नयी दिल्ली: सोमवार से शुरु हो रहे संसद के मानसून सत्र के पिछले कुछ सत्रों की बनिस्बत सुचारु रुप से चलने के आसार नजर आ रहे हैं. सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह विपक्ष को आंदोलित करने वाले विषयों का सम्मान करेगी. मुख्य विपक्षी दल ने भी कहा है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक सहित अगर सरकार उसके सुझावों को मानती है तो वह ऐसे विधेयकों को पारित कराने में सहयोग करेगा.
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस ने हालांकि आक्रामक तेवर दिखाते हुए कहा है कि सरकार को पहले यह आश्वासन देना होगा कि तेलंगाना के बाद किसी अन्य नए राज्य के गठन पर विचार नहीं होगा. वह यह आश्वासन चाहती है कि कांग्रेस के नेता पश्चिम बंगाल में ‘गोरखालैंड’ की मांग को हवा नहीं दें.
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि इन सोलह बैठकों में भी प्रभावी बैठकें 12 ही होंगी, क्योंकि इस बीच चार शुक्रवार पड़ेंगे जिनमें दोनों सदनों में गैर सरकारी काम काज होता है.
संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने आश्वासन दिया है कि अगर जरुर हुआ तो सभी विषयों को समाहित करने के लिए सत्र की अवधि बढ़ाई जा सकती है.
द्रमुक और तृणमूल सहित कई दलों ने विधायिका के कामकाज में न्यायपालिका के हस्तक्षेप के मुद्दे पर इस सत्र के दौरान गंभीर चर्चा कराने की मांग की है. इन दलों का कहना है कि न्यायाधीश नियुक्ति विधेयक पर फैसला होना चाहिए और उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकारों पर चर्चा की आवश्यकता है. कमलनाथ ने इस बात से भी इंकार किया कि मानसून सत्र संसद का अंतिम सत्र होगा और देश निर्धारित समय से पहले चुनावों की ओर बढ रहा है. उन्होंने कहा कि इसके बाद दो और यानी शीतकालीन और बजट सत्र भी होंगे.