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जन्‍मदिन विशेष: जब आधी रात को गुलजार के घर पहुंचे आर डी बर्मन…

आज यदि आर डी बर्मन (राहुल देव बर्मन) हमारे बीच होते तो वे 77 साल के हो गये होते. उन्‍हें इस दुनियां को अलविदा कहे 22 साल से अधिक हो गये लेकिन मन को झंकृत करनेवाला उनका संगीत आज भी लोगों की कानों में गूंज रहा है. आर डी बर्मन यानि पंचम दा के संगीत […]

आज यदि आर डी बर्मन (राहुल देव बर्मन) हमारे बीच होते तो वे 77 साल के हो गये होते. उन्‍हें इस दुनियां को अलविदा कहे 22 साल से अधिक हो गये लेकिन मन को झंकृत करनेवाला उनका संगीत आज भी लोगों की कानों में गूंज रहा है. आर डी बर्मन यानि पंचम दा के संगीत ने भारतीय फिल्‍म के संगीत को एक नयी दिशा दी. वे संगीत प्रेमियों की रूचि को बेहतर पहचानते थे और सत्‍तर-अस्‍सी के दशक में उन्‍होंने कई हिट फिल्‍मों में संगीत दिये.

आर डी बर्मन के संगीत में खासी विविधता देखी जाती थी. फिल्‍में हिट होने में भी उनके संगीत का महत्‍वपूर्ण योगदान होता था. बेमिसाल ख्याल अक्सर अजीबोगरीब समय पर आते हैं और यह बात राहुल देव बर्मन के लिए कई बार सही साबित हुई. उन्हें हिंदी फिल्मी संगीत के कुछ यादगार गीतों की प्रेरणा उस समय आई जब वह सफर कर रहे होते थे.

‘आर डी बर्मन- द प्रिंस ऑफ म्यूजिक’ नामक एक नई किताब में कहा गया है कि एक बार वह उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ बॉम्बे से दिल्ली जा रहे थे. इस सफर के दौरान उन्होंने शानदार गीत ‘ये जो मुहब्बत है’ बनाया और इसे वर्ष 1971 की फिल्म ‘कटी पतंग’ में शामिल किया गया.

इस किताब में आगे कहा गया कि हवा के बीचों बीच बर्मन द्वारा बनाए गए इस गाने को राजेश खन्ना ने खूब सराहा और फिल्म में इस गाने के लिए विशेष तौर पर जगह बनाई.’ लेखक खगेश देव बर्मन ने कहा, ‘एकबार दिल्ली आने वाले विमान में राजेश खन्ना और बर्मन एकसाथ सफर कर रहे थे. तभी राजेश ने उनसे कहा कि वह कुछ ऐसा गुनगुना दें कि उनकी बेचैनी शांत हो जाए. बर्मन ने अपने साथी यात्री को खुश करने के लिए यह अनुरोध स्वीकार कर लिया.’

उन्होंने कहा, ‘राजेश ने यह सुना तो उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने अपने दोस्त और निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत से ‘कटी पतंग’ में एक ऐसी स्थिति बनाने के लिए कहा ताकि हवा में बने बर्मन के इस गीत को उसमें डाला जा सके. इस तरह ‘ये जो मुहब्बत है’ को ‘कटी पतंग’ में डाल दिया गया और यह एक यादगार गीत बन गया.

श्रोताओं द्वारा बेहद सराहे गए इस गीत के लिए किशोर कुमार को फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ गायक के पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था. हालांकि यह पुरस्कार राजकूपर अभिनीत ‘मेरा नाम जोकर’ के ‘ए भाई जरा देख के चल’ के लिए मन्ना डे को मिल गया था. एक ऐसा ही वाकया इसके अगले साल हुआ, जब बर्मन ने एक दूसरा बेमिसाल गाना ‘मुसाफिर हूं यारों’ आधी रात को बॉम्बे की सडकों पर गुलजार के साथ कार में तैयार किया. यह गीत वर्ष 1972 की फिल्म ‘परिचय’ में डाला गया था.

एक बार गुलजार और बर्मन राजकमल स्टूडियो में मिले. वहां बर्मन इतने व्यस्त थे कि उन्हें बात तक करने का समय नहीं था. गुलजार ने अपनी जेब से कागज का एक टुकडा निकाला और कहा, ‘यह एक गाने का मुखडा है. इसकी धुन बन जाने के बाद मुझे सुना देना.’

खगेश लिखते हैं,’ अब आरडी की दीवानगी देखिए, आधी रात को वह गुलजार के घर जा पहुंचे. रात एक बजे उन्हें उठाया और अपनी कार में बैठाकर शहर में घूमने निकल पडे. साथ-साथ उन्हें ‘मुसाफिर हूं यारों’ की धुन सुनाते रहे. उन्होंने इस धुन को पहले ही एक कैसेट में रिकॉर्ड कर लिया था. गुलजार की नींद अब जा चुकी थी क्योंकि उन्हें अपनी पसंद की धुन मिल गई थ. वह बहुत खुश थे.’ यह गीत संगीत के क्षेत्र के दोनों महारथियों के लंबे जुडाव के शुरुआती गीतों में से एक था.

खगेश ने कहा,’ आधी रात को लांग ड्राइव पर जाना पंचम का जुनून था. गुलजार को ऐसे कई मौकों पर उनका साथ देना पडता था.’ ‘आर डी बर्मन- द प्रिंस ऑफ म्यूजिक’ किताब महान संगीतकार की जिंदगी के कई पहलुओं को सामने लाती है. यह उनके दौर के दूसरे कलाकारों के साथ उनके रिश्तों को भी दर्शाती है.

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