तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 21 मई, 2012 को लोकसभा के पटल पर केंद्र सरकार की ओर से कालेधन पर श्वेतपत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें इसे एक गंभीर मुद्दा मानते हुए इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से विेषण की कोशिश की गयी थी. इस श्वेत पत्र के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे :
पुष्परंजन
चंडीगढ़ का क्षेत्रफल 44 वर्गमील है. इससे थोड़ा सा बड़ा, 61 वर्गमील के क्षेत्रफल में ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड के बीच बसा एक देश है, लिश्टेन्स्टाइन. वैटिकन सिटी और मोनाको के बाद मुङो तीसरा ऐसा मुल्क मिला था, जहां एक दिन में पूरे देश की परिक्र मा की जा सकती है. दुनिया में ऐसे सत्रह देश हैं, जिनके क्षेत्रफल दो सौ वर्गमील से कम हैं. क्षेत्रफल में छोटे देशों की एक जैसी विशेषता यह है कि उनके यहां बैंकों का जबरदस्त कारोबार है, और काला धन खपाने के कारण ये ‘टैक्स हेवेन’ के नाम से कुख्यात हैं. लिश्टेन्स्टाइन का राजपरिवार दुनिया के छठे सबसे अमीर शाही घराने में शुमार होता है. यहां की जनता का जीवन स्तर शानदार है. इसी लिश्टेन्स्टाइन के प्रिंस एलोइस ने जर्मन सरकार पर चोरी का आरोप लगाया.
लिश्टेन्स्टाइन के एलजीटी बैंक से एक सीडी की चोरी 2002 में हुई. बैंक की शिकायत पर हेनरिश कीबर नामक कर्मी, 2003 में पकड़ा गया. कीबर छूटा, और जर्मनी के बोखम नामक शहर में भूमिगत हो गया. 2006 में जर्मन खुफिया ‘बीएनडी’ ने उस सीडी के बदले कीबर को 42 लाख यूरो का पेमेंट किया था. इस सीडी में कोई 1400 लोगों के अकाउंट डिटेल्स थे, जिनमें जर्मनों की संख्या 600 के आसपास थी. इस सीडी को भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और बाकी देशों को बेचने के लिए जर्मनी 2007 में सक्रिय हुआ. 24 फरवरी 2008 को ब्रिटेन ने 100 लोगों के बैंक डाटा पाने के लिए एक लाख पौंड जर्मनी को दिये. इस सीडी के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस समेत यूरोप के दसियों देशों ने जर्मनी को पैसे दिये. 2011 में भारत सरकार को एचएसबीसी बैंक के 782 खातेदारों की जानकारी जर्मनी से उपलब्ध कराई गई. क्या भारत सरकार को काले धन की सूचनाओं के लिए जर्मनी को पैसे देने पड़े हैं? यह अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है.
नवंबर 2010 में लिश्टेन्सटाइन के प्रिंस एलोइस छह दिन के लिए भारत यात्र पर आये थे. तब प्रिंस एलोइस ने आश्वासन दिया था कि लिश्टेन्सटाइन, भारत में फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) के जरिये कुछ सूचनाएं साझा करेगा. इसके कोई तीन साल बाद अप्रैल 2003 में बर्न में भारत और लिश्टेन्सटाइन ने टैक्स इंफोर्मेशन एक्सचेंज एग्रीमेंट (टीआईइए) पर हस्ताक्षर किये. इससे दोनों देशों के अधिकारियों को बैंक खातों की जांच और उससे जुड़े व्यक्तियों से तहकीकात का अधिकार प्राप्त हो गया. ‘टीआईइए’ में स्पष्ट लिखा गया है कि जांच की गोपनीयता बनी रहनी चाहिए. लिश्टेन्सटाइन को लेकर कई बार यह भ्रम फैलता रहा कि यह देश स्विट्जरलैंड या जर्मनी का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट में जिन 18 खातेदारों के नाम का खुलासा किया गया, उन सभी के अकाउंट्स लिश्टेंस्टाइन में हैं, जिनमें से एक की मौत हो चुकी है. मीडिया में चर्चा में रहे 18 खातेदारों के नामों को देखकर लगता है कि उनमें से अधिकांश लोगों के संबंध गुजरात से हैं. यूरोप वाले दो बातों को लेकर कोसते हैं कि कालेधन के खातेदारों के नामों को सार्वजनिक कर भारत सरकार ने संधि की शर्तों का उल्लंघन किया है. दूसरा, कालेधन को बढ़ा-चढ़ा कर मीडिया में भौकाल खड़ा किया गया है.
