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मृत्यु के 33 साल बाद गोपाल सिंह विशारद को मिला पूजा का अधिकार

नयी दिल्ली : आखिरकार 69 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद को राम जन्मभूमि पर पूजा करने का अधिकार दे दिया है, लेकिन यह फैसला उनकी मृत्यु के 33 साल बाद आया है. दरअसल, अयोध्या विवाद पर शुरुआती चार सिविल मुकदमों में से एक गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया था. गोपाल सिंह […]

नयी दिल्ली : आखिरकार 69 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद को राम जन्मभूमि पर पूजा करने का अधिकार दे दिया है, लेकिन यह फैसला उनकी मृत्यु के 33 साल बाद आया है. दरअसल, अयोध्या विवाद पर शुरुआती चार सिविल मुकदमों में से एक गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया था. गोपाल सिंह विशारद और एम सिद्दीक, दोनों ही राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मूल मुद्दई थे और दोनों का ही निधन हो चुका है. बाद में उनके कानूनी वारिसों ने उनका प्रतिनिधित्व किया.

16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने सिविल जज की अदालत में सरकार, जहूर अहमद और अन्य के खिलाफ मुकदमा दायर कर कहा कि ‘जन्मभूमि’ पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाया न जाए व उन्हें दर्शन-पूजा के लिए जाने से रोका न जाए. सिविल जज ने उसी दिन यह स्टे ऑर्डर जारी कर दिया, जिसे बाद में मामूली संशोधनों के साथ जिला जज और हाइकोर्ट ने भी अनुमोदित कर दिया.
वरिष्ठ वकील के परासरन की कड़ी मेहनत ने हिंदू पक्ष को दिलायी जीत
अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष के रामलला विराजमान को इतनी बड़ी जीत दिलाने में सुप्रीम कोर्ट में 93 वर्षीय वरिष्ठ वकील के परासरन की बड़ी भूमिका रही. परासरन ने शीर्ष अदालत में रामलला विराजमान की ओर से मुकदमे की पैरवी की. 9 अक्तूबर, 1927 को तमिलनाडु के श्रीरंगम में पैदा हुए परासरन तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल रहने के अलावा भारत के अटॉर्नी जनरल भी रहे हैं.
वह साल 2012 से 2018 के बीच राज्यसभा के सदस्य भी रहे. परासरन को हिंदू कानून की पढ़ाई के लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया था. वह सबरीमला मंदिर मामले में भगवान अयप्पा के भी पैरोकार रहे हैं.

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