पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिये जाने का बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने समर्थन किया है.
केंद्र में बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) का भाजपा से कभी कोई गठबंधन नहीं रहा है. यूपीए सरकार में बीएसपी उसके समर्थन में रही है. तो फिर ऐसा क्या कारण है कि मायावती ने भारतरत्न के लिए वाजपेयी का नाम आते ही उसका खुलकर समर्थन किया है. अब यहां जानकारों का कहना है कि कहीं मायावती वाजपेयी जी के भारत रत्न दिये जाने का समर्थन कर ब्राह्णण कार्ड तो नहीं खेल रहीहैं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति का इतिहास रहा है कि यहां चुनाव आते ही नेता विकास की राजनीति छोड़ जाति की राजनीति शुरू कर जाति के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश में लग जातेहैं.अगर धर्म और जाति के आंकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो प्रदेश में सबसे अधिक संख्या 28 प्रतिशत पिछड़ी जाति की है. उसके बाद 22 प्रतिशत दलित, 16 प्रतिशत मुसलमान, 11 प्रतिशत ब्रह्मण, 9 प्रतिशत ठाकुर, 4 प्रतिशत वैश्य, 4 प्रतिशत जाट और 5 प्रतिशत अन्य जातियों के वोट माने जाते हैं.
इस आंकड़े से स्पष्ट है कि पिछड़ेऔर मुसलमान के बाद तीसरी सबसे बड़ीआबादी ब्राह्मणों की है. ऐसे में मायावती का वाजपेयी जी को भारत रत्न दिये जाने की मांग में सुर में सुर मिलाना कहीं न कहीं आने वाला चुनावी स्टंट कहा जा सकता है.
उत्तर प्रदेश में दलित वोटों की राजनीति करने वाली बीएसपी हो या राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी-कांग्रेस सभी को ब्राह्रण वोटरों की दरकार है. यूपी में करीब 11 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं और लखनऊ जैसे शहर में ये आबादी करीब 15 फीसदी है. ब्राह्रण बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं. लेकिन खबरें ये हैं कि पिछले चुनाव में बीजेपी के टिकट बंटवारे के बाद से ब्राह्मण समुदाय नाराज है. राजनाथ सिंहके अध्यक्ष होने के बाद से एक सामान्य धारणा है कि राजपूतों को ज्यादा टिकट दिया गया है. ब्राह्मणों को कम टिकट दिया है या ब्राह्मणों को ऐसी जगह से टिकट दिया गया है जहां उनके जीतने के चांस कम हो.
जानकार बताते हैं कि इस नाराजगी का सीधा फायदा बीएसपी को पहुंच सकता है, क्योंकि मायावती ने 21 ब्राह्मणों को टिकट दिया. बीएसपी अपने ब्राह्मण वोट पाने के लिए पूरा जोर लगा रही है.
जो भी हो, ऐसा माना जा रहा है किकहीं न कहीं वाजपेयी को भारत रत्न दिये जाने का समर्थन देकर मायावती ब्राह्णण वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए तथाकथित ब्राह्णण कार्ड खेल रहीहैं.गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी भी यूपी (लखनऊ) के हैं और ब्राह्णण समुदाय से आतेहैं.
यह भी ध्यान रहे कि मायावती ने सत्ता का स्वादब्राह्मणव दलित वोटों की गंठजोड़ से ही हासिल किया. इस चुनाव मेंब्राह्मणवोटों के छिटकने के कारण ही उनकी पार्टी की दुगर्ति हुई है. मायावती अपनी पार्टी में सबसे ज्यादा टिकटब्राह्मणको ही देती रही हैं. अब वाजपेयी के बहाने मायावती एक बार फिरब्राह्मणवोटरों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश कर रही हैं.