मई 2012 में सरकार ने एक श्वेत पत्र के जरिये जानकारी दी कि स्विस नेशनल बैंक में भारतीयों के 1.95 अरब स्विस फ्रांक (92.95 अरब रु पये) जमा हैं. स्विस बैंकर्स एसोसिएशन ने भी एक वक्तव्य में कहा कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीयों के दो अरब डॉलर जमा हैं. फरवरी 2012 में सीबीआई के निदेशक की ओर से बयान आया कि दुनिया भर के ‘टैक्स हेवेन्स’ में भारतीयों के पांच सौ अरब डॉलर के फंड जमा हैं. सीबीआई ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में दिये हलफनामे के आधार पर यह वक्तव्य दिया था.
इस समय दुनिया भर में 70 से अधिक देश हैं, जो कालाधन जमा करते हैं, जिन्हें ‘टैक्स हेवेन्स’ कहा जाता है. इन्हें स्विट्जरलैंड में प्रस्तावित उस अध्यादेश से प्रेरणा मिली थी, जिसके आधार पर ब्लैक मनी जमा करने वाले 20 प्रतिशत तक कर देकर, अपना काला धन सफेद कर सकते थे. स्विट्जरलैंड जर्मनी को 50 अरब यूरो लेकर, कालेधन को भूल जाने का प्रस्ताव भेज चुका है. स्विस बैंक ‘यूबीएस’ ने 52 हजार अमेरिकियों के ब्लैक अकाउंट के बदले 78 अरब डॉलर देना स्वीकार कर लिया है. कालेधन की वापसी, और कालेधन वाले बैंक खातों की जानकारी, दो अलग-अलग विषय हैं. ट्यूनीशिया से भगाये गये तानाशाह बेन अली और मिस्र के हुस्नी मुबारक के खाते स्विस संसद के आदेश पर सीज किये गये. नाइजीरिया ने पांच साल तक कड़ी मेहनत की तो उसके 70 अरब डॉलर स्विट्जरलैंड के बैंक से वापस हुए. स्विस बैंकों ने इसी तरह फर्डिनांड मार्कोस द्वारा लूट कर जमा किये 68.4 अरब डॉलर फिलीपींस को वापस किये. इसके लिए फिलीपींस सरकार को 18 वर्षों तक स्विस अधिकारियों से लड़ना पड़ा. पेरू ने भी 18 अरब डॉलर जैसे-तैसे स्विस बैंकों से वापस लिये.
आज जिस काले धन के लिए हिन्दुस्तान में बहस हो रही है, उस धन का बहुत सारा हिस्सा एनडीए सरकार के कार्यकाल में, या उससे पहले भी स्विस और लिश्टेन्स्टाइन के बैंकों में सरक गया था. तो फिर इसके लिए अकेले कांग्रेस को ही कठघरे में क्यों खड़ा करें? भारत 13 देशों से टैक्स इंफार्मेशन एक्सचेंज एग्रीमेंट (टीआईइए) कर चुका है. बरमूडा सबसे पहले भारत से 7 अक्तूबर 2010 को ‘टीआईइए’ समझौता करने वाला देश बना. ब्रिटेन और आयरलैंड के बीच बसे द्वीप ‘इस्ले ऑफ मैन’ ने 4 फरवरी 2011 को, और बहामास ने 11 फरवरी 2011 को भारत से ‘टीआईइए’ समझौते किये. गर्नजी द्वीप ने 2011 के आखिर में टीआईइए समझौता किया है.
