नयी दिल्ली : यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विवाद के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने आज केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि परीक्षा के लिए कल जारी किए गए एडमिट कार्ड इस मसले को सुलझाने तक वापस लिए जाएं.
कार्मिक मामलों के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा कि एडमिट कार्ड जारी कर दिये जाने से छात्रों को घबराने की जरुरत नहीं. उन्होंने कहा है कि वे प्रधानमंत्री से इस मामले पर बात की है उन्होंने कहा है कि हिन्दी के साथ उपेक्षा नहीं होगी.
कार्मिक, जनशिकायत एवं पेंशन राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने उच्च सदन में इस मुद्दे पर विभिन्न सदस्यों द्वारा मांगे गये स्पष्टीकरण के जवाब में सदन को आश्वासन दिया कि सरकार इस पूरे मुद्दे की गंभीरता और संवेदनशीलता से अवगत है. सरकार इस मामले में आंदोलन कर रहे छात्रों से निरंतर संपर्क बनाए हुए है और इस मुद्दे का हल निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं.
सिंह ने कहा कि सरकार ने इस मुद्दे पर गठित तीन सदस्यीय समिति को एक हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा है. रिपोर्ट के आने के बाद ही सरकार आगे की कार्रवाई तय करेगी. संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए आनलाइन प्रवेश पत्र जारी किए जाने पर रोक लगाए जाने की विभिन्न दलों की मांगों के बीच मंत्री ने कहा कि यूपीएससी का अपना एक कैलेंडर होता है और उसी के तहत प्रवेश पत्र जारी किए जा रहे हैं. लेकिन इन प्रवेश पत्रों के जारी होने से इस मुद्दे पर सरकार द्वारा किए जाने वाले फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
इससे पहले विभिन्न दलों के सदस्यों ने सरकार से मांग की कि सरकार द्वारा कोई फैसला लिए जाने तक यूपीएससी द्वारा प्रवेश पत्र जारी नहीं किए जाएं.मंत्री ने इस पूरे मामले का विस्तृत घटनाक्रम बताते हुए कहा कि सीसैट पद्धति 2011 से पिछली सरकार के कार्यकाल में शुरु की गयी थी जिसके तहत परीक्षार्थियों से अंग्रेजी में एक अनुच्छेद के आधार पर वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं. छात्रों की शिकायत है कि यह परीक्षा अंग्रेजी में होने के कारण वे इसे ढंग से नहीं समझ पाते और यह परीक्षा हिंदी सहित क्षेत्रीय भाषा में करायी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि 2012 में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी जिस पर उच्च न्यायालय का निर्णय आया. अदालत के निर्णय के आधार पर 12 मार्च 2014 को तीन सदस्यीय एक समिति गठित की गयी. इस समिति से एक माह के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया. बाद में समिति का कार्यकाल तीन महीने और बढा दिया गया.
सिंह ने कहा कि इसी बीच केंद्र में सरकार बदल गयी और समिति ने अपनी रिपोर्ट भी नहीं दी. अब जबकि छात्रों ने सीसैट के मुद्दे पर अनशन शुरु कर दिया है, सरकार ने इस समिति के कार्यकाल का विस्तार करते हुए एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है.
उन्होंने कहा कि सीसैट के मुद्दे को यूपीएससी द्वारा प्रवेश पत्र जारी किए जाने से जोडकर नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार बच्चों से अपील कर रही है कि वह अपने को किसी भी तरीके से मानसिक और शारीरिक दबाव में नहीं डालें. सरकार इस मामले में जल्दी ही फैसला करेगी. इससे पूर्व उच्च सदन के दो बार के स्थगन के बाद दोपहर 12 बजे बैठक फिर शुरु होने पर विभिन्न दलों के सदस्यों ने स्पष्टीकरण मांगे.
