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अपने सपने को पूरा करने के लिए परिवार और समाज की सोच के खिलाफ गई हूं… Laapataa Ladies फेम प्रतिभा रांटा ने शेयर किया अपना संघर्ष

लापता लेडीज की रिलीज के बाद पुष्पा कुमारी यानी प्रतिभा रांटा खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. उन्होंने अपनी स्ट्रगल जर्नी और फिल्मों में आने तक के सफर को लेकर बात की.

बीते शुक्रवार सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म लापता लेडीज की लेडीज पुष्पा कुमारी यानी प्रतिभा रांटा इस फिल्म में अपने अभिनय के लिए ज़बरदस्त वाहवाही बटोर रही हैं. प्रतिभा इसे सपने जैसा करार देती हैं, कई बार उन्हें लगता है कि यह उनकी नहीं किसी और की फिल्म है. इस फिल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…

आपने टीवी शो कुर्बान हुआ से अपने अभिनय की शुरुआत की थी , आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस की लापता लेडीज से कैसे जुडी?
मेरी जर्नी काफी रोचक रही है. मैंने शुरुआत टीवी से की थी, लेकिन मैंने लाइफ में कभी प्लान नहीं बनाया कि कहां और कैसे जाना है. मेरी ज़िन्दगी में जो चीज़ें आ रही थी. उन्हें मैं एक-एक करके उठा रही थी. पहले मैं टीवी शो कर लिया फिर एक वेब शो कर लिया. इसी दौरान मुझे एक फिल्म के ऑडिशन के लिए कॉल आया कि आप इसका ऑडिशन दे दो क्योंकि ये लोग बहुत समय से जया के किरदार के लिए एक्टर तलाश रहे थे. मैंने कहा कि ठीक है. मैं ऑडिशन दे दूंगी, जब मैंने ऑडिशन स्क्रिप्ट मांगी और मैंने वो पढ़ी तो मैंने पाया कि इतनी खूबसूरती से वो लिखा गया है कि मैं ऑडिशन के दौरान ही उसको विजुअलाइज कर पा रही थी कि ये किरदार कैसा होगा. ऐसा बहुत काम हो पाता है कि हम ऑडिशन में बिना ब्रीफ जाने किरदार को जान लें. यहां पर ये हो गया था. मैंने शुरुआत में ही स्क्रिप्ट से कनेक्ट कर लिया था. मुझे पता था कि ये किरदार क्या कर रही है. क्या सोच रही है. मेरा ऑडिशन आमिर सर को पसंद आया. ऑफिस बुलाया गया. सामने आमिर खान थे, जिनकी फिल्में देखकर आप बड़े हुए होते हो, तो आप नर्वस भी होते हो और उत्साहित भी. दो दिन के भीतर ही मैं फ़िल्म से जुड़ गयी.

आमिर ख़ान ने आपकी परफॉरमेंस के लिये आपको कुछ ख़ास कहा ?
आमिर सर ने भोपाल में मिले थे. उन्होंने हम तीनों की ही तारीफ की और कहा कि कितना इतना अच्छा काम किया है. तुम लोग अपने किरदार को पूरी तरह से जस्टिफाय कर रहे हो. तुमलोग से अच्छा और कोई ये रोल नहीं कर सकता था. जब आप ऐसा सुनते हो तो एक्टर के तौर पर आप वेलिडेटेड फील करते हो.वो भी आमिर सर के मुंह से यह बड़ी बात थी.

किरदार में रचने बसने के लिए ट्रेनिंग क्या रही?
हमारे डायलेक्ट की ट्रेनिंग हुई थी. साड़ी पहनना और उसमें सहजता लाना भी एक टास्क था. हमलोग निजी ज़िंदगी में साड़ी में रहते ही नहीं है और इसमें साड़ी पहनना है और घूंघट को एकदम नेचुरली पकड़ना है. परफॉर्म करते हुए घूंघट नहीं छोड़ना था. इस बात का ख्याल रखना था. मेरे किरदार का क्या है कि वो जो सोच रही है. वो बोल नहीं रही है. वो कुछ और ही करना चाहती है. किरदार को प्ले करते हुए मुझे इस बात का ध्यान रखना था कि मैं किरदार को लेकर ज़्यादा जानकारी अपने परफॉरमेंस से ना दे पाऊं. हेयर मेकअप के जादू की भी यहां मैं तारीफ करना चाहूंगी. मेकअप के बाद पूरी तरह से मैं पुष्पा रानी दिखती थी. मेरे स्किन का कलर भी डार्क किया गया है.

खबरें हैं कि इस फिल्म की कहानी को ठंड के मौसम में दिखाया गया है, जबकि उसकी शूटिंग चिलचिलाती धूप में हुई है?
जब हम भोपाल में शूट कर रहे थे उस वक़्त सर्दी ही थी. मुंबई में जब हम शिफ्ट हो गए. हमारा जो शेड्यूल मुंबई का था. शेड्यूल मार्च में था. मार्च में हीट वेव चल रही थी. हम मड में शूट कर रहे थे. हमने स्वेटर पहनी है. हमने शॉल पहनी है .हमने पूरा घूंघट ओढ़ा है. इतनी ज़्यादा हीट वेव की समस्या थी कि समझ ही नहीं आता था कि क्या करें, जैसे ही कट होता था. पहले एनाकोंडा के साइज वाला कूलर आता था और हम सब उसमे अच्छे से चिल होते थे फिर गर्मी में शूट करते थे. वैसे इसका साइड इफेक्ट्स भी हुआ. सर्दी फिर एकदम से गर्मी इससे बहुतों को जुखाम हो गया. मुझे तो बुखार भी हो गया था, लेकिन हम उसी में शूटिंग जारी रखी.

किरण राव को बतौर निर्देशक कैसे परिभाषित करेंगी?
जब आप फीमेल डायरेक्टर्स के साथ काम करते हैं, तो आपके और उनके सोच में कहीं ना कहीं एक समानता होती है तो मैंने किरण मै साथ में यह पाया है. वैसे वो हर किसी के क्रिएटिव ओपिनियन को वेलकम करती हैं. निर्देशक के तौर पर उन्हें अपने क्राफ्ट में महारत हासिल है. उन्हें पता है कि कौन सा सीन कहाँ और कैसे चेंज करना है जब तक सीन से पूरी तरह से संतुष्ट ना हो वह कई रीटेक करवाती हैं. वह परफ़ेक्शनिस्ट हैं.

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आप अपने किरदार जया से कितना मेल खाती है ?
बहुत ज्यादा. जब मैं शिमला में थिएटर करती थी, तो अपने परिवार को समझाने में मुझे भी बहुत समय गया कि मुझे यही करना है और मुझे मुंबई जाना है. शिमला जैसी छोटी जगह के लिए यह आसान नहीं था. मेरी फैमिली भी चुप चुप कर ही सपोर्ट करती थी लेकिन मुझे अपने फैसले पर पूरा भरोसा था. मैं ये भी मानती हूं कि अगर गलत भी हुआ तो वह मेरा फैसला होगा लेकिन अपने सपने को पूरा करने की मैं कोशिश जरूर करूंगी. मुंबई आना यहां घर घर ढूंढना, काम ढूंढना, नये दोस्त बनाना आसान नहीं था. शिमला में कई रिश्तेदारों ने कई तरह की बातें बोली थी. अब वही चाहते हैं कि उनकी बेटी भी मुंबई आकर एक्टिंग में ट्राय करें, तो पता भी नहीं चलता अपने लिए लड़ी गयी लड़ाई कई दूसरे लोगों का मोटिवेशन भी बन जाती है .

निजी जिंदगी में आप किस महिला से प्रभावित है ?
मैं अपनी दादी मां नाम लेना चाहूंगी. वह 80 साल की हैं, लेकिन वह इस उम्र में भी समाज में अपनी आइडेंटिटी चाहती है. वो सोशल मीडिया में है. हर दिन खुद को अपडेट करती रहती हैं. मेरी इंस्टा हैंडल पर भी वह कमेंट करती रहती हैं.

अक्सर कहा जाता है कि टेलीविज़न एक्टर्स को फ़िल्म मिलने में दिक़्क़त होती है ?
मैंने टीवी शो एक ही किया है. बहुत लोगों को पता ही नहीं कि मैंने टीवी किया भी है. तो मुझे ऐसा कुछ अनुभव अब तक नहीं हुआ है.

अभिनय को लेकर क्या अब फोकस फ़िल्में ही रहेंगी?
माध्यम मायने नहीं रखता है. मैं ऐसा काम करना चाहती हूं कि लोगों को सरप्राइज कर दूं. मैं कमर्शियल फिल्में भी करुंगी और आर्टिस्टिक भी.

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