इन देशों से अलग मॉरीशस, फिलीपींस, ब्राजील, मलेशिया, रूस, आस्ट्रेलिया और कनाडा से भारत ने एक समझौते के बाद फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट को सक्रिय कर दिया है. इन देशों से ‘टीआईइए’ समझौते का अर्थ यह नहीं है कि इनके बैंकों में जमा काला धन भारत आ जाएगा. ऐसे खातों के बारे में सिर्फ, और सिर्फ सूचनाएं मिला करेंगी. भारत सरकार काले धन वालों को पकड़ने के लिए डबल टैक्सेशन एव्याएड एग्रीमेंट (डीटीएए) को भी एक कारगर हथियार मानती है. 88 देशों से भारत सरकार ने ‘डीटीएए’ समझौते किये हैं, जिनमें से एक स्विट्जरलैंड भी है. इस समझौते के तहत यदि किसी स्विस नागरिक का शेयर भारत की कंपनियों को ट्रांसफर होता है, तो उससे होने वाले पूंजी लाभ (कैपिटल गेन) पर भारत सरकार कर लगा सकती है. यही कराधान व्यवस्था स्विट्जरलैंड में भारतीय निवेशकों के साथ लागू होती है. ‘डीटीएए’ और ‘टीआईइए’ जैसे तमाम समझौतों को देखकर यही लगता है कि ये सब दिखाने के दांत हैं. अगर दोनों पक्ष गंभीर नहीं हैं तो काला धन तो वापिस होने से रहा. काले धन पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के प्रमुख न्यायमूर्ति एमबी शाह ने स्वीकार किया कि इसकी राह में कई पेचीदगियां हैं. सच भी यही है. काले धन की वापसी के लिए समय सीमा का निर्धारण व्यावहारिक नहीं है क्योंकि इसमें बहुत कुछ बाहर की सरकारों के सहयोग पर निर्भर करता है.
श्वेतपत्र में कालाधन को परिभाषित करते हुए कहा गया था कि ये वैसी परिसंपत्तियां या संसाधन हैं, जिनके बारे में इनके उत्पादन के समय या बाद में कभी संबंधित सरकारी विभागों को सूचित नहीं किया गया हो.
कालाधन (अ) अपराध, मादक द्रव्यों के कारोबार, आतंकवाद और भ्रष्टाचार या (ब) सरकार को बिना वैध कर चुकाने की प्रक्रिया द्वारा कमाया जा सकता है. दूसरी स्थिति में व्यवसाय वैध हो सकता है, लेकिन आरोपित ने कर नहीं चुका कर अपने आय की जानकारी छुपायी है.
श्वेतपत्र में बताया गया है कि किस प्रकार दस्तावेजों और लेखा की प्रक्रियाओं के साथ छेड़-छाड़ कर काला धन एकत्र किया जाता है.
कुछ क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है, जहां कालाधन के पैदा होने की संभावना सबसे अधिक होती है. ऐसे क्षेत्र हैं- भूमि और रियल इस्टेट, सराफा और आभूषण, वित्तीय बाजार, सार्वजनिक खरीद, नॉन-प्रॉफिट क्षेत्र, असंगठित क्षेत्र और नकद अर्थव्यवस्था.
इस श्वेतपत्र में कालाधन की मात्र के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है. सरकार के अनुसार इसका आकलन कर पाना बहुत मुश्किल है. इसमें जानकारी दी गयी है कि 2010 में भारत के प्रति स्विस बैंकों की देनदारी 7,924 करोड़ थी, जो उन बैंकों की कुल देनदारी का 0.13 फीसदी था.
इस दस्तावेज के अनुसार सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज, इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट, फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट और सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स कालाधन की जांच एजेंसियां हैं. सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो, नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी और हाइ लेवल कमिटी समन्वय करनेवाली संस्थाएं हैं.
सरकार ने इस श्वेतपत्र में जनता की स्वीकृति, राजनीतिक आम सहमति और नीतियों को लागू करने की प्रतिबद्धता के साथ दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत पर बल दिया है. इसमें पांच मूल बातों को रेखांकित किया है- 1. कालाधन के खिलाफ वैश्विक मुहिम में शामिल होना. 2. वैधानिक कार्य-योजना तैयार करना. 3. अवैध धन से निपटने के लिए संस्थाओं की स्थापना, 4. नियम-कानूनों को लागू करने के लिए तंत्र तैयार करना, और 5. संबंधित कर्मचारियों को प्रभावी रूप से कार्य करने के लिए कुशल बनाने का प्रयास.