-मनोज अग्रवाल-
सुप्रीम कोर्ट ने आज कोयला खदान आवंटन मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राहत दी है. कोर्ट ने निचली अदालत के द्वारा जारी समन पर रोक लगा दी है. अब सिंह को कोर्ट में पेश नहीं होना पड़ेगा. इस संबंध में एक याचिका दायर की गयी थी जिसमें समन जारी करने के आदेश को कई आधार पर चुनौती दी गयी थी. याचिका में यह भी कहा गया कि रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि सिंह ने ऐसा कोई काम किया है जो अपराध हो.
सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्णय के बाद से मनमोहन सिंह को तत्काल कोर्ट में पेशी से राहत तो मिल गयी है लेकिन क्या कोयला घोटाला मामले में उनके साफ सुथरे राजनीतिक एवं प्रशासनिक जीवन पर दूसरों को लाभ पहुंचाने के जो आरोप लगे क्या उस आरोप से वे आसानी से निकल पाएंगे?
इस सवाल का जवाब मिलेगा इसके पहले आइए जानते हैं मनमोहन सिंह और उनके राजनीतिक सफर को-
मनमोहन की राजनीतिक शुरुआत
डॉ मनमोहन सिंह ने 1985 से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की जब उन्होंने राजीव गांधी की सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष का पद संभाला. जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो 1991 में उन्हें वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. उस वक्त किसी भी सदन का सदस्य नहीं होने के कारण उन्हें असम से राज्यसभा सदस्य चुना गया.
यूपीए 1 और मनमोहन सिंह
सोनिया गांधी की अगुवाई में 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली. प्रधानमंत्री की लिस्ट में तो सोनिया गांधी ही आगे थी लेकिन गठबंधनों और देश के जनता के दबाव को देखते हुए उन्हें अपने दिल की इच्छा को दबाना पडा
और मनमोहन सिंह को पहली बार 22 मई 2004 को यूपीए 1 सरकार में प्रधानमंत्री चुना गया. इन्होंने अपना पहला कार्यकाल जो अप्रैल 2009 तक चला सफलतापूर्वक पूरा किया. लेकिन इस बीच इन पर आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे. इनकी ज्ञान व क्षमता पर किसी को कोई शक नहीं था लेकिन कहा जाने लगा था कि यह स्वयं कोई निर्णय नहीं लेते हैं, यह अधिकतर मौन रहते हैं आदि.
यूपीए 2 में मनमोहन सिंह
अप्रैल 2009 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए और एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार फिर सत्ता में आयी. यूपीए ने एक बार फिर से मनमोहन पर भरोसा जताया और उन्हें यूपीए के दूसरे कार्यकाल यानी यूपीए 2 के लिए प्रधानमंत्री चुना गया. यूपीए 2 में मनमोहन सिंह की कार्यशैली और उनके अपने खुद की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे. अब लोगों ने तो उन्हें ‘मौन मोहन सिंह’ तक कहना शुरु कर दिया था क्योंकि देश की बडी सी बडी घटना या संदर्भ में शायद ही उनके संदेश सुनने को मिलते थे. एक प्रधानमंत्री की जो खुद का जवाबदेही या रुतवा या कार्यशैली झलकनी चाहिए थी वह कहीं नहीं दिख रही थी. एक अर्थशास्त्री के रुप में, एक आरबीआई के गर्वनर के रुप में जो उनकी छवि थी इस पद पर आने के बाद से कहीं न कहीं थोडी धूमिल दिखने लगी थी.
२-जी स्पेक्ट्रम घोटाला और मनमोहन सिंह
इस बीच यूपीए 2 के दौरान टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला उजागर हुआ जिसने यूपीए सरकार के पतन की नींव डाल दी थी. टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, जो स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला है उस घोटाले में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये का घपला हुआ है. इस घोटाले में विपक्ष के भारी दवाव के चलते मनमोहन सरकार में संचार मन्त्री ए राजा को न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, अपितु उन्हें जेल भी जाना पडा. केवल इतना ही नहीं, भारतीय उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में प्रधानमन्त्री सिंह की चुप्पी पर भी सवाल उठाया. इसके अलावे टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर तत्कालीन संचार मन्त्री ए राजा की नियुक्ति के लिये हुई पैरवी के सम्बन्ध में नीरा राडिया, पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों से बातचीत के बाद डॉ सिंह की सरकार भी कटघरे में आ गयी है.
कोयला आबंटन घोटाला के कालिख में मनमोहन का भी दामन हुआ काला
इसके बाद हाल में यह तथ्य प्रकाश में आया कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में कोयला आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट हुई और सारा कुछ प्रधानमंत्री की देखरेख में हुआ क्योंकि यह मंत्रालय उन्हीं के पास था. इस खबर के बाद तो जैसे मनमोहन सिंह की छवि को गहरा आघात लगा.पहले तो लोग मानते थे कि यूपीए 1 और यूपीए 2 में उन्होंने जो भी किया वह एक मजबूरी या दबाव था लेकिन इस घोटाले के उजागर होने से मनमोहन सिंह की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं. स्थिति यहां तक आ पहुंची की मनमोहन सिंह को कोर्ट ने समन जारी कर दिया. किन्तु आज सुप्रीम कोर्ट ने तो उन्हें कोर्ट में पेश होने से राहत दे दी है लेकिन यह तो सच है कि जैसे-जैसे मनमोहन सिंह सत्ता के शिखर पर पहुंचे उनकी कमीज भी मैली होती गयी और कोयला घोटाला के आरोप ने तो जैसे उनकी कमीज काली ही कर दी है.