धीरे उन्हें भुला दिया गया. विदेशी पर्यटक उनका घर ढूंढते अक्सर यहां आ जाते हैं और मकबरे के बारे में भी पूछते हैं. यह हैरानी की बात है कि सरकार ने जिस कलाकार को सारे बड़े पुरस्कार, यहां तक कि भारत रत्न से भी नवाजा, उसका कोई मकबरा अभी तक नहीं बन सका.’’
हैदर ने बिस्मिल्लाह खान के नाम पर एक संग्रहालय बनाने की भी मांग की जहां उनकी निशानियों को महफूज रखा जा सके. उन्होंने कहा ,‘‘ फिलहाल उनका सारा सामान परिवार के पास है जिनमें तीन चार ऐसी शहनाइयां भी है जो वे खुद बजाते थे. अगर उनका संग्रहालय होगा तो ये सारी निशानियां महफूज रह सकेंगी.’’