अहमदाबाद : गुजरात हाइकोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए इसलाम को अपनानेवाली गैर-मुसलिम महिला अपने मुसलिम पति से तभी तलाक ले सकती है, जब वह अपने मूल धर्म को फिर से अपना ले. हाइकोर्ट ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट को ऐसे तलाक की याचिका को बिना उचित सुनवाई के खारिज नहीं करना चाहिए, क्योंकि मुसलिम विवाह विच्छेद अधिनियम का सेक्शन 4 इसमें आड़े नहीं आता.
फैमिली कोर्ट में याचिका खारिज हो जाने पर शिनू हाईकोर्ट गयी. हाइकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया. सारे सबूत-गवाही रेकॉर्ड करने के बाद मामले को अधिनिर्णय के लिए वापस भेज दिया. हाइकोर्ट ने कहा कि शिनू को किसी भी तरह यह साबित करना था कि वह पहले ईसाई थी और अब इसलाम छोड़ चुकी है. उसे इस आधार पर तलाक मांगने की जरूरत नहीं है कि उसके पति उनका ध्यान नहीं रखते या उन्हें छोड़ दिया है.
क्या है मामला
वडोदरा निवासी ईसाई युवती शिनू ने जावेद मंसूरी से मुसलिम मैरेज लॉ के तहत फरवरी 2003 में निकाह किया था. पति पर गलत बरताव का आरोप लगाते हुए शिनू मार्च 2012 में इसलाम को छोड़ कर फिर से ईसाई बन गयी. शिनू ने फैमिली कोर्ट में पति के र्दुव्यवहार के आधार पर तलाक मांगा. कहा उसके इसलाम छोड़ने से निकाह अमान्य हो गया है. जावेद ने भी कोर्ट में शिनू के फिर से धर्मातरण पर सवाल किये. सेक्शन 4 के मुताबिक शादी अपने आप नहीं टूट सकती.