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800 साल पुरानी प्रथा खत्म, हर उम्र की महिलाओं के लिए खुला सबरीमाला मंदिर

नयी दिल्ली : केरल के सबरीमाला में विराजमान भगवान अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि इस मंदिर में हर उम्र की महिलाएं जा सकती हैं. टिप्पणी की कि शारीरिक कारणों के नाम पर महिलाओं के दमन को कानूनी मान्यता नहीं मिल […]

नयी दिल्ली : केरल के सबरीमाला में विराजमान भगवान अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि इस मंदिर में हर उम्र की महिलाएं जा सकती हैं. टिप्पणी की कि शारीरिक कारणों के नाम पर महिलाओं के दमन को कानूनी मान्यता नहीं मिल सकती.
पूजा करने का अधिकार सभी को है. जेंडर के आधार पर भेदभाव अनुचित है. पहले यहां 10 साल की बच्चियों से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. इस फैसले के साथ ही करीब आठ सौ साल पुरानी प्रथा अब अंकुश लगेगा.
पांच जजाें की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत के आधार पर यह फैसला सुनाया. पीठ में एक मात्र महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा की राय अलग थी. इस बीच सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाला त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है. वहीं, केरल सरकार ने फैसले का स्वागत किया है. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि यह फैसला हिंदुत्व को कहीं अधिक समावेशी बनायेगा.
संविधान पीठ का अंतिम फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने लिखा. कोर्ट ने कहा कि भगवान अय्यप्पा के भक्त सिर्फ हिंदू हैं. यह पृथक धार्मिक पंथ नहीं बनाता.
यह परिपाटी हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है.महिलाएं दिव्यता व अध्यात्म की खोज में बराबर की हिस्सेदार हैं. बनी बनायी मान्यताएं आड़े नहीं आनी चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि पितृसत्तात्मक सोच आध्यात्मिक मामलों में आड़े नहीं आनी चाहिए. धर्म के पालन का मौलिक अधिकार पुरुष व महिला को एक समान उपलब्ध हैं. यह फैसला अन्य धर्मों की महिलाओं को समानता की मांगों को और बल देगा.

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