जदयू के शरद यादव ने विभिन्न आंकडों के हवाले से बताया कि सिविल सेवा परीक्षाओं में तमिल सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले सफल अभ्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है जबकि इसके विपरीत अंग्रेजी माध्यम के सफल छात्रों की संख्या बढती जा रही है. उन्होंने सरकार से मांग की कि यूपीएससी द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के लिए जारी किए जा रहे प्रवेश पत्रों पर तुरंत रोक लगायी जाए.
बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि इस मामले में गठित समिति से तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा जाए तथा सरकार छात्रों को बुलाकर बातचीत करे.
सपा के नरेश अग्रवाल ने सरकार को आगाह किया कि अगर समय रहते इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया तो यह आंदोलन पूरे देश में फैल सकता है. कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि संबद्ध मंत्री को आश्वासन देना चाहिए कि इस मुद्दे का समाधान नहीं होने तक यूपीएससी की परीक्षा नहीं होगी.
तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन, अन्नाद्रमुक के एस मुथुकुरुप्पन, भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी और विजय गोयल, माकपा के तपन कुमार सेन, राजद के प्रेम चंद गुप्ता, द्रमुक की कनिमाई, टीआरएस के के केशव राव, बीजद के वैष्णव परीदा, आरपीआई..ए के रामदास अठावले, भाकपा के डी राजा और कांग्रेस के मनोहर सिंह गिल ने भी इस मुद्दे पर सरकार से जल्द निर्णय लेने का सुझाव दिया.
इससे पहले प्रश्नकाल में सपा, जदयू और कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा सरकार से इस मुद्दे पर जवाब की मांग को लेकर हंगामे के कारण बैठक को दो बार स्थगित करना पडा था.
गौरतलब है कि कार्मिक, जनशिकायत एवं पेंशन राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने इसी मुद्दे पर संसद में पिछले हफ्ते स्वत: आधार पर एक बयान दिया था. विपक्षी दल इसी बयान के आधार पर उच्च सदन में स्पष्टीकरण मांग रहे थे. राज्यसभा में दोपहर ढाई बजे बैठक फिर शुरु होने पर सपा के नरेश अग्रवाल और जदयू के के. सी. त्यागी ने इस मुद्दे पर सरकार द्वारा कुछ नहीं किये जाने का आरोप लगाते हुए अपने दलों के सदस्यों की ओर से सदन से बहिर्गमन करने की घोषणा की.
उधर, लोकसभा में सदन की कार्यवाही शुरु होने पर राजद के पप्पू यादव, जयप्रकाश नारायण यादव, सपा के धर्मेन्द्र यादव, अक्षय यादव, जदयू के कौशलेंन्द्र कुमार यूपीएससी परीक्षा में शामिल होने वाले आंदोलनकारी छात्रों पर पुलिस के बल प्रयोग का मुद्दा उठाते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए.
सदस्यों ने आरोप लगाया कि आंदोलन कर रहे छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया और छात्राओं के साथ कथित तौर पर छेडछाड की गई.सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कहा कि भारतीय भाषाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और इन्हें उचित स्थान दिया जाना चाहिए.इस पर अध्यक्ष ने कहा कि इस विषय पर मंत्री ने बयान दिया है और इस मामले को शून्यकाल में उठाये.
शून्यकाल में सपा के धर्मेन्द्र यादव ने इस मामले को उठाते हुए कहा कि 16 जुलाई को सरकार की ओर से सदन में आश्वासन दिया गया था कि सिविल सेवा परीक्षा में सीसैट को वापस लिया जायेगा और इस आश्वासन पर छात्रों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया था लेकिन बाद में सरकार और यूपीएसपी ने अपना रुख बदल लिया.
उन्होंने कहा कि इस वादाखिलाफी से छात्रों में भयंकर आक्रोश है.कांग्रेस की रंजीत रंजन ने कहा कि सी सेट व्यवस्था से अंग्रेजीदां लोगों का ही फायदा हो रहा है और हिंदी भाषी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों का भारी नुकसान हो रहा है. उन्होंने सी सेट की व्यवस्था को तुरंत समाप्त करने की मांग की.