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केवल कर्णन ही नहीं, विवाद शुरू करने वाले न्यायाधीशों की लंबी है फेहरिस्त

!!पीटीआई भाषा !! नयी दिल्ली : न्यायमूर्ति सी एस कर्णन को उनकी मानहानिपूर्ण टिप्पणियों के लिए भले ही उच्चतम न्यायालय के गुस्से का सामना करना पड़ा हो लेकिन विवादित न्यायाधीशों की फेहरिस्त में वह अकेले नहीं है और हाल के सालों में कई न्यायाधीशों ने अपनी टिप्पणियों से विवादों को जन्म दिया है. हाल में […]

!!पीटीआई भाषा !!

नयी दिल्ली : न्यायमूर्ति सी एस कर्णन को उनकी मानहानिपूर्ण टिप्पणियों के लिए भले ही उच्चतम न्यायालय के गुस्से का सामना करना पड़ा हो लेकिन विवादित न्यायाधीशों की फेहरिस्त में वह अकेले नहीं है और हाल के सालों में कई न्यायाधीशों ने अपनी टिप्पणियों से विवादों को जन्म दिया है. हाल में सेवानिवृत्त हुए कर्णन ने कॉलेजियम प्रणाली को ‘ ‘निरंकुश ‘ ‘ और ‘ ‘उंची जाति के उम्मीदवारों ‘ ‘ को प्राथमिकता देने वाला बताया था और मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया तथा न्यायाधीशों पर ‘ ‘अपमाजनक ‘ ‘ टिप्पणियों वाले पत्र शीर्ष अधिकारियों को भेजे.

वह देश के पहले ऐसे निवर्तमान न्यायाधीश बन गए जिन्हें जेल की सजा सुनायी गयी, हालांकि उन्हें गिरफ्तार किया जाना बाकी है.हाल में राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश महेश चंद्र शर्मा ने अपनी सेवा के अंतिम दिन एक फैसले में अपनी टिप्पणी से विवाद को जन्म देते हुए कहा था ‘ ‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करें ‘ ‘ और ‘ ‘मोर आजीवन ब्रह्मचारी होता है ‘ ‘.
जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने कहा, ‘ ‘जो मोर है, ये आजीवन ब्रह्मचारी होता है. वह कभी भी मोरनी के साथ यौन संबंध स्थापित नहीं करता. इसके जो आंसू आते हैं, मोरनी उसे चुगकर गर्भवती होती है और मोर या मोरनी को जन्म देती है. मोर ब्रह्मचारी है, इसलिए भगवान कृष्ण अपने सिर पर मोरपंख लगाते हैं. ‘ ‘ 2010 में जब उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्तियों को सार्वजनिक करने का प्रतिरोध किया तब कर्नाटक उच्च न्यायालय के निवर्तमान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वी शैलेंद्र कुमार ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन को ‘ ‘बिना जहरीले दांतों वाला सांप ‘ ‘ बताया था.
इसके बाद जब न्यायाधीशों ने आखिरकार अपनी संपत्तियों का ब्यौरा दिया तब उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर तत्कालीन महिला न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा ने अपनी अविवाहित बेटियों को ‘ ‘बोझ ‘ ‘ बताया था.एक दूसरे हैरान करने वाले मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भक्तवत्सला ने 2012 में शारीरिक हिंसा करने वाले अपने पति से तलाक की मांग कर रही एक महिला याचिकाकर्ता से कहा था कि सभी महिलाओं को वैवाहिक जीवन में परेशानी झेलनी पडती है.
उन्होंने कहा था, ‘ ‘महिलाओं को वैवाहिक जीवन में परेशानी का सामना करना पडता है. आपके दो बच्चे हैं और आपको पता है कि महिला के तौर पर परेशानी झेलने का क्या मतलब होता है. आपके पति का काम अच्छा चल रहा है, वह आपका ध्यान रखेगा। आप फिर भी मारपीट की बात क्यों कर रही हैं? ‘ ‘ उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने कहा था, ‘ ‘भ्रष्टों को लैंप पोस्ट से लटका दें ‘ ‘ और ‘ ‘दाढी रखने वाले मुस्लिम छात्रों से देश का तालिबानीकरण होगा। ‘ ‘ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस एन श्रीवास्तव ने कहा था, ‘ ‘भगवद गीता को राष्ट्रीय शास्त्र घोषित करें ‘ ‘ क्योंकि यह ‘ ‘राष्ट्रीय धर्मशास्त्र ‘ ‘ है.
जुलाई, 2015 में बलात्कार के एक दोषी को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति पी देवदास ने कहा था कि वह दोनों के बीच की खाई को पाटने के लिए पीडतिा के साथ ‘ ‘मध्यस्थता ‘ ‘ कर सकते हैं. इसके बाद विवाद शुरू हो गया और न्यायाधीश को अपना आदेश वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा.

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