कांग्रेस पार्टी हाल के दिनों तक प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को बेहद काबिल और सबसे सफल प्रधानमंत्री का तमगा देती थी. अब जबकि 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं दिख रही या यूं कहें कि उसकी स्थिति बेहद खराब दिख रही है, तो उसने इसका ठीकरा मनमोहन सिंह पर फोड़ने की पूरी तैयारी कर ली है. कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर चर्चा चल रही है कि यदि पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, तो इसकी जिम्मेवारी डॉ मनमोहन और उनकी टीम पर थोप दी जाये.
पार्टी के ही कुछ बड़े नेता संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन (यूपीए) सरकार के कार्यकाल में हुए घपलों-घोटालों को लेकर मुखर हो सकते हैं. अब तक विपक्ष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर आड़े हाथ लेता था और कांग्रेस उनका बचाव करती थी. हाल के दिनों तक कांग्रेस के तमाम नेताओं ने भ्रष्टाचार और महंगाई पर यूपीए सरकार और मनमोहन सिंह का बचाव किया. लेकिन, अब कांग्रेस के अंदर से ही उनकी इन्हीं विषयों पर आलोचना शुरू हो सकती है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर कांग्रेस 100 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाती है, तो पार्टी के अंदर गांधी परिवार का वर्चस्व खत्म हो जायेगा. हालांकि, मोदी के इस दावे को कांग्रेस पार्टी के तमाम नेता सिरे से खारिज करते हैं. पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि चुनाव में अगर कांग्रेस अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करती है, तो संगठन पर सवाल उठाने के बजाय यूपीए सरकार की नीतियां और कामकाज निशाने पर होगा. पार्टी के अंदर माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति में मनमोहन सिंह को अपनी विदाई के समय शुभकामनाएं नहीं, आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता है.
घोटाले और मनमोहन
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के समय विपक्ष की ओर से सवाल उठाया गया कि आखिर प्रधानमंत्री की नाक के नीचे पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा ने स्पेक्ट्रम के आवंटन में गड़बड़ी कैसे की? कोयला घोटाले में भी प्रधानमंत्री ही निशाने रहे, क्योंकि जिस समय कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी सामने आयी, कोयला मंत्रालय का प्रभार उनके पास ही था. फिर रेल मंत्रालय में भर्ती घोटाले को लेकर तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे का नाम सामने आया.
लंबे समय तक संसद बाधित रही, सरकार को समय से पहले संसद को निलंबित कर आखिरकार बंसल से इस्तीफा ले लिया. सीबीआइ से कोयला घोटाले से संबंधित फाइलें तलब कर देखने के मामले में तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार से भी उसी दिन इस्तीफा लिया गया. दोनों प्रधानमंत्री के करीबी थे और उनकी सिफारिश पर ही उन्हें मंत्रिमंडल में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.
निशाने पर मोंटेक भी!
मनमोहन सिंह के चहेते योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया पर भी निशाना साधा जा सकता है. गरीबी रेखा (बीपीएल) को लेकर योजना आयोग की ओर से दी गयी परिभाषा को लेकर यूपीए सरकार की खूब फजीहत हुई. ऐसे कई मामले हैं, जिसके आधार पर प्रधानमंत्री अपनी ही पार्टी के निशाने पर आ सकते हैं. हालांकि, माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी उनके समर्थन में खड़े होंगे, पर कोई और साथ देगा, कहना मुश्किल है.