फिल्म बेशरम को न सिर्फ मीडिया ने बल्कि दर्शकों ने भी नकार दिया है. लेकिन फिल्म के निर्देशक अभिनव कश्यप इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्होंने स्तरीय फिल्म नहीं बनायी है. वे बार-बार यही प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि कोई जान-बूझ कर उनकी फिल्म की गलत पब्लिसिटी कर रहा है और इसकी वजह से फिल्म को नुकसान हो रहा है. उन्होंने दोष मीडिया पर भी मढ़ा है.
उनका कहना है कि लोग फिल्म को मिले एक स्टार को देख कर फिल्म देखने नहीं जा रहे. जबकि हकीकत यह है कि वर्तमान में हिंदी सिनेमा के दर्शकों को अखबारों में प्रकाशित रिव्यू से कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर फर्क पड़ता तो फिल्म ग्रैंड मस्ती या दबंग जैसी फिल्में कामयाब नहीं होती. चूंकि इन फिल्मों को मीडिया के समीक्षकों ने नहीं स्वीकारा था, लेकिन दर्शकों ने स्वीकारा. ऐसे में स्पष्ट है कि दर्शक स्टार देख कर फिल्में देखने नहीं जाते. उन्हें जो फिल्में देखनी है, वे देखते ही हैं. लेकिन अभिनव अपनी नाकामयाबी को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं.
दरअसल, हिंदी सिनेमा के कुछ निर्देशकों की जमात को यह गलतफहमी है कि वे जो भी बनायेंगे, या वे जो भी नजरिया अपनी फिल्मों के माध्यम से दर्शाना चाहते हैं, वह सही है और अगर दर्शक समझ न पायें तो यह उनका दोष है. विशाल भारद्वाज हमेशा यह कहते हैं कि उनकी फिल्में दर्शकों को समझ नहीं आती चूंकि हिंदी सिनेमा की दर्शक उतने समझदार नहीं हैं. जबकि हकीकत यह है कि हिंदी सिनेमा के दर्शक वर्ग को अनुमानित करना मुश्किल है. अभिनव ही नहीं, कई निर्देशक अपनी दलीलें देते हैं.
वे अश्लील चीजें परोसते हैं, टॉयलेट ह्मुमर सिर्फ इस नाम पर परोसते हैं कि दर्शक इसे देखना चाहते हैं. दर्शकों के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने न जाने ये निर्देशक कब छोड़ेंगे. दर्शकों को वाकई फिल्मों के चुनाव में सतर्कता बरतनी होगी. तभी बदलाव संभव है.फिल्म बेशरम में पहले पल्लवी शारदा की जगह तापसी पत्रु लीड किरदार निभानेवाली थीं.
अनुप्रिया अनंत