नयी दिल्ली : 158 साल पुरानी आइपीसी की धारा 497 पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में उन देशों का उल्लेख किया गया जहां व्यभिचार अब भी अपराध है और जहां यह अपराध नहीं है. समाज में महिलाओं को उचित दर्जा व सम्मान देने और तीन तलाक पर जस्टिस नरीमन की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया. विवाहेत्तर संबंधों को लेकर 1860 में यह व्यभिचार कानून बना था. आइपीसी की धारा 497 में इस कानून का जिक्र किया गया है.
यहां पत्थर मारने से लेकर फांसी तक की सजा
मुस्लिम देशों में अभी भी व्यभिचार को लेकर कानून बहुत सख्त है. इस्लामिक कानून द्वारा शासित देशों जिसमें सऊदी अरब और सोमालिया भी शामिल हैं, में सख्ती से ‘जिना’ या शादी के बाद व्यभिचार पर रोक है. यहां इस मामले में कोई दोषी साबित होता है तो जुर्माने के अलावा कारावास, मनमाने ढंग से हिरासत में रखना या मौत की सजा भी हो सकती है. पाकिस्तान में हुडूड अध्यादेश के तहत व्यभिचार अपराध है. इस कानून के मुताबिक, एक महिला अगर किसी पर रेप का आरोप लगाती है तो उसके लिए जरूरी है कि केस में मजबूती के लिए वह चार बालिग पुरुषों गवाहों को भी पेश करे ताकि उसपर व्यभिचार का चार्ज न लगाया जाये.
सऊदी अरब : पत्थर मार-मारकर जान से मारने की सजा.
पाकिस्तान : ऐसे मामलों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है. गंभीर अपराध के लिए पत्थर मार-मारकर मारने या 100 कोड़े सार्वजनिक रूप से मारने का प्रावधान है. दूसरे मामले में दस साल तक जेल की सजा.
सोमालिया : पत्थर मारने की सजा.
अफगानिस्तान : सार्वजनिक रूप से 100 कोड़े मारने का प्रावधान.
मिस्र : महिलाओं को दो साल और पुरुष को छह महीने तक जेल की सजा.
धारा 497 : टाइमलाइन
2017
10 अक्तूबर : केरल के एनआरआइ जोसेफ शाइन ने कोर्ट में याचिका दायर कर धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी.
08 दिसंबर : कोर्ट ने दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर हामी भरी.
2018
05 जनवरी : कोर्ट ने याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा
11 जुलाई : केंद्र ने धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहिक संस्था नष्ट होने की बात कही
01 अगस्त : संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की
02 अगस्त : कोर्ट ने व्यभिचार के लिए दंडात्मक प्रावधान को समानता के अधिकार का उल्लंघन माना
08 अगस्त : केंद्र ने व्यभिचार के संबंध में दंडात्मक कानून बनाये रखने का समर्थन किया. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.
27 सितंबर : सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक बताया.
क्या यह फैसला बहुविवाह की इजाजत है
सोशल एक्टिविस्ट वृंदा अडिगे ने पूछा कि क्या यह फैसला बहुविवाह की भी इजाजत देता है? पुरुष अक्सर ही दो-तीन शादियां कर लेते हैं. तब समस्या पैदा हो जाती है, अन्य पत्नी को छोड़ देते हैं.
धारा 497 अदालत की टिप्पणी
ब्रिटिश काल का व्यभिचार रोधी कानून, भादंसं की धारा 497 को असंवैधानिक होने के नाते निरस्त किया जाता है.
कानून महिलाओं की वैयक्तिकता को नुकसान पहुंचाता है और उनके साथ पतियों की ‘संपत्ति’ और ‘गुलाम’ जैसा व्यवहार करता है.
158 साल पुरानी भादंसं की धारा 497 पूरी तरह से एकतरफा, पुरातनपंथी और महिलाओं के साथ समानता तथा समान अवसर के अधिकारों का उल्लंघन है.
गरिमापूर्ण मानवीय अस्तित्व में स्वायत्तता आंतरिक हिस्सा है और धारा 497 महिलाओं को उनकी ‘यौन संबंधी स्वायत्तता’ से वंचित करती है.
महिलाओं के साथ असमान व्यवहार संविधान के प्रतिकूल है.
व्यभिचार अतीत का अवशेष है.
हालांकि व्यभिचार को दीवानी गलती मानना जारी रखना चाहिए.
व्यभिचार विवाह विच्छेद या तलाक का आधार हो सकता है.
केवल व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता लेकिन अगर कोई पीड़ित पक्ष जीवन साथी के व्यभिचार वाले संबंधों के कारण खुदकुशी करता है, और अगर साक्ष्य पेश किये जाते हैं तो इसे खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला माना जा सकता है.
व्यभिचार पर दंडात्मक प्रावधान और विवाह के खिलाफ अपराधों के अभियोजन से निपटने वाली सीआरपीसी की धारा 198 असंवैधानिक है.
महिलाओं के साथ असमानता वाला व्यवहार करने वाला प्रावधान संवैधानिक नहीं है और यह कहने का समय आ गया है कि पति, महिला का मालिक नहीं है.