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सरस्वती पूजा खास : लोगों के बीच मिसाल बना मयंक का मूर्तिप्रेम

अपने लगन और जज्बे से मयंक ने साबित कर दिया कि इंसान अगर चाह ले तो कुछ भी संभव हैपटना : अपने आसपास बनती हुई मूर्तियों से प्रभावित होकर पांच साल के एक लड़के ने न किसी से प्रशिक्षण लिया और न ही कला की विधिवत शिक्षा ग्रहण की, लेकिन पिछले 26 सालों से वह […]

अपने लगन और जज्बे से मयंक ने साबित कर दिया कि इंसान अगर चाह ले तो कुछ भी संभव है
पटना :
अपने आसपास बनती हुई मूर्तियों से प्रभावित होकर पांच साल के एक लड़के ने न किसी से प्रशिक्षण लिया और न ही कला की विधिवत शिक्षा ग्रहण की, लेकिन पिछले 26 सालों से वह मूर्ति बनाकर मां सरस्वती की पूजा करता है. इस बीच उसने स्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद इंजीनियरिंग की डिग्री भी ली, खुद की कंपनी भी बना ली, लेकिन मां सरस्वती की आराधना का क्रम नहीं छूटा. हम बात कर रहे हैं अनिसाबाद के रहनेवाले इंजीनियर मयंक की.

वह पिछले 26 वर्षों से हर साल मां सरस्वती की एक प्रतिमा बनाकर पूजा करता है. अनिसाबाद के उड़ान टोला में रहने वाले मयंक का कहना है कि बचपन में वह मूर्तियों के सामने बैठकर घंटों एक टक मूर्तिकारों की कला की बारीकियों को देखता था. एक दिन मन में ख्याल आया कि क्यों न वह खुद से मूर्ति बनाये और मां सरस्वती की पूजा करे.

2012 में पूरी की बीटेक की पढ़ाई
बचपन से मयंक पढ़ाई में भी अच्छे थे. उन्होंने साल 2012 में अपनी बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने कहीं और काम करने के बजाय खुद का काम करना बेहतर समझा और एक प्रोडक्शन हाउस भी खोला. मयंक का मूर्ति प्रेम आज लोगों के बीच मिसाल बना हुआ है, यूं कहें कि जैसे-जैसे मयंक की उम्र बढ़ती गयी, मां की प्रतिमा का स्वरूप भी बढ़ता गया, वे महासरस्वती के स्वरूप की पूजा करते हैं और साथ में लक्ष्मी-गणेश की पूजा भी करते हैं. गुप्त नवरात्र के तौर पर वे नौ दिनों तक माता की आराधना करते हैं. इस बार पूजा समिति में 30 जनवरी को माता का पट खुल जायेगा. वे बंगाली पद्धति के तहत पूजा करते हैं, कला प्रदर्शनी भी लगाते हैं. जागरण और बच्चों का कार्यक्रम भी कराते हैं. इस नवरात्र की कुछ और खासियत भी है यहां आमजनों के लिये निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जाता है.

नौबतपुर की मिट्टी से बनती है मां सरस्वती की प्रतिमा
गुरुवार को विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा होगी. शहर में सरस्वती पूजा की तैयारी शुरू हो चुकी है. इस पर्व को लेकर कारीगर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि राजधानी में मिट्टी की मूर्तियों के लिए ज्यादातर मिट्टी नौबतपुर से आती हैं? प्लास्टर ऑफ पेरिस से इतर मिट्टी की मूर्तियों की मांग हमेशा रहती है और इस बार भी मूर्तियां खूब बनायी जा रही हैं. दरअसल प्लास्टर ऑफ पेरिस( पीओपी) से बनी मूर्तियां का बढ़ता प्रयोग, जल की शुद्धि की दृष्टि से चिंता की वजह है. वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पीओपी की मूर्तियों को अच्छा नहीं माना जाता है. भारतीय संस्कृति में ऐसे अवसरों पर